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 Jharkhand Board Class 10  Geography  Notes | संसाधन एवं विकास  

  JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) Geography Chapter 1

                                 (Resources and Development)
      
                      अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संसाधन क्या है?
उत्तर―संसाधन वे उत्पाद व वस्तुएँ हैं जिनका मूल्य मनुष्य के लिये है।

प्रश्न 2. प्राकृतिक संसाधन क्या हैं ?
उत्तर―प्राकृतिक उपहार जो भूमि, जल, वनस्पति और खनिज के रूप में
हैं। इनको प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। मनुष्य इनको नहीं उत्पन्न कर सकता।

प्रश्न 3. प्राकृतिक संसाधनों के चार उदाहरण दें।
उत्तर―(1) भूमि, (2) जल, (3) खनिज तथा (4) वन । ये प्राकृतिक संसाधनों
के चार उदाहरण हैं।

प्रश्न 4. मानवकृत संसाधन क्या हैं ?
उत्तर―मनुष्य द्वारा उत्पन्न किये गये संसाधनों को मानवकृत संसाधन कहते
हैं। उदाहरण के लिये इंजीनियरिंग, तकनीक और प्रौद्योगिकी, मशीन, भवन,
स्मारक तथा सामाजिक संस्थायें।

प्रश्न 5. जैविक और अजैविक खनिजों का एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर―कोयला जैविक खनिज है जबकि लौह अयस्क एक अजैविक खनिज है।

प्रश्न 6. नवीकरणीय संसाधन क्या हैं ?
उत्तर―कुछ संसाधनों में स्वतः नवीकरणीय क्षमता होती है। पौधे और
जानवरों में अपने आप में पुनः उत्पन्न होने की योग्यता होती है । वन तथा वन्य
जीवन जल और सौर ऊर्जा आदि नवीकरणीय संसाधन हैं।

प्रश्न 7. अनवीकरणीय संसाधन क्या हैं?
उत्तर―वे संसाधन जो एक बार उपयोग के बाद पुनः नहीं बन सकते,
अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। खनिज अनवीकरणीय संसाधन हैं।
उदाहरण―तेल, गैस और कोयला भी ऐसे ही संसाधन हैं।

प्रश्न 8. संसाधनों का संरक्षण क्या है ?
उत्तर―संसाधनों का उपयोग करते समय हमें उनके प्रकार, प्रकृति और
आकार का ध्यान रखना चाहिये। सीमित संसाधन आगे आनेवाली पीढ़ियों के
लिये भी मौजूद रहने आवश्यक हैं। संसाधनों का पुन: उपयोग और पुनःचक्रण
होना चाहिये।

प्रश्न 8.खनिज संसाधनों की परिभाषा करें।
उत्तर―संसाधन जो भूमि से प्राप्त किये जाते हैं, खनिज संसाधन कहलाते हैं
जैसे―लौह अयस्क।

प्रश्न 9. भू-तापीय ऊर्जा क्या है ?
उत्तर―भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त की जाती है । यह पृथ्वी की
आन्तरिक ऊष्मा से उत्पन्न होती है। जैसे―गर्म स्रोत

प्रश्न 10. दो विकसित और दो अविकसित देशों के नाम लिखें।
उत्तर―विकसित देश-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान
विकासशील देश―भारत और पाकिस्तान ।

प्रश्न 11. 'भूमि शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर―भूमि : भू-पृष्ठ का ठोस भाग भूमि कहलाता है। इसे मृदा या
घरातल भी कहा जा सकता है। यह कृषि के लिये उपयोग में आता है।

प्रश्न 12. हमारे भू-क्षेत्र का कितना प्रतिशत मैदान है ?
उत्तर―लगभग 43 प्रतिशत ।

प्रश्न 13. भूमि का कितने प्रतिशत भाग पर्वतीय है?
उत्तर―लगभग 30 प्रतिशत । यह वन उत्पाद, वन्य जीवन तथा सुन्दर दृश्य
प्रदान करता है।

प्रश्न 14. परती भूमि क्या है ?
उत्तर―परती भूमि वह सीमान्त भूमि है जिस पर प्रति वर्ष कृषि नहीं की
जाती। यह एक या दो वर्ष के लिये खाली छोड़ दी जाती है जिससे मृदा उपजाऊ
बन सके।

प्रश्न 15. चरागाह क्या है ?
उत्तर―प्राकृतिक घास से ढका हुआ भू-भाग चरागाह कहलाता है।

प्रश्न 16. उन कारकों को बतायें जिनसे भूमि और जल प्रदूषण होता है।
उत्तर―(i) औद्योगिक प्रदूषण जल।
(ii) उद्योगों जैसे पत्थर तोड़ने से निकली धूल द्वारा ।

प्रश्न 17. क्षरण से भूमि की रक्षा का क्या महत्त्व है ?
उत्तर―क्षरण से भूमि की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भूमि पर
जनसंख्या दबाव को सहन करने के लिये भूमि (मृदा) आवश्यक है।

प्रश्न 18. समाप्यता के आधार पर संसाधनों को किस प्रकार विभाजित
किया जा सकता है?                      [JAC 2009 (A) & 2010 (A)]
उत्तर―नवीकरण योग्य तथा अनवीकरण योग्य संसाधन ।

प्रश्न 19. भारत के किन्हीं दो राज्यों के नाम बताएँ, जहाँ सौर ऊर्जा
संसाधनों की अपार संभावना है।
उत्तर―गुजरात और राजस्थान ।

प्रश्न 20. बंजर भूमि क्या है ?
उत्तर―बंजर भूमि में पहाड़ी चट्टानें, सूखी और मरुस्थलीय भूमि शामिल है।

प्रश्न 21. आयु के आधार पर जलोढ़ मृदा को किस प्रकार वर्गीकृत
किया जा सकता है?
उत्तर―(i) खादर, (ii) बांगर ।

प्रश्न 22. निम्नलिखित मृदाओं में उगाई जानेवाली एक महत्त्वपूर्ण
फसल का नाम बताएँ―
(i) जलोढ़ मृदा,
(ii) काली मृदा
उत्तर―(i) जलोढ़ मृदा-गेहूँ (ii) काली मृदा-कपास

प्रश्न 23. कपास की खेती के लिए कौन-सी मृदा उचित है ?
उत्तर―काली मृदा।

प्रश्न 24. चादर अपरदन क्या है ?
उत्तर―जब किसी विस्तृत क्षेत्र की ऊपरी मृदा घुलकर जल के साथ बह
जाती है तो उसे चादर अपरदन कहा जाता है।

प्रश्न 25. पवन अपरदन क्या है?
उत्तर―पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की
प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।

प्रश्न 26. समोच्च जुताई क्या है?
उत्तर―दालवाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल
के साथ जल बहाव की गति घटती है।

प्रश्न 27. मृदा के संरक्षण में समोच्च जुताई किस प्रकार मदद करती है ?
उत्तर―ढालवाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल
के साथ जल बहाव की गति घटती है।

प्रश्न 28. रक्षक मेखला क्या है ?
उत्तर―फसलों के बीच में पेड़ों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।

प्रश्न 29. उत्खात भूमि क्या है?
उत्तर―यह भूमि जोतने के लिए उपयुक्त नहीं होती । प्रमुखतः मृदा अपरदन
उपजाऊ भूमि को उत्खात भूमि में बदल देते हैं।

प्रश्न 30. अवनलिकाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर―वनस्पति की कमी में जब बहता जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते
हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है, जिन्हें अवनलिकाएँ कहते हैं।

प्रश्न 31. पट्टी कृषि क्या है?
उत्तर―पट्टी कृषि के अन्तर्गत बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटा जाता है।
फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल
को कमजोर करती हैं।

प्रश्न 32. काली मृदा में पाए जानेवाले किन्हीं चार खनिजों के नाम
बताएँ।
उत्तर―(i) कैल्शियम कार्बोनेट 
(ii) मैगनीशियम
(iii) पोटाश
(iv) चूना ।

प्रश्न 33. निक्षालन क्या है? निक्षालन की प्रक्रिया से विकसित
होनेवाली मृदा का नाम बताएँ।
उत्तर―निक्षालन एक प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्त्व भारी वर्षा के कारण
बह जाते हैं।

प्रश्न 34. मृदा के संरक्षण में सहायक किन्हीं चार उपयुक्त कृषि
तकनीकों के बारे में बताएँ।
उत्तर―(i) पट्टी कृषि 
(ii) रक्षक मेखला
(iii) समोच्च जुताई 
(iv) सीढ़ीदार कृषि।

प्रश्न 35. नाली अपरदन क्या है?
उत्तर―नाली अपरदन उस समय होता है जब बहता जल वनस्पति रहित
धरातल को गहरा काट देता है। इस प्रकार का अपरदन भूमि को कृषि के लिए
अनुपयुक्त बना देता है।

प्रश्न 36. मृदा अपरदन क्या है ?
उत्तर―प्राकृतिक साधनों जैसे नदी के जल और पवन द्वारा मृदा का हटना
मृदा अपरदन कहलाता है।

