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     Jharkhand Board Class 7TH Sanskrit Notes | धर्मवीर शिविः  

   JAC Board Solution For Class 7TH Sanskrit Chapter 6


पाठ:― पुरा भारतवर्षे शिवि: नाम नृपः आसीत्। तस्य शासनम् आसेतुहिमाचलम्
आसीत्। सः परमधार्मिकः आसीत्। एकदा देवलोके शिवे: धर्मपरीक्षार्थ
चर्चा अभवत्। महीतलं गत्वा तस्य साधुता त्यागः च परीक्षणीयः
अस्ति। अग्निदेवः कपोतरूपः इन्द्रश्च श्येनरूपः अभवताम्।
   अर्थ― पहले भारतवर्ष में शिवि नाम का राजा था। उसका शासन से हिमाचल
(हिमालय) तक था। वह परम धार्मिक था। एक बार देवलोक में
शिवि के धर्म की परीक्षा के चर्चा हुई। धरती पर जाकर उसकी
सज्जनता और त्याग की परीक्षा करने योग्य है। अग्नि देव कबूतर का
रूप और इन्द्र बाज के रूप में हुए अर्थात रूप धारण किया।

पाठ:― अथ कपोतः राजसिंहासनस्थस्य शिवेः चरणयोः अपतत्। कपोतः
अवदत्–"त्राहि मां त्राहि मां राजन्! अयं श्येन: मां भक्षयितुम् इच्छति।
मां रक्षतु, अहं शरणागत: अस्मि"। नृपः तं कपोतं सस्नेह गृहीत्वा
भयरहितं कृतवान्।
    अर्थ― उसके बाद कबूतर राजसिंहासन पर अवस्थित शिवि के चरणों में गिर
पड़ा। कबूतर बोला-"हे राजन! मुझको बचाओ, मुझको बचाओ।
यह बाज मुझको खाना चाहता है।" राजा ने उस कबूतर को नेह के
साथ पकड़कर भय रहित किया।

पाठ:― तदैव श्येनः अपि नृपमुपगम्य प्रोवाच-राजन्! अयं कपोत: मम भक्ष्यः,
एनं परित्यजा
   अर्थ― तभी बाज भी राजा के समीप जाकर बोला- राजन ! यह कबूतर मेरा
आहार है. इसे छोड़ दो।

पाठः―शिवि:–भो श्येन! त्वम् एनं मा मारय, जीवहिंसा न करणीया।
अर्थ―शिवि–हे बाज ! तुम इसे मत मारो। जीव की हिंसा नहीं करनी
चाहिए।

पाठः― श्येन:–एवं नास्ति। अयं मम भोजनम्। त्वं तु धर्मवीरः असि। अहं
बुभुक्षितः अस्मि। मां भोजनं कथं न ददासि ? कथं धर्मविरुद्धम्
आचरसि?
    अर्थ― बाज– ऐसा नहीं है। यह मेरा भोजन है। तुम तो धर्मवीर हो। मैं भूखा
हूँ। मुझको भोजन क्यों नहीं देते हो । धर्म के विरूद्ध क्यों व्यवहार
करते हो।

पाठ:― शिवि:–राज्ञां परमो धर्मः तु शरणागतरक्षणम् एव भवति। अतः तुभ्याम्
एनं कपोतं न दास्यामि। त्वम् एकत्कृते यथेच्छं वस्तु याच।
    अर्थ― शिवि– राजा का परमधर्म तो शरणागत की रक्षा ही होता है। इसलिए
तुम्हें इस कबूतर को नहीं दूंगा । तुम इसके लिए जैसी इच्छा हो वस्तु
मांगो।

पाठः―श्येन: – न राजन् अद्य तु अयमेव मत्कृते ईश्वरोपाहारः परन्तु यदि त्वं
इच्छति तर्हि स्वदेहात् कपोतस्य समभार मांसं मह्यम् देहि।
  अर्थ― बाज– नहीं राजन् आज तो यही मेरे लिए ईश्वर का उपहार है. परन्तु
यदि तुम चाहते हो तो अपने शरीर से कबूतर के बराबर माँस मुझे
दो।

पाठ― शिविः – इदं तु उचितम् अस्ति। यतो हि―
धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञः उत्सृजेत् ।
सन्निमिते वर त्यागो विनाशे नियते सति ।
अर्थ― शिवि– यह तो उचित है क्योंकि विनाश की नियति होने पर अच्छा
है कि बुद्धिमान को धन और जीवन की इच्छा रखता हुआ उसे छोड़
देना चाहिए।