प्रश्न 37. लैटराइट मृदा किस प्रकार बनती है?
उत्तर―यह अधिक वर्षावाले क्षेत्रों में निक्षालन प्रक्रिया द्वारा बनती है।

प्रश्न 38. किन्हीं तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ काली मृदा पाई
जाती है तथा वे फसलें जो वहाँ उगाई जाती हैं।      [NCERT]
उत्तर―(क) महाराष्ट्र 
(ख) आन्ध्र प्रदेश 
(ग) तमिलनाडु

प्रश्न 39. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में किस प्रकार की मृदा पाई जाती
है ? इस प्रकार की मृदा की कोई तीन प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर―पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में जलोढ़ मृदा पाई जाती है।
विशेषताएँ―
(क) यह बहुत उपजाऊ होती है।
(ख) यह बहाकर लाई गई मृदा होती है।
(ग) इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस तथा चूने का सही अनुपात होता है।

प्रश्न 40. संसाधन विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर–कई ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिन्हें हम अपनी आवश्यकताओं की
पूर्ति के लिए सीधे उपयोग नहीं कर सकते। उन्हें विशेष प्रयासों से उपयोग के
योग्य बनना ही संसाधन विकास कहलाता है।

                                         लघु उतरीय प्रश्नोतर

प्रश्न 1. संसाधन क्या है? दो उदाहरण दें।
उत्तर―हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं
को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी
उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है,एक
संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि, संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं।

प्रश्न 2. संसाधनों के विकास में मनुष्यों की क्या भूमिका है?
उत्तर―(i) मानव प्रौद्योगिकी द्वारा प्रकृति के साथ क्रिया करते हैं और अपने
आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए संस्थाओं का निर्माण करते हैं।
     (ii) मनुष्य पर्यावरण में पाए जानेवाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तन के
हैं तथा उन्हें प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 3. संसाधनों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है।
उत्तर―संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है―
(i) उत्पत्ति के आधार पर―जैव तथा अजैव ।
(ii) समाप्यता के आधार पर―नवीकरण योग्य और अनवाकरण योग्य
(iii) स्वामित्व के आधार पर―व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय
(iv) विकास के स्तर के आधार पर―संभावी, विकसित भंडार और सांचित
कोष।

प्रश्न 4. नवीकरणीय संसाधनों के दो उप-प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर―नवीकरणीय संसाधनों के दो उप-प्रकार हैं―(i) प्रवाह संसाधन,
(i) निरन्तर या नियमित संसाधन ।
प्रवाह संसाधन वे संसाधन हैं जो समाप्त हो सकते हैं किन्तु मानव द्बारा
बदाये जा सकते हैं जैसे भूमिगत जल, मृदा और वन जबकि दूसरी ओर निरन्तर
संसाधन वे संसाधन हैं जो सदैव उपलब्ध होते हैं, जैसे सौर ऊर्जा और ज्वारीय
ऊर्जा।

प्रश्न 5. खनिजों का संरक्षण अन्य संसाधनों से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
तीन तर्क दीजिये।
उत्तर―निम्न कारणों से खनिजों का संरक्षण बहुत आवश्यक है―
(i) खनिज समाप्य और अनवीकरणीय संसाधन हैं। एक बार उपयोग के
बाद वे समाप्त हो जाते हैं

(ii) उनके निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी है। इनके निर्माण में लम्बा
भूगर्भीय समय लगता है।

(iii) ये पृथ्वी पर बहुत मूल्यवान संसाधन हैं, क्योंकि इनका विभिन्न उपयोग
है और असमान वितरण है इसलिये इनका संरक्षण बहुत आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 6. ऊर्जा संसाधनों का अर्थ समझायें। ऊर्जा तथा असमाप्य
संसाधनों के नाम लिखें। इनका संरक्षण क्यों किया जाये?
उत्तर―अर्थ (Meaning)―वे संसाधन जिनसे मशीनें, वाहन, टरबाइन चलाने
के लिये शक्ति उत्पन्न होती है, ऊर्जा कहलाते हैं।

नाम (Name)―कोयला, प्राकृतिक गैस तेल तथा परमाणु ऊर्जा आदि ऊर्ज
के प्रमुख स्रोत हैं। ये समाप्य संसाधन हैं।
जल शक्ति, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा तथा भूतापीय ऊर्जा असमाप्य ऊर्जा
के संसाधन हैं। इन्हें सुरक्षित रखना आवश्यक है क्योंकि किसी देश का विकास
इन पर निर्भर करता है। इनका उपयोग शीघ्रता से हो रहा है। इसलिये इनकी
निकट भविष्य में कमी हो सकती है। ये तभी उपलब्ध हो सकते हैं यदि इनका
उचित उपयोग हो और सावधानी रखी जाये।

प्रश्न 7. प्राकृतिक संसाधनों का आर्थिक वर्गीकरण करें।
उत्तर―प्राकृतिक संसाधनों के आर्थिक वर्गीकरण में दो प्रमुख कार्य तथा दो
उपवर्ग प्रत्येक में निम्नलिखित हैं―
(i) अनवीकरणीय संसाधन (Non-renewable resources)―
(क) ऊर्जा भंडार संसाधन-जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल ।
(ख) पदार्थ भंडार संसाधन-बहुत से गैर-ईंधन पदार्थ ।

(ii) नवीकरणीय संसाधन (Renewable resources)―
(क) प्रवाह ऊर्जा संसाधन―जैसे सौर ऊर्जा, पवन तथा तरंग ऊर्जा ।
(ख) नवीकरणीय भंडार संसाधन―जैसे वन और खनिज संसाधन ।

प्रश्न 8. संसाधनों के संरक्षण सिद्धान्त को समझायें।
उत्तर―संरक्षण का अर्थ है संसाधनों का उचित तथा बिना नष्ट किये हुए उपयोग
करना। संरक्षण एक विचारधारा है जो लोगों को संसाधनों का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्ण
करने तथा अनुचित उपयोग को रोकने के लिये प्रेरित करती है। इसका उद्देश्य
सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक तन्त्र को समान और योजनाबद्ध करना है।

प्रश्न 9."सभी जैविक संसाधन नवीकरणीय नहीं हैं।" इस कथन का
वर्णन करें।
उत्तर―जैवमंडल सभी जैविक संसाधनों का स्रोत है। जैविक संसाधनों में
वन, कृषि, फ़सल, वन्य जीवन और जानवर सम्मिलित हैं। कोयला और पेट्रोल
भी जैविक संसाधनों में सम्मिलित हैं क्योंकि उनकी उत्पत्ति जैविक पदार्थों से हुई
है जो पृथ्वी के अन्दर दब गये थे। फसल, वन, मछली आदि नवीकरणीय
संसाधन है लेकिन कोयला और पेट्रोलियम नवीकरणीय संसाधन नहीं हैं। ये
समाप्य संसाधन है। इन्ह पुनः बनने में लम्बा समय लगता है।

प्रश्न 10. सतत् पोषणीय विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर―सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है पर्यावरणीय संसाधनों का उनकी
आपूर्ति के अनुसार उपयोग करना जिससे उनकी चिरस्थायी आपूर्ति बनी रहे ।
सम्पत्ति या संसाधनों की कुल मात्रा कम नहीं होनी चाहिये । पारिस्थितिक स्थिरता
बनी रहनी चाहिए। इसलिये सतत् पोषणीय विकास का अर्थ मनुष्य की जीवन
गुणवत्ता बढ़ाना भी है। इसलिये प्रश्न जीवन के विकास का ही नहीं बल्कि जीवन
को अच्छी गुणवत्ता से है।

प्रश्न 11.एक संसाधन की उपयोगिता किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर―पर्यावरण का कोई भी उपयोगी तत्व संसाधन कहलाता है। एक
संसाधन तब तक संसाधन नहीं है जब तक कि उसका उपयोग नहीं होता है।
संसाधन की उपयोगिता निम्न बातों पर निर्भर करती है―
(i) मानव कुशलता।
(ii) मानव विकास का स्तर ।
(iii) वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान ।

प्रश्न 12. निम्नलिखित को नवीकरण और अनवीकरण संसाधनों में
वर्गीकृत करें―
(i) खनिज तेल, (ii) मृदा, (iii) ताप-विद्युत, (iv) कपास (v) लकड़ी,
(vi) पशु धन
उत्तर―
(i) खनिज तेल              ― अनवीकरणीय संसाधन
(ii) मृदा                       ― नवीकरणीय संसाधन
(iii) ताप-विद्युत             ― अनवीकरणीय संसाधन
(iv) कपास                   ― नवीकरणीय संसाधन
(v) लकड़ी                    ― नवीकरणीय संसाधन
(vi) पशुधन                   ― नवीकरणीय संसाधन

प्रश्न 13. संसाधन नियोजन की क्या आवश्यकता है?
उत्तर―(i) अधिकतर संसाधनों की आपूर्ति सीमित होती है।
(ii) अधिकतर संसाधनों का वितरण देश भर में असमान होता है।
(iii) संसाधनों का अत्यधिक प्रयोग पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
(iv) संसाधनों का कम उपयोग देश की अर्थव्यवस्था को अविकसित करता है।
(v) मानवीय संसाधनों को नियोजित करने की आवश्यकता है क्योंकि तभी
हमारे प्राकृतिक संसाधन विकसित हो पाएँगे।

प्रश्न 14. संसाधन नियोजन में क्या कदम उठाये जा रहे हैं?
उत्तर―पहली अवस्था में संसाधनों की सूची तैयार की जाती है। दूसरी
अवस्था में तकनीकी और आवश्यकता की दृष्टि से उनका परीक्षण किया जाता
है। अन्त में योजना इस प्रकार की जाती है कि उपलब्ध संसाधनों का कुशल
प्रयोग हो सके।

प्रश्न 15. 'भूमि एक प्रमुख संसाधन है।' इस कथन को समझायें।
उत्तर―भूमि एक प्रमुख संसाधन है―
(i) भूमि पर ही मनुष्य सहित सभी प्रकार के जीव पैदा होते हैं, पलते हैं,
बढ़ते हैं और अपनी आवश्यकताएँ पूर्ण करते हैं।

(ii) भूमि हमारी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। जैसे भोजन, वस्त्र
और आवास ।

(iii) बिना भूमि के कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता।
इसलिये भूमि बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा हमारे लिये उपयोगी है। प्रकृति ने
हमारे लिये भूमि प्रदान की है। यह एक प्रमुख संसाधन है।

प्रश्न 16. बंजर भूमि के क्षेत्र को बढ़ने से रोकने के लिये दो उपायों का
वर्णन करें
उत्तर―वृक्षारोपण (Afforestation) : वृक्ष मृदा अपरदन को रोकते हैं । वे
बाढ़ की विपत्ति को कम करते हैं तथा मृदा को उर्वरा बनाते हैं।
         आश्रय बंध बनाना (Planting Shelter Bunds): पवन अपरदन बंजर
भूमि को बढ़ावा देता है । यह झाड़ियों और वृक्षों को लगाकर रोका जा सकता है।
वनस्पति से पवन की गति कम हो जाती है और धूलकण गतिमान होने से रुक
जाते हैं।

प्रश्न 17. वनों का क्षेत्र बढ़ाना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर―हमारे देश में वन भूमि अनुपात से कम है। पारिस्थितिक सन्तुलन को
बनाये रखने के लिये वनों का क्षेत्र बढ़ाना बहुत आवश्यक है। इससे हमें
निम्नलिखित लाभ हैं―
(i) वन्य जीवन और उनके संरक्षण में सहायक है।
(ii) सूखा की घटनाओं को कम करता है।
(iii) उपमृदा में जल को सोखने का काम करता है।
(iv) वर्षाऋतु में नदी जल के प्रवाह को नियन्त्रित करने में सहायक है।
(v) मृदा संरक्षण में सहायता करता है।
(vi) बाढ़ जल के आयतन को कम करने में सहायक है।

प्रश्न 18. भूमि संसाधन के चार लाभ लिखें।
उत्तर―भूमि पर जीवन है। यह लाखों लोगों को भोजन प्रदान करती है।
कृषि अर्थव्यवस्था भूमि पर ही आधारित है। निम्न स्तर के खनिजों के लिये खनन
नहीं किया जाता । चलवासी लोग कृषि की अपेक्षा जानवरों को चराना अधिक
पसंद करते हैं। भवन तथा सड़क तीव्र ढाल पर बनाये जा सकते हैं।

प्रश्न 19. लाल मृदा और लैटेराइट मृदा में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर―
                लाल मृदा                                   लैटेराइट मृदा
(1) लाल मृदा आग्नेय और रूपान्तरित      (1) यह मृदा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों
चट्टानों के क्षेत्र में मिलती है।                           में पाई जाती है।
(2) यह अपक्षय के कारण बनती है।          (2) निक्षालन प्रक्रिया से इन मृदाओं
                                                                 का निर्माण होता है।
(3) इस मृदा में दानेदार कण होते हैं।          (3) इस मृदा में बारीक कण होते हैं।
(4) यह मृदा मध्य प्रदेश, उड़ीसा               (4) यह पश्चिमी घाट तथा मेघालय में
तमिलनाडु आदि में पाई जाती है।                   मिलती है।

प्रश्न 20. जलोढ़ मृदा तथा काली मृदा में अन्तर बतायें।
उत्तर―
               जलोढ़ मृदा                              काली मृदा
(1) यह मृदा नदी द्वारा लाई गई है।         (1) यह मृदा लावा से बनी है।
(2) यह मृदा उत्तरी मैदानों और तटीय     (2) यह मृदा दक्कन पठार के उत्तरी-
मैदानों में पाई जाती है।                              पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
(3) यह छिद्रदार मृदा होती है।               (3) यह मृदा चिकनी तथा अछिद्रदार
                                                              होती है।
(4) इस मृदा में सूखे में दरार नहीं           (4) सूखे की स्थिति में इसमें दरार पड़
पड़ती।                                                    जाती हैं।
(5) गेहूँ की फसल के लिए बहुत            (5) कपास की फसल के लिए बहुत
उपयुक्त है।                                               उपयुक्त है।

प्रश्न 21. संसाधन संरक्षण के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर―
(i) उचित और न्यायिक उपयोग ।
(ii) यदि संभव हो तो उनका नवीकरण करना चाहिये।
(iii) वन उत्पाद और वन्य जीवों के शिकार पर रोक लगनी चाहिये ।
(iv) वन्य पशुओं का संरक्षण होना चाहिये।
(v) समाप्य संसाधनों का प्रतिस्थापन होना चाहिये।
(vi) संसाधन के संरक्षण कानून को लागू करने के लिये कठोर नियम बनाए
जाने चाहिए।
(vii) लोगों की दक्षता बढ़ाने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षण देना चाहिये।

प्रश्न 22. जैविक और अजैविक संसाधनों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर―जैविक और अजैविक संसाधनों में अंतर―
जैविक संसाधन                                         अजैविक संसाधन
(1) वे संसाधन जो पृथ्वी के जैवमंडल      (1) वे संसाधन जिनका निर्माण अजैविक
से प्राप्त होते हैं।                                        तत्त्वों से होता है।
(2) इनको कार्बनिक संसाधन भी कहते     (2) इनको अकार्बनिक संसाधन भी कहते
हैं।                                                             हैं।
(3) ये नवीकरणीय है।                            (3) ये अनवीकरणीय संसाधन है।
(4) ये बाह्य पर्यावरण से प्रभावित हैं।        (4) ये पर्यावरण से मुक्त हैं।
(5) उदाहरण-फसलें, जानवर, पक्षी           (5) उदाहरण-कोयला, पेट्रोल, प्राकृतिक
और मछली।                                               गैस, लौह अयस्क, ऐलुमिनियम
                                                                 आदि।

प्रश्न 23. मृदा बनने की प्रक्रिया में उत्तरदायी प्रमुख कारकों का
उल्लेख करें।
उत्तर―(i) मृदा बनने की प्रक्रिया में उच्चावच, जनक शैल अथवा संस्तर
शैल, जलवायु, वनस्पति तथा अन्य जैव पदार्थ और समय मुख्य कारक हैं।

(ii) प्रकृति के अनेकों तत्त्व जैसे तापमान परिवर्तन, बहते जल की क्रिया,
पवन, हिमनदी और अपघटन क्रियाएँ आदि मृदा बनने की प्रक्रिया में योगदान देते है।

(iii) मृदा में होनेवाले रासायनिक तथा जैविक परिवर्तन भी महत्त्वपूर्ण हैं।

(iv) मृदा । जैव (ह्यूमस) और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है ।

प्रश्न 24. कपास उगाने के लिए किस मृदा को आदर्श समझा जाता
है ? इस मृदा का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर―काली मृदा । काली मृदा का विकास दक्षिण पठार में ज्वालामुखी
गतिविधियों तथा विभिन्न जलवायविक दशाओं के दौरान एक बड़े क्षेत्र में फैले
लावा के ठोस होने से होता है।

प्रश्न 25. उन कारकों का वर्णन करें जिन पर भारत भू-उपयोग प्रारूप
निर्भर करते हैं।
उत्तर―भू-उपयोग भौतिक तथा मानवीय कारकों द्वारा निर्धारित होता है―
(i) भौतिक कारक-भू-आकृति, जलवायु तथा भूमि का प्रकार ।
(ii) मानवीय कारक-जनसंख्या घनत्व, प्रौद्योगिक क्षमता, संस्कृति तथा परम्पराएँ।

प्रश्न 26. मृदा अपरदन (Soil erosion) क्या है ? किन्हीं चार राज्यों के
नाम बताएँ जो अवनालिका अपरदन के द्वारा प्रभावित होते हैं।
उत्तर―प्राकृतिक कारकों विशेषत: वायु तथा जल से मिट्टी का एक स्थान
से दूसरे स्थान पर हटना मृदा अपरदन कहलाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,
बिहार तथा राजस्थान।