पाठः―नृपः सहर्ष शस्त्रम् आदाय स्वदेहात् किञ्चित् मासं तुलायाम् अस्थापयत्।
परन्तु कोतस्य भारः अधिकः आसीत्। सः पुनरपि अधिक मांस
तुलायां अस्थापयत्, तथापि कपोतस्य भारः अधिकः एव अभवत्। एवं
वारं वारं स्वमांसप्रदानेन अपि कपोतस्य भारेण समानः न अभवत्।
अन्नतः शिविः स्वयमेय सशरीर तुलायां उपाविशत्, अर्थात् स्वयमेव
श्येनस्य भोजनरूपेण समर्पितवान्। ततः कपोतस्य भारः न्यूनो जातः।
तदा आकाशे देवदुनदुभिध्वनि: गुञ्जितः। गगनात् च पुष्पवृष्टिः अभवत्।
श्येनरूपधारी इन्द्रः कपोतरूपधारी अग्निश्च निजरूपं प्रकटितवन्तौ।
इन्द्र अवदत्– धन्योऽपि त्वं शिवे। वस्तुतः त्वं दानवीरः धर्मवीरः
सत्यव्रती चासि। तव शरीर पूर्वापेक्षया सुन्दरतरं भवेत् इति मम
आशीर्वादः तव कीर्तिः अनन्तकालं यावत् स्थास्यति।
अर्थ―
राजा ने खुशी से शस्त्र लेकर अपने शरीर से कुछ मांस तराजू पर
रख दिया। परन्तु कबूतर का भार अधिक था। उसने फिर अधिक
मांस तराजू पर रखा। फिर भी कबूतर का भार अधिक ही हुआ। इस
प्रकार बार-बार अपना माँस देने से भी कबूतर के भार के बराबर
नहीं हुआ। अंत में शिवि स्वयं शरीर के साथ तराजू पर बैठ गया।
अर्थात् स्वयं बाज के भोजन के रूप में समर्पित हो गया। उसके बाद
कबूतर का भार शून्य हो गया। तभी आकाश में देवताओं की दुदुंभि
बजने लगी और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। बाज रूपधारी
इन्द्र और अग्नि रूपधारी अग्निदेव अपने रूप में प्रकट हो गये। इन्द्र
ने कहा- शिवि तुम धन्य हो। वास्तव में तुम दानवीर, धर्मवीर और
सत्यव्रती हो। तुम्हारा शरीर पहले की तुलना में सुन्दर हो यह मेरा
आशीर्वाद है। तुम्हारी कीर्ति अनन्तकाल तक स्थापित रहेगी।

                            अभ्यासः

प्रश्न संख्या 1 शब्दार्थ है।
2. एकपदेन उत्तरत―
(क) भारतवर्षे किं नाम नृपः आसीत् ?
उत्तर― शिवि:

(ख) शिवेः धर्मपरीक्षार्थ कुत्र चर्चा अभवत् ?
उत्तर― देवलोके

(ग) अग्निदेवः कस्य रूपम् अधारयत् ?
उत्तर― कपोतरूपः

(घ) नृपः शिविः कं भयरहितं कृतवान् ?
उत्तर― कपोतम्

(ङ) कः शिवेः चरणयोः अपतत् ?
उत्तर― कपोतः

3. पूर्णवाक्येन उत्तरत―
(क) नृपस्य शासनं कुत्र आसीत् ?
उत्तर― नृपस्य शासनं आसेतुहिमाचलम् आसीत्।

(ख) श्येनः नृपमुपगम्य किं प्रोवाचं ?
उत्तर― श्येनः नृपमुपगम्य प्रोवाच राजन! अयं कपोत: मम भक्ष्यः, एन
परित्यज।

(ग) अन्ततः शिविः किम् अकरोत् ?
उत्तर― अन्नतः शिविः स्वयमेव सशरीरं तुलायाम् उपाविशत अर्थात्
स्वयमेव श्येनस्ये भोजनरूपेण समर्पितवान।

(घ) आकाशे किम् अभवत् ?
उत्तर― आकाशे देवदुन्दुभिध्वनि! अभवत्।

(ङ) इन्द्रः नृपाय किम् आशीर्वादम् अयच्छत् ?
उत्तर― इन्द्रः नृपाल आर्शीवादम् अयच्छत यत् तव शरीर पूर्वापेक्षया
सुन्दरतरं भवेत्।

4. रेखाङिकतानि पदानि आवृत्य प्रश्नवाक्यानि रचयत―
(क) अग्निदेवः कपोतरूपम् अधारयत् ।
उत्तर― कः कपोतरूपम् अधारमत् ?