प्रश्न 27. मृदा का मनुष्य के लिए क्या महत्व है ?
उत्तर―मनुष्य के लिये मृदा का महत्त्व―सभी कृषि संसाधनों में मृदा सबसे
अधिक महत्त्वपूर्ण हैं तथा प्रमुख स्रोत है। हमारी अधिकतर आवश्यकतायें भोजन,
वस्त्र आदि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मृदा से ही पूरी की जाती है। इसलिए
मृदा का मनुष्य के लिये बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 28. भूमि-क्षरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर―भूमि का कृषि के लिये अनुपयुक्त हो जाना भूमि क्षरण कहलाता है।
यह कई कारणों से होता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रकृति भी कुछ सीमा तक
इसके लिए उत्तरदायी है लेकिन मनुष्य की अदूरदर्शिता के कारण भूमि कृषि के
लिये अनुपयुक्त हो जाती है।

प्रश्न 29. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए क्या कदम
उठाए जा सकते हैं?                                      [JAC 2015 (A)]
उत्तर―(क) सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई (Terracing and contour
bunding)―पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई मृदा संरक्षण का
प्रभावशाली तथा सबसे पुराना तरीका है। पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी
सीढ़ियाँ बना दी जाती हैं। दाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाएँ बना दी जाती है।

(ख) वन लगाना (Forestation)―वनों के अधीन क्षेत्र को बढ़ाना मृदा
संरक्षण का सबसे बेहतर तरीका है। पेड़ों की कटाई को रोककर नए क्षेत्रों में
अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने के प्रयल करने चाहिए।

(ग) पशुओं की चराई को सीमित करना (Restricted grazing of
animals)-मृदा के अपरदन को रोकने के लिए पशुओं को विभिन्न चरागाहों में।
ले जाना चाहिए।

प्रश्न 30. जैव तथा अजैव संसाधन क्या हैं ? कुछ उदाहरण दें। [NCERT]
उत्तर― (क) जैव―"वे सभी संसाधन, जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है
और जिनमें जीवन व्याप्त है, जैव संसाधन कहलाते हैं।" जैव संसाधन हैं-वन,
प्राणिजात आदि।

(ख) अजैव―"वे सभी संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव
संसाधन कहलाते हैं।" अजैव संसाधन नवीकरण योग्य तथा अनवीकरण योग्य भी
होते हैं। भूमि तथा जल नवीकरण योग्य अजैव संसाधन हैं जबकि लोहा तथा
बॉक्साइट अनवीकरण योग्य अजैव संसाधन हैं।

प्रश्न 31. मृदा के प्रकार के संदर्भ में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें―
(i) किन्हीं चार क्षेत्रों अथवा राज्यों के नाम बताएँ जहाँ जलोढ़ मृदा का
विकास होता है।
(ii) किन्हीं चार क्षेत्रों अथवा राज्यों के नाम बताएँ जहाँ लाल तथा
पीली मृदा का विकास होता है।
(iii) किन्हीं चार क्षेत्रों अथवा राज्यों के नाम बताएँ जहाँ लैटेराइट मृदा
का विकास होता है।
उत्तर―(i)राजस्थान, गुजरात, महानदी तथा गोदावरी के डेल्य, कृष्णा तथा
कावेरी नदियों के डेल्टा।

(ii) उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भाग तथा पश्चिमी घाट ।

(iii) कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु तथा मध्य प्रदेश ।

प्रश्न 32. जलोढ़ मृदा तथा लाल मृदा में दो प्रमुख अंतर बताएँ।
उत्तर―
        जलोढ़ मृदा                                            लाल मृदा
(1) जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है       (1) यह कम उपजाऊ होती है तथा
तथा पोटाश और चूने जैसे खनिज                    इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, चूने
तत्त्वों से संपन्न होती है।                                  तथा ह्यूमस की कमी होती है।
(2) अधिकतर जलोढ़ मृदा नदियों द्वारा            (2) अधिकतर लाल मृदा का निर्माण
लाए गए निक्षेपों से बनी है।                                  प्राचीन रवेदार, आग्नेय तथा
                                                                       रूपातरित चट्टानों के अपक्षय के
                                                                       कारण होता है।

प्रश्न 33. निम्नलिखित प्रकार की मृदा से संबधित दो महत्त्वपूर्ण
फसलों के नाम बताएँ―
(क) जलोढ़ मृदा (ख) काली मृदा (ग) मरुस्थली मृदा (घ) लेटराइट मृदा ।
उत्तर―(क) जलोढ़–गेहूँ तथा चावल ।
(ख) काली–कपास तथा गन्ना।
(ग) मरुस्थली–जौ तथा रागी।
(घ) लैटेराइट–कहवा तथा चाय ।

प्रश्न 34. भारत जैसे देश में संसाधनों की उपलब्धता में
विविधता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर―भारत जैसे देश में संसाधन की उपलब्धता काफी अधिक है।
प्राकृतिक संसाधन की दृष्टि से दुनियाँ के पाँच सम्पन्न देशों में से भारत भी एक
है। भारत में संसाधन का वितरण सभी क्षेत्रों में एक समान नहीं है। भारत के
कुछ राज्यों, जैसे―झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में खनिज
संसाधनों की बहुलता है। और दूसरी और उत्तरी-पूर्वी भारत में वर्षा जल पर्याप्त
मात्रा में है इसलिए उन क्षेत्रों में जल विद्युत की संभावना बहुत अधिक है लेकिन
इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हो
पाया है। भारत के उत्तरी पर्वतीय भागों में वनों, फलोत्पादन व जल विद्युत
उत्पादन का पर्याप्त भंडार है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से और पर्यटन की दृष्टि
भी काफी महत्त्वपूर्ण है। भारत के कुछ प्रांतों में, जैसे-राजस्थान, गुजरात आदि
भाज्यों में प्राकृतिक संसाधनों की कमी है लेकिन सांस्कृतिक संसाधनों की दृष्टि से
ये संपन्न राज्य हैं।

प्रश्न 35. भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को सुलझाने के उपायों की
व्याख्या कीजिए।
उत्तर―भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को निम्नलिखित तरीके से सुलझाया
जा सकता है―
(i) वनरोपण या पेड़ पौधों को लगाकर अधिक वर्षा वाले और मरुसथलीय
भागों में भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।

(ii) चारागाह भूमि का उचित प्रबंधन करके भी भूमि निम्नीकरण को कम
किया जा सकता है।

(iii) रेतीले टोलों में काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाने की प्रक्रिया से
भी भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।

(iv) बर भूमि के उचित प्रबंधन, खनन, नियंत्रण और औद्योगिक जल
परिष्करण के द्वारा भी भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।

                             दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोतर

प्रश्न 1. भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960-61
से वन के अंतर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर―भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। हम भूमि पर रहते
हैं और कई प्रकार के आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं। हम भूमि का प्रयोग विभिन्न
तरीकों से करते हैं।
    भारत में भूमि उपयोग का प्रारूप―भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख
वर्ग कि० मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 93
प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहाँ भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों
में होता है―
(i) कृषि, (ii) चरागाह, (iii) वन, (iv) उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव
आवास।
(i) कृषि―भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 51 प्रतिशत भाग पर कृषि की
जाती है। देश में 46 प्रतिशत भूमि शुद्ध बोए क्षेत्र के अधीन है। 1 प्रतिशत भाग
फलों की कृषि के अंतर्गत आता है। 8 प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है। परती भूमि
से अभिप्राय उस सीमांत भूमि से है जिसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया
जाता है। परन्तु खादों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण परती भूमि का प्रतिशत
कम हो रहा । यदि परती भूमि को शुद्ध बोये गए क्षेत्र में मिला दिया जाए तो
देश का 54% क्षेत्र बोये गए क्षेत्र में आ जाएगा। देश के विभिन्न राज्यों में शुद्ध
बोये गए क्षेत्र में बहुत अधिक भिन्नता पाई जाती है। पंजाब तथा हरियाणा का
80% से भी अधिक भाग शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। इसके विपरीत अरुणाचल
प्रदेश, मिजोरम, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तथा मणिपुर में शुद्ध बोया गया क्षेत्र
10% से भी कम है।

(ii) चरागाह―हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है। यह
कुल भूमि का केवल 4 प्रतिशत ही है। फिर भी यहाँ संसार में सबसे अधिक पशु
पाले जाते हैं। इन्हें प्रायः पुआल, भूसा तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है।
कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराए जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अंतर्गत रखा गया है।

(iii) वन―हमारे देश में लगभग 22 प्रतिशत भूमि पर वन हैं। आत्म-निर्भर
अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक संतुलन के लिए देश के 33 प्रतिशत क्षेत्रफल का
वनों के अधीन होना आवश्यक है। अतः हमारे देश में वन-क्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि
से बहुत कम हैं।

(iv) उद्योग, यातायात, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास―देश की
शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव
आवास के लिए किया जा रहा है। परंतु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन-स्तर
के कारण मानव आवास के लिए भूमि की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है।
परिणामस्वरूप अन्य सुविधाओं के विकास के लिए भूमि का निरंतर अभाव होता
जा रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का उपयोग संतुलित नहीं है। अतः
हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों में संतुलन बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना
चाहिए।
    वनों के अधीन भूमि में कम वृद्धि―भारत में वनों के अधीन भूमि में
अधिक वृद्धि न हो पाने का मुख्य कारण हमारी जनसंख्या में हो रही वृद्धि है।
मानव आवास के लिए वनों को काटा जाता है। कृषि योग्य भूमि प्राप्त करने के
लिए भी वनों का सफाया किया जाता है, ताकि बढ़ती हुई जनसंख्या को भोजन
जुटाया जा सके।

प्रश्न 2. प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का
अधिक उपभोग कैसे हुआ है ? [JAC 2009 (A): 2012(A); 2014 (A); 2016 (A)]
उत्तर―इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास ने
संसाधनों की मांग में अत्यधिक तेजी ला दी है। यह बात आगे दिए गए विवरण
से स्पष्ट हो जाएगी―
(i) प्रौद्योगिक विकास―मानव ने आज हर क्षेत्र में नई-नई तकनीकें खोज
निकाली हैं। इनके फलस्वरूप उत्पादन की गति बढ़ गई है। आज उपभोग की
प्रत्येक वस्तु का उत्पादन व्यापक स्तर पर होने लगा है। जनसंख्या में वृद्धि के
साथ-साथ वस्तुओं की मांग भी बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त उपभोग की प्रकृति
भी बदल गई है। आज प्रत्येक उपभोक्ता पहली वस्तु को त्याग करके उसके
स्थान पर उच्च कोटि की वस्तु का उपयोग करना चाहता है। इन सबके लिए
अधिक-से-अधिक कच्चे माल को आवश्यकता पड़ती है। अतः कच्चे माल की
प्राप्ति के लिए हमारे संसाधनों पर बोझ बढ़ गया है।

(ii) आर्थिक विकास―आज संसार में आर्थिक विकास की होड़ लगी हुई
है। विकासशील राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जुटे हैं। इसके
लिए वे अपने उद्योगों का विस्तार कर रहे हैं तथा परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं।
इसका सीधा संबंध संसाधनों के उपभोग से ही है। दूसरी ओर विकसित राष्ट्र
अपने आर्थिक विकास से प्राप्त धन-दौलत में और अधिक वृद्धि करना चाहते हैं।
यह वृद्धि संसाधनों के उपभोग से ही संभव है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य
अमेरिका संसार के औसत से पांच गुणा अधिक पेट्रोलियम का उपयोग करता है।
अन्य विकसित देश भी पीछे नहीं हैं।
        सच तो यह है कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास अधिक-से-अधिक
संसाधनों के उपभोग की जननी है।

प्रश्न 3. संसाधन नियोजन क्या है ? संसाधन नियोजन के लिए उठाए
गए कदमों का वर्णन करें।
उत्तर―संसाधन नियोजन संसाधनों के सही तथा विवेकपूर्ण उपयोग की
तकनीक अथवा कौशल है। संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें
निम्नलिखित सोपान हैं―
(i) देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका
बनाना । इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक
और मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना है।

(ii) संसाधन विकास योजनाएं लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी,
कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना ।

(iii) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय
स्थापित करना।

प्रश्न 4. संसाधनों के संरक्षण की क्या आवश्यकता है ? संसाधनों के
संरक्षण के संबंध में गाँधी जी के क्या विचार थे ?
उत्तर―संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि―
(i) अधिकतर संसाधनों की सीमित आपूर्ति है।
(ii) संसाधनों के अति उपयोग के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा होती हैं।
(iii) संसाधनों के अति उपयोग के कारण सामाजिक आर्थिक समस्याएं पैदा
होती हैं।
       गाँधीजी ने संसाधनों के संरक्षण पर अपनी चिंता इन शब्दों में व्यक्त की
है―"हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन
किसी के लालच की संतुष्टि के लिए नहीं।" उनके अनुसार विश्व स्तर पर
संसाधन हास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की
शोषणात्मक प्रवृत्ति जिम्मेदार है। वे अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके
स्थान पर अधिक बड़े जनसमुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे।

प्रश्न 5. समाप्यता के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण करें।
उत्तर―(i) नवीकरण योग्य―'नवीकरण संसाधन प्राकृतिक संसाधन होते हैं,
जिनका बार-बार प्रयोग किया जा सकता है अथवा जिन्हें भौतिक, रासायनिक तथा
यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत अथवा पुनः उत्पन्न किया जा सकता है ।" सौर
ऊर्जा, पवन, जल, मृदा आदि ऊर्जा के कुछ नवीकरण योग्य संसाधन हैं।

(ii) अनवीकरण योग्य संसाधन―"अनवीकरण योग्य संसाधन प्राकृतिक
संसाधन होते हैं, जिन्हें थोड़े समय में पुनः उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
जीवाश्म ईंधन जैसे कि तेल, गैस तथा कोयला अनवीकरण योग्य संसाधनों के
उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इन्हें अनवीकरण योग्य
संसाधन कहा जाता है क्योंकि एक बार प्रयोग करने पर ये सदा के लिए समाप्त
हो जाते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जीवाश्म ईंधनों के भंडार केवल एक
या दो शताब्दियों तक के लिए हैं।

प्रश्न 6. उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण करें।
उत्तर―(i) जैव-"वे सभी संसाधन, जिन्हें जीवमंडल से प्राप्त किया जाता
है तथा जिनमें जीवन व्याप्त है, जैव संसाधन कहे जाते हैं।" वन, प्राणिजात आदि
नवीकरण योग्य जैव संसाधन हैं।

(ii) अजैव―सभी संसाधन जो निर्जीव वसतुओं से बने हैं, अजैव संसाधन
कहलाते हैं। अजैव संसाधन नवीकरण योग्य तथा अनवीकरण योग्य भी होते हैं।
भूमि तथा जल नवीकरण योग्य अजैव संसाधन हैं जबकि लोहा तथा बॉक्साइट
अनवीकरण योग्य अजैव संसाधन है।

प्रश्न 7. स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण करें।
उत्तर―(i) व्यक्तिगत संसाधन―वे संसाधन जिन पर निजी व्यक्तियों का
स्वामित्व होता है, व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं। भूखंड, खेत, घर, कार, पुस्तक
आदि कुछ व्यक्तिगत संसाधनों के उदाहरण हैं।

(ii) सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन―वे संसाधन जो समुदाय के सभी
सदस्यों को उपलब्ध होते हैं, सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन कहलाते हैं । गाँव
के तालाब, सार्वजनिक पार्क, खेल के मैदान आदि सामुदायिक संसाधनों के कुछ
उदाहरण हैं।

(iii) राष्ट्रीय संसाधन―वे सभी संसाधन जिन पर राज्य अथवा केन्द्र सरकार
का नियंत्रण होता है, राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। राजनीतिक सीमाओं के अन्दर
के सभी संसाधन राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं क्योंकि देश की सरकार को
अधिकार है कि वह व्यक्तिगत संसाधनों को भी अधिग्रहित कर सकती है।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन―इन संसाधनों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ नियंत्रित
करती हैं । तट रेखा से 200 कि० मी० की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) से परे
खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी एक देश का अधिकार नहीं हैं और बिना
किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के कोई देश उनका उपयोग नहीं कर
सकता । भारत के पास अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र से दूर हिन्द महासागर की तलहटी
से मैंगनीज ग्रंथियों का खनन करने का अधिकार है।

प्रश्न 8. विकास के स्तर के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण करें।
उत्तर―(i) संभावी संसाधन (Potential Resources)―यह वे संसाधन
हैं, जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं, परंतु इनका उपयोग नहीं किया गया है।
उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में
पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार संभावना है, परन्तु इनका सही ढंग से
विकास नहीं हुआ है।

(ii) विकसित संसाधन (Developed Resources)―वे संसाधन जिनका
सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित
की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी
और उनकी सम्भाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, भारत के
पास कोयला संसाधनों के कुल 2,47,847 मिलियन टन भंडार हैं।

(iii) भंडार (Stock)―पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की
आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में
उसकी पहुँच से बाहर हैं; भंडार में शामिल हैं। उदाहरण के लिए जल दो
ज्वलनशील गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है तथा यह ऊर्जा का
मुख्य स्रोत बन सकता है। परन्तु इस उद्देश्य से इनका प्रयोग करने के लिए हमारे
पास आवश्यक तकनीकी ज्ञान नहीं है।

(iv) संचित कोष (Reserves)―यह संसाधन भंडार का ही हिस्सा है,
जिन्हें उपलब्ध तकनीकी की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है परंतु भावी
पीढ़ियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इनके प्रयोग को अभी स्थगित कर
दिया गया है। उदाहरण के लिए भारत के पास वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा
करने के लिए पर्याप्त मात्रा में वन है, परंतु भावी पीढ़ियों के लिए उन्हें सुरक्षित
रखा गया है।