(ख) एकदा देवलोक चर्चा अभवत् ।
उत्तर― एकदा कत्र चर्चा अभवत् ?

(ग) कपोतः शिवेः चरणयोः अपतत् ।
उत्तर― कपोतः कस्य चरणमोः अपतत् ?

(घ) अहं तुभ्यं कपोतं न दास्यामि ।
उत्तर― अहं कस्मै कपोतं न दास्यामि?

(ङ) सः मांसं तुलायाम अस्थापयत् ।
उत्तर― सः मांस कत्र अस्थापयत् ?

5. उदकारणं दृष्ट्वा आज्ञार्थरूपे (लोट्लकारे) परिवर्तयत―
यथा–सः गच्छति                   सः गच्छतु
(क) अहं पठामि                     ...............
(ख) त्वं लिखसि                     ...............
(ग) बालकाः क्रीडन्ति              ...............
(घ) भवान् खादति                  ...............
(ङ) यूयं नमथ                        ...............
उत्तर― (क) अहं पठामि          अहं पठानि।
(ख) त्वं लिखसि                     त्वं लेख।
(ग) बालकाः क्रीडन्ति              बालकाः क्रीडन्तु।
(घ) भवान् खादति                  भवान् खादतु।
(ङ) यूयं नमथ                        यूयं नमत।

6. कः कं प्रति कथयति―
                                                                 कः                कम्
यथा― अयं कपोतः मम भक्ष्यः        ―            श्येनः              कम्
(क) त्वम् एनं मा मारय।                 ―        ...............      ...............
(ख) अयं मम भोजनम्                   ―        ...............      ...............
(ग) त्राहि मां त्राहि माम्                   ―        ...............      ...............
(घ) धन्योऽसि त्वम्                        ―        ...............      ...............
(ङ) त्वं यथेच्छ वस्तु याज               ―        ...............      ...............
उत्तर― (क) त्वम् एनं मा मारय         ―        राजा              श्येनम्
(ख) अयं मम भोजनम्                    ―        श्येनः             राजानम्
(ग) त्राहि मां त्राहि माम्                    ―        कपोतः          राजानम्
(घ) धन्योऽसि त्वम्।                        ―        इन्द्रः              राजानम्
(ङ) त्वं यथेच्छं वस्तु याज                ―        राजा              श्येनम्

7. अधोलिखितानां पदानां विभक्तिं वचनञ्च लिखत―
पदानि                          विभक्तिः                  वचनम्
यथा― शिवे:                  षष्ठी                       एकवचनम्
(क) भारतवर्षे              ...............               ...............
(ख) अग्निदेवः             ...............                ...............
(ग) कपोतम्               ...............                 ...............
(घ) स्वदेहात्               ...............                 ...............
(ङ) श्येनस्य                ...............                 ...............
उत्तर― (क) भारतवर्षे      सप्तमी                   एकवचन
(ख) अग्निदेवः                प्रथमा                     एकवचन
(ग) कपोतम्                   द्वितीया                   एकवचन
(घ) स्वदेहात्                   पंचमी                     एकवचन
(ङ) श्येनस्य                    षष्ठी                       एकवचन

8.कथाक्रमानुसारं लिखत―
(क) इन्द्रः श्येनरूपः अभवत् ।
(ख) भारतवर्षे शिविः नाम नृपः असीत्।
(ग) इन्द्रः नृपाय आशीर्वादम् अयच्छत् ।
(घ) अग्निदेवः इन्द्रश्च शिवे: धर्मपरीक्षार्थ महीतलम् अगच्छताम्।
(ङ) राज्ञां परमो धर्मः तु शरणागतरक्षणम् ।
(च) सः परमधार्मिकः आसीत् ।
उत्तर―(क) भारतवर्षे शिविः नाम नृपः आसीत्।
(ख) सः परमधार्मिकः आसीत्।
(ग) अग्निदेवः इन्द्रश्च शिवे: धर्मपरीक्षार्थं महीतलम् अगच्छताम।
(घ) इन्द्रः श्येनरूपः अभवत।
(ङ) राज्ञां परमो धर्मः त शरणागतरक्षणम्
(च) इन्द्रः नृपाय आशीर्वादम् अयच्छत्।

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