प्रश्न 9. नवीकरण योग्य तथा अनवीकरण योग्य संसाधनों में अंतर
स्पष्ट करें।
उत्तर―
नवीकरण योग्य                                       अनवीकरण योग्य
(1) ये वे संसाधन हैं जिनका घोड़े             (1) ये वे संसाधन है जिनका थोड़े।
समय में ही नवीकरण किया जा                   समय में नवीकरण नहीं किया
सकता है।                                                सकता।
(2) इन्हें बार-बार प्रयोग किया जा            (2) इन्हें बार-बार प्रयोग नहीं किया ।
सकता है।                                               जा सकता।
(3) ये पर्यावरण में प्रदूषण नहीं फैलाते ।    (3) य पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।
(4) ये प्रकृति के मुफ्त उपहार हैं।              (4) ये प्रकृति के मुफ्त उपहार नहीं है।
(5) पवन, जल, सौर ऊर्जा आदि               (5) खनिज, तेल आदि कुछ अनवीकरण
नवीकरण योग्य संसाधन हैं।                            योग्य संसाधन हैं।

प्रश्न 10. मृदा अपरदन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।            [JAC 2011 (A)]
उत्तर―प्राकृतिक शक्तियों विशेषतया पवन तथा जल द्वारा भूमि की ऊपरी परत
हटने को मृदा अपरदन कहा जाता है। तेज बहनेवाला जल तथा तेज बहनेवाली
हवाएँ मृदा के शक्तिशाली एजेंट हैं। ये मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ
बहा कर ले जाते हैं और भूमि को कृषि के लिए अनुपयोगी बना देते हैं। ऐसी भूमि
को उत्खात भूमि (Bad land) कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में भूमि का अपरदन खतरे का
कारण बन गया है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात की कृषि भूमि
के बड़े भाग खड्ड-बीहड़ों (Ravines) में परिवर्तित हो गए हैं।
    अवनालिका अपरदन (Gully erosion) तो सबसे अधिक विचित्र प्रकार का
अपरदन है। इसने देश की 40 लाख हेक्टेयर भूमि को अनुपजाऊ बना दिया है।
बाँधों के निर्माण से पानी के बहाव को कम करके, अधिक पेड़ लगाकर, पशुओं
की चराई पर रोक लगाकर तथा उचित कृषि तकनीक को अपनाकर मृदा के
अपरदन को रोका जा सकता है।

प्रश्न 11. मृदा के प्रमुख प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर―भारत की मिट्टी को छह प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है, जो
इस प्रकार हैं―
(i) जलोढ़ मृदा―जलोढ़ मृदा भारत के अधिकांश भागों में पाई जानेवाली
सर्वाधिक उपजाऊ मृदा है। यह नदी घाटियों, बाढ़ के मैदानों तथा डेल्य के क्षेत्रों
में नदियों के निक्षेपण से बनती है। यह भारत की भू-सतह के लगभग 24 प्रतिशत
भाग में पाई जाती है।

        विशेषताएँ―यह सर्वाधिक उपजाऊ मृदा है। इसके कण बहुत महीन होते
हैं और उसमें पोटाश तथा फॉस्फोरिक अम्ल की बहुलता होती है।

(ii) रेगड़ या काली मृदा―यह रंग में काली और कपास की कृषि के लिए
सर्वाधिक उपयुक्त होती है। इस मृदा को कपास की मृदा भी कहते हैं। यह
दक्षिण पठार में लावा के अपक्षरण के कारण निर्मित हुई हैं।
विशेषताएँ―इस मृदा में पोटाश, चूना तथा कैल्शियम की अधिकता है।
इसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है। मानसून से पहले इस मृदा
में गहरी दरारें पड़ जाती हैं।

(iii) लाल मृदा―यह मृदा काली मृदा के तीनों ओर दक्षिण, पूर्व और उत्तर
दिशा में फैली हैं । यह लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाई जाती है।
लौह तत्व अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है

विशेषताएँ―इस मृदा में नाइट्रोजन, एमस, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूने का
अभाव होता है।

(iv) लैटेराइट मृदा―यह 1.26 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यह
मृदा कर्नाटक, केरल, उड़ीसा, असम, मेघालय और दक्कन के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई
जाती है।

विशेषताएँ―यह मृदा भारी वर्षा द्वारा गहन निक्षालन के फलस्वरूप बनती
है। यह चिकनी मिट्टी और लाल बलुई पत्थर की बजरी से बनी है, अत: इसका
रंग लाल होता है। इस मृदा में नाइट्रोजन, पोटाश, पोटाशियम और ऑर्गेनिक द्रव्य
की प्रायः कमी होती है किन्तु इस पर खाद का तुरंत असर होता है।

(v) पर्वतीय मृदा―इस प्रकार की मृदा वनों से व्युत्पन जैविक पदार्थों के
निक्षेपण से निर्मित होती है। यह मृदा देश के पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 2.85 लाख
वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।

विशेषताएँ―इसमें ह्यूमस की प्रचुर मात्रा पाई जाती है किन्तु पोटाश,
फॉस्फोरस और चूने का अभाव होता है।

(vi) मरुस्थलीय मृदा―यह मृदा देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में शुष्क तथा
अर्ध शुष्क परिस्थितियों में निर्मित हुई है। लगभग 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर
क्षेत्र में फैली हुई है।

विशेषताएँ―इस मृदा में ह्यूमस तथा नाइट्रोजन की मात्रा बहुत कम होती है।
इसमें नमी की मात्रा कम होती है। इस मृदा में विलेय लवण का अनुपात बहुत
अधिक होता है। इसका कुछ अंश स्थानीय मूल का होता है और कुछ अंश सिंधु
घाटी से उड़कर आता है।

प्रश्न 12. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil) की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर―(i) जलोढ़ मृदा बहा कर लाई गई मृदा है। अधिकतर मृदाएँ नदियों
द्वारा बहाकर लाए गए निक्षेपों से बनी है जैसे कि इंडो-गंगा के मैदान । इस प्रकार
इन मृदाओं का विकास बहा कर लाए तत्वों से हुआ।

(ii) इस मृदा में रेत, सिल्ट तथा मृत्त्किा के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं।
नदी के ऊपरी भाग में मृदा मोटे कण वाली होती है, मध्य भाग में सामान्य तथा
निचले भाग में महीन कणोंवाली होती है।

(iii) कणों के आकार के अतिरिक्त मृदाओं की पहचान उनकी आयु से भी
होती है। आयु के आधार पर जलोढ़ मृदाएँ दो प्रकार की होती हैं-पुराना जलोढ़
तथा नया जलोढ़ । पुराना जलोढ़ को 'बांगर' तथा नया जलोढ़ को 'खाद' कहते हैं।

(iv) बांगर मृदा में 'कंकड़' ग्रन्थियों की मात्रा अधिक होती है तथा
कैल्शियम कार्बोनेट युक्त होती है। नया जलोढ़ पुराने जलोढ़ से अधिक उपजाऊ
होता है।

प्रश्न 13. काली मृदा की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर―(i) काली मृदा का निर्माण अत्यन्त महीन मृत्तिका से होता है।

(ii) यह मृदा कैल्शियम कार्बोनेट, मैगनीशियम, पोटाश तथा चूने जैसे
पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण होती है।

(iii) इसमें फास्फोरस की मात्रा कम होती है।

(iv) इसमें अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता होती है।

(v) शुष्क मौसम में इस मृदा में गहरी दरारें पड़ जाती हैं, जिससे इनमें अच्छी
तरह वायु मिश्रण हो जाता है।

(vi) गीली होने पर यह मृदा चिपचिपी हो जाती है और इसको जोतना
मुश्किल हो जाता है. इसलिए इसकी जुताई मॉनसून प्रारम्भ होने की पहली बौछार
से ही शुरू कर दी जाती है।

प्रश्न 14. लाल मृदा का निर्माण कैसे होता है ? इसकी किन्हीं चार
विशेषताओं तथा इस प्रकार की मृदा में उगाई जानेवाली फसलों का उल्लेख करें।
उत्तर―लाल मृदा का निर्माण अधिकतर प्राचीन रवेदार आग्नेय चट्टानों के
अपक्षय के कारण होता है।
विशेषताएँ―(i) यह मृदा दोमट होती है जो कि अत्यधिक मोटे कणों से
निर्मित होती है।

(ii) इस मृदा का रंग सामान्यतः लाल होता है, जो कि भूग, चॉकलेट अथवा
पीलापन लिए हुए होता है। इसका लाल रंग लौह धातु के प्रसार के कारण होता
है। इसका पीला रंग इसमें जलयोजन के कारण होता है।

(iii) इस मृदा में फॉस्फोरस जैव तथा नाइट्रोजन पदार्थ की कमी होती है,
परंतु यह पोटाश से संपन्न होती है। इसमें उर्वरकों के प्रयोग से फसलों को उगाया
जाता है।
      फसलें―कपास, गेहूँ, चावल, दालें, बाजरा, तंबाकू आदि फसलों को उर्वरकों
तथा सिंचाई के प्रयोग से उगाया जा सकता है।

प्रश्न 15. पर्वतीय मृदा का निर्माण कैसे होता है ? पर्वतीय मृदा की
कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर―ये मृदाएँ आमतौर पर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जहाँ
पर्याप्त मात्रा में वर्षा-वन उपलब्ध हैं। इन मृदाओं ने भारत के कुल भू-क्षेत्र का
लगभग 8% घेरा हुआ है।
          निर्माण―इन मृदाओं का निर्माण बर्फ, वर्षा, तापमान की विभिन्नता के
कारण यांत्रिकी अपक्षय से होता है
विशेषताएँ―(i) इन मृदाओं के गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार
बदलाव आता है।

(ii) ये मृदाएँ हयूमस में संपन्न होती हैं परन्तु इनमें पोटाश, फॉस्फोरस तथा
चूने की कमी होती है।

(iii) ये मृदाएँ चाय, कहवा, मसाले तथा उष्णकटिबंधीय फलों के उगाने के
लिए उपयुक्त होती हैं।

(iv) ये मृदाएँ दोमट और सिल्टदार होती हैं परन्तु ऊपरी दालों पर इनका
गठन मोटे कणों का होता है। हिमाच्छादित क्षेत्रों में ये अधिसिलिक (acidic) तथा
ह्यूमस रहित होती हैं। नदी घाटी के निचले क्षेत्रों में ये मृदाएँ उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 16. मरुस्थली मृदा की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर―मरुस्थली मृदा ने भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 4% घेरा
हुआ है। ये मृदाएँ उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ 50 सें०मी० से भी कम वार्षिक
वर्षा होती है।
विशेषताएँ―(i) इनका रंग लाल और भूरा होता है।

(ii) ये मृदाएँ आमतौर पर लवणीय होती हैं।

(iii) शुष्क जलवायु तथा वनस्पति की कमी के कारण इस मृदा में जैव
पदार्थों का कम प्रतिशत होता है।

(iv) यह मृदा क्षारीय होती है क्योंकि वर्षा की कमी के कारण घुलनशील
नमक की मात्रा कम नहीं होती।

(v) मृदा की सतह के नीचे कैल्शियम की मात्रा बढ़ती चली जाती है और
नीचे की परतों में चूने के कंकड़ की सतह पाई जाती है। इसके कारण मृदा में
जल अंत:स्पदन (Infiltration) अवरुद्ध हो जाता है।

(vi) यह मृदा अनुपजाऊ होती है परंतु इस मृदा को सही तरीके से सिंचित
करके तथा उर्वरकों के प्रयोग से बाजरा, कपास, गेहूँ, ज्वार, मक्का, दालें आदि
उगाए जा सकते हैं।

प्रश्न 17. मृदा अपरदन क्या है ? इसके संरक्षण के उपायों का वर्णन करें।
                                                                      [JAC 2010 (C)]
उत्तर―प्राकृतिक कारकों विशेषतः वायु तथा जल से मिट्टी का एक स्थान
से दूसरे स्थान पर हटना मृदा अपरदन कहलाता है। प्रायः वायु के वेग तथा नदी
अथवा वर्षा के जल द्वारा भी पर्याप्त मात्रा में मृदा अपरदन होता है।
मृदा अपरदन के संरक्षण के निम्नांकित प्रमुख उपाय हैं―
(i) पट्टी कृषि―पट्टी कृषि के अन्तर्गत बड़े खेतों को पट्टियों में
बाँटा जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती
है। ये पवन द्वारा जनित बल को कमजोर करती हैं।

(ii) रक्षक मेखला―फसलों के बीच में पेड़ों की कतारें लगाना रक्षक
मेखला कहलाता है जिससे अपरदन पर अंकुश लगाया जा सकता है।

(iii) समोच्च जुताई―ढालवाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर
हल चलाने से ढाल के साथ जल-बहाव की गति घटती है जिससे
अपरदन को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(iv) सीढ़ीदार खेती―पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेती मृदा-संरक्षण का
सबसे पुराना तथा प्रभावशाली उपाय है। पहाड़ी ढलानों को
काटकर कई चौड़ी सीढ़ियाँ बना ली जाती हैं तथा उसी पर खेती
की जाती है।

प्रश्न 18. लैटेराइट मृदा के निर्माण तथा उसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर―निर्माण-लैटेराइट मृदा उच्च तापमान तथा भारी वर्षावाले क्षत्रों में
विकसित होती है। यह भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम है।
विशेषताएँ―(i) ये मृदाएँ प्रकृति से अधिसिलिक होती हैं तथा गठन में मोटे
कणोंवाली।

(ii) नाइट्रोजन, पोटाशियम तथा जैव तत्वों की कमी के कारण लैटेराइट मृदा
में उपजाऊ शक्ति कम होती है तथा यह कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होती । परन्तु
सही तरीके से उर्वरकों के प्रयोग तथा सिंचाई से कुछ फसलें उगाई जा सकती हैं।

(iii) जैसाकि यह मृदा मजबूत तथा टिकाऊ होती है इसलिए यह भवन
निर्माण को बहुमूल्य सामग्री प्रदान करती है।

प्रश्न 19. मृदा अपरदन क्या है ? भारत में प्रचलित मृदा अपरदन के
प्रमुख प्रकारों का वर्णन करें।                        [JAC 2010 (C)]
उत्तर―पवन तथा जल जैसी प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूमि की ऊपरी परत
के तेजी से बहाव को मृदा अपरदन कहते हैं। सामान्यतया मृदा के बनने और
अपरदन की क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं तथा दोनों में संतुलन होता है। प्राकृतिक
तथा मानवीय कारकों द्वारा यह संतुलन बिगड़ जाता है।
मृदा अपरदन के प्रकार―
(क) जल अपरदन (Watererosion)―जल मृदा अपरदन का शक्तिशाली
एजेन्र है। जल के कारण होनेवाले अपरदन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं―
(i) चादर अपरदन (Sheet erosion)―जब मृदा की ऊपरी परत विस्तृत
क्षेत्र में बहते जल द्वारा बह जाती है, तो उसे चादर अपरदन कहते है

(क) अपरदन से पूर्व             (ख) चादर अपरदन के
मृदा की ऊपरी परत             बाद मृदा की ऊपरी परत

 (ii) छोटी नदी अपरदन (Rill erosion)―यह चादर अपरदन का दूसरा
चरण होता है। यदि अपरदन बिना रुके काफी समय के लिए होता रहे, तो छोटी
उंगली के आकार की नालियां विकसित हो जाती हैं; जो कुछ सेमी० गहरी होती
हैं। समय के साथ-साथ इन नदियों की संख्या बढ़ती जाती है तथा ये गहरी और
चौड़ी हो जाती हैं और पेड़ की शाखाओं तथा तने के समान लगने लगती हैं। इसे
छोटी नदी अपरदन कहते हैं।

(iii) अवनलिका अपरदन (Gully erosion)―यह चादर अपरदन का
तीसरा चरण है। मृदा के अधिक अपरदन के साथ छोटी नदियाँ गहरी तथा बड़ी
हो जाती हैं और अन्ततः अवनलिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। अवनलिका
अपरदन का प्रमुख कारण वनस्पति का नष्ट होना है। विशेष रूप से पेड़ों का
कटना, जिनकी जड़ें मिट्टी को बाँधे रखती हैं। अवनलिकाएँ कृषि भूमि का
कटाव कर देती हैं तथा पूरा क्षेत्र उत्खात भूमि में बदल जाता है। अवनलिका
अपरदन बीहड़-खड्डों के निर्माण के लिए भी उत्तरदायी है।

प्रश्न 20. उद्योगों के कारण भू-क्षरण (Land-degradation) कैसे
होता है?
उत्तर―(i) औद्योगीकरण प्रक्रिया के लिए खनिजों की आवश्यकता होती है
तथा खनिजों के खनन से वातावरण में बहुत बड़ी मात्रा में धूल तथा धुआँ मिल
जाता है।

(ii) खनिज उद्योगों की प्रक्रिया के दौरान अनेक हानिकारक गैसें तथा रसायन
निकलते हैं, जो मिट्टी के उपजाऊपन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

(iii) उद्योगों में ऊर्जा के संसाधन जैसे-कोयला, पेट्रोलियम आदि भी
वातावरण में हानिकारक गैसें छोड़ते हैं।

(iv) फैक्ट्रियों तथा रसायनों के निस्राव तथा कूड़े-कचरे को किसी स्थान पर
डाल देने से भू-क्षरण होता है।

प्रश्न 21. किन्ही चार उचित कृषि तकनीकों का वर्णन करें जिनका
प्रयोग भू-संरक्षण में हो सके।
उत्तर―(i) फसलों की अदला-बदली (Rotation of crops)―यदि एक
ही खेत में हर वर्ष एक ही फसल उगाई जाए तो भूमि में से कुछ तत्त्व समाप्त
हो जाएँगे और वह अनुपजाऊ बन जाएगी। फसलों की अदला-बदली से इस
प्रकार के अपरदन को रोका जा सकता है।

(ii) स्थायी कृषि (Settled agriculture)―आदिवासी लोगों को स्थायी
कृषि करने के लिए प्रेरित कर स्थानांतरी कृषि को कम किया जा सकता है।

(iii) सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई (Terracing and contour
bunding)― पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई मृदा संरक्षण का
प्रभावशाली तथा सबसे पुराना तरीका है। पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी
सीढ़ियाँ बना दी जाती हैं । ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाएँ बना दी जाती है।

(iv) रक्षक मेखला तथा पट्टी कृषि (Shelter belts and Strip
cropping)―बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटा जाता है। फसलों के बीच में घास
की पट्टियों उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कमजोर करती हैं। इस
तरीके को पट्टी कृषि कहते हैं। पेड़ों को कतारों में लगाकर रक्षक मेखला बनाना
भी पवनों की गति कम करता है। इन रक्षक पट्टियों का पश्चिम भारत में रेत
के टीलों के स्थायीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्रश्न 22.(i) भू-क्षरण की व्याख्या करें तथा इसे नियंत्रित करने के
लिए कुछ कदमों का सुझाव दें।
अथवा, मिट्टी अपरदन अथवा-भूक्षरण को रोकने के कुछ उपाय
बताइए।                                               [JAC 2013 (A)]
उत्तर―'भू-क्षरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूमि कृषि के अयोग्य हो
जाती है।'
      मनुष्यों ने अपने व्यक्तिगत लालच के कारण प्राकृतिक पर्यावरण का क्षरण
किया है। मानवीय क्रियाओं ने प्राकृतिक पर्यावरण का क्षरण किया है। मानवीय
क्रियाओं ने प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूमि को नुकसान पहुँचाने की गति को तेज
कर दिया है।
      इस समय भारत में लगभग 130 मिलियन हेक्टेयर क्षरित भूमि है। इसमें
लगभग 28 प्रतिशत वन क्षरित क्षेत्र है,56 प्रतिशत जल क्षरित क्षेत्र है तथा शेष
क्षारीय प्रभावित क्षेत्र है। कुछ मानवीय प्रक्रियाओं जैसे-वनोन्मूलन, अति चराई,
खनन का विस्तार आदि ने भी भू-क्षरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

भू-क्षरण को नियंत्रित करने के उपाय―(i) वन लगाना―वनों के अधीन
क्षेत्र को बढ़ाना भूमि संरक्षण का सबसे बेहतर उपाय है। पेड़ों की कटाई को
रोकना चाहिए तथा नए क्षेत्रों में पेड़ लगाने के प्रयल करने चाहिए।

(ii) पशुओं की चराई को सीमित करना―मृदा के अपरदन को रोकने के
लिए पशुओं को विभिन्न चरागाहों में ले जाना चाहिए । चारे की फसलों को बड़े
मात्रा में लगाना चाहिए।

(iii) बाँधों का निर्माण―नदियों पर बाँधों का निर्माण कर नदी बादों का
मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इससे जल की गति को नियंत्रित करण
भू-क्षरण से रोका जा सकता है।

(iv) उचित कृषि तकनीक―(क) फसलों की अदला-बदली-यदि एक
खेत में हर वर्ष एक ही फसल उगाई जाए तो मृदा के पौष्टिक तत्त्व समाप्त ।
जाते हैं और भूमि अनुपजाऊ हो जाती है। फसलों की अदला-बदली इस प्रका
के अपरदन को रोक सकती है।

(ख) आदिवासी लोगों को स्थायी कृषि करने के लिए प्रेरित कर स्थानांत
कृषि को कम किया जा सकता है।

(ग) सौदीदार तथा समोच्च जुताई मृदा संरक्षण का प्रभावशाली तथा सब
पुराना तरीका है । पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी सीढ़याँ बना दी जाती है।
ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाएँ बना दी जाती हैं।

(घ) पवन की दिशा में भूमि को जोतने से पवन की गति को रोका।
सकता है तथा मृदा की ऊपरी परत को अपरदित होने से रोका जा सकता।

प्रश्न 23. मृदा अपरदन अथवा भू-क्षरण को रोकने के लिए किन
चार उपायों को बताइए।     [JAC 2011 (A); 2013 (A); 2015 (A)]
उत्तर―मृदा अपरदन अथवा भू-क्षरण को रोकने के लिए किन्हीं चार उपाय
निम्नलिखित हैं―
(i) वन लगाना―वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को आपस में जकड़े रखती
है जिससे मिट्टी का कटाव रुक जाता है।

(ii) घास लगाना―घास की जड़ें भी मिट्टी के कणों को आपस में बाँधे
रखती हैं तथा उन्हें बह जाने से रोकती हैं।

(iii) सीढ़ीनुमा खेत बनाना―पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर भूमि
के कटाव को रोका जा सकता है। ऐसे खेतों के चारों ओर मेढ़ों से बँधे होते हैं।

(iv) समोच्च जुताई―ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर
हल चलाने से दाल के साथ-साथ जल बहाव की गति घटती है जिससे भूमि
कटाव में कमी आती है।

प्रश्न 24. भारत में भू-उपयोग प्रारूप का वर्णन करें तथा 1960-62 से
दिनों के अधीन भूमि में वृद्धि क्यों नहीं हुई ?                    [NCERT]
उत्तर―निम्नलिखित तालिका भारत में भू-उपयोग प्रारूप दर्शाती है:
विषय                                                                   क्षेत्र
वन                                                                    22.54%
बंजर तथा कृषि अयोग्य भूमि                                    6.29%
गैर-कृषि प्रयोजनों के अन्तर्गत क्षेत्र                             7.92%
स्थायी चरागाहें तथा अन्य गोचर भूमि                          3.45%
विविध वृक्षों, वृक्ष फसलों तथा उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र    1.10%
कृषि योग्य बंजर भूमि                                                4.41%
परती भूमि के अतिरिक्त अन्य पुरातन परती                   3.82%
वर्तमान परती                                                           7.03%
शुद्ध बोया गया क्षेत्र                                                   43.41%
निम्नलिखित कारणों से 1960-62 से वनों के अधीन भूमि में वृद्धि नहीं हुई―
(i) वनोन्मूलन (ii) कृषि का विस्तार तथा (iii) खनन तथा भू-भाग ।

प्रश्न 25. औद्योगिक प्रदूषण पर्यावरण को किस प्रकार निम्नीकृत
करता है ? पर्यावरण के निम्नीकरण को नियंत्रित करने वाले तीन उपायों
को स्पष्ट कीजिए।                            [JAC 2009 (A); 2017 (A)]
उत्तर―उद्योगों का देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। किन्तु
उद्योगों ने प्रदूषण को बढ़ाया है और पर्यावरण का क्षरण किया है। उद्योगों ने चार
प्रकार के प्रदूषणों-वायु, जल, भूमि और शोर-को पैदा किया है। उद्योगों से
निकलने वाले धुएँ ने वायु और जल दोनों को बुरी तरह प्रदूषित किया है। कार्बन
मोनोऑक्साइड और सल्फर डाईआक्साइड जैसी अवांछित गैसों की अधिकता वायु
प्रदूषण का कारण बनती है। वायु को प्रदूषित करने वाले ठोस व तरल दोनों ही
प्रकार के पदार्थ होते हैं। वायु प्रदूषण जीव-जन्तुओं, पौधों, पदार्थों तथा वायुमंडल
को प्रभावित करता है।
      जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक
अपशिष्ठ हैं, जिन्हें नदियों में छोड़ा जाता है। ये जैविक और अजैविक दोनों ही
प्रकार के पदार्थ होते हैं। वायु प्रदूषण जीव-जंतुओं, पौधों, पदार्थों तथा वायुमंडल
को प्रभावित करता है।
      जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक
अपशिष्ठ हैं, जिन्हें नदियों में छोड़ा जाता है। ये जैविक और अजैविक दोनों ही
प्रकार के होते हैं। कोयला, रंग, कीटनाशक, साबुन, उव्ररक, प्लास्टिक की वस्तुएँ
तथा रबर आदि जल के सामान्य प्रदूषक हैं । लुगदी, वस्त्र, रासायन, पेट्रोलियम,
परिष्कारणशालाएँ, चर्मशोधन तथा इलैक्ट्रोप्लेटिंग जल को प्रदूषित करनेवाले प्रमुख
उद्योग हैं।
          पर्यावरण के निम्नीकरण को नियंत्रित करने के उपाय :
(i) प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योगों में 'पृथकारी छन्ना' का प्रयोग
करना चाहिए। (ii) उद्योगों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्क्रवर यंत्र
का प्रयोग करना चाहिए । (iii) उद्योगों से निकलने वाले धुएँ के लिए बहुत ऊँची
चिमनियों को स्थापित किया जाना चाहिए।

                                               ◆◆◆

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