JAC Board Solutions : Jharkhand Board TextBook Solutions for Class 12th, 11th, 10th, 9th, 8th, 7th, 6th

themoneytizer

   Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | सिकतासेतुः  

JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 9 


1. संकेत-ततः प्रविशति........श्रमेण । पश्य)
शब्दार्थः―तपस्यारतः = तपस्या में लीन, बाल्ये = बचपन में, पितृचरणैः=
पिता के द्वारा, क्लेश्यमानः = व्याकुल किया जाता हुआ, अधीतवान् = पढ़ा,
कुटुम्बिभिः = परिवार के सदस्यों के द्वारा, ज्ञानिजनैः = सम्बन्धियों के द्वारा, गर्हितः
= अपमानित किया गया, उर्ध्व निःश्वस्य = सांस लेना, हा विधे! = हाय विधाता !
दुर्बुद्धिः = दुष्ट बुद्धि, चिन्तितम् = सोचा गया, परिधानैः = वस्त्रों से, भूषितः = सजा
हुआ, निर्माणभोगीव = मणिहीन साँप की तरह, शोभते = सुशोभित होता है,
विमृश्य = सोचकर, उद्भ्रान्तः = उचित मार्ग से दूर, संध्यां यावद् = शाम तक,
उपैति = पास जाता है, वरम् = अच्छा है, भ्रान्तः = भ्रमयुक्त, तपश्चर्यया = तपस्या
से, जलोच्छलनध्वनिः = पानी के उछलने की आवाज, श्रूयते = सुनी जा रही है,
कल्लोलोच्छलन = तरंगों के उछलने की आवाज, महामत्स्यः = बड़ी मछली, मकरः
= मगरमच्छ, सिकताभिः = रेत से, सेतुः = पुल, कुर्वाणम् = करते हुए, सहासम् =
हँसते हुए, अभावः = कमी, मूढः = मूर्ख, निर्मातुम् = बनने के लिए, साट्टहासम्
= जोर से हँसकर, पार्श्वमुपेत्य = पास जाकर, विधीयते = आप कर रहे हैं,
अलमलम् = बस-बस, तव श्रमेण = श्रम न करें।
          हिन्दी अनुवाद―(तब तपस्या करता हुआ तपोदत्त प्रवेश करता है)
तपोदत्त―मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पूज्य पिताजी को व्याकुल किए जाने पर
भी मैंने विद्या नहीं पढ़ी। इसलिए परिवार के सदस्यों, मित्रों और सम्बन्धियों के द्वारा
मेरा अपमान किया गया। (ऊपर की ओर सांस छोड़कर)
हे प्रभो ! यह मैंने क्या किया? मेरी कैसी दुष्ट बुद्धि हो गई थी उस समय !
मैंने यह भी नहीं सोचा कि―
      वस्त्रों तथा आभूषणों से सुसज्जित किन्तु विद्याहीन मनुष्य घर पर या सभा में
मणिरहित साँप की तरह कभी भी सुशोभित नहीं होता। (कुछ सोचकर) अच्छा,
इससे क्या? दिन में पथभ्रष्ट हुआ मनुष्य यदि शाम तक घर आ जाए तो भी ठीक
है। वह भ्रमयुक्त नहीं माना जाता। अब मैं तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्ति में लग जाता
हूँ। (पानी के उछलने की आवाज सुनी जाती है)
           अरे! यह लहरों के उछलने की आवाज कहाँ से आ रही है ? शायद बड़ी
मछली या मगरमछ हो। चलो मैं देखता हूँ।
         (एक पुरुष को रेत से पुल बनाने का प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए)
हाय ! संसार में मूखों की कमी नहीं है। तेज प्रवाह वाली नदी में यह मूर्ख रेत
से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है।
         (जोर-जोर से हँसकर पास जाकर)
हे महाशय ! यह क्या कर रहे हैं आप? बस-बस श्रम न करें, देखो―
रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये।
विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम् ।।
     शब्दार्थ―बबन्ध = बाँधा था, सेतुम् = पुल, शिलाभि = बड़े पत्थरों से,
मकरालये = समुद्र पर, विदधत् = करते हुए, बालुकाभिः = रेत से, अतिरामताम्
= अतिक्रमण, यासि = कर रहे हो।
      हिन्दी अनुवाद―श्री राम ने समुद्र पर जिस पुल को शिलाओं से बनाया था उस
पुल को (इस प्रकार) रेत से बनाते हुए तुम उनके पुरुषार्थ का अतिक्रमण कर रहे
हो।
         संकेत-चिन्तय तावत्.........कोऽत्र सन्देहः ? किञ्च ।
शब्दार्थ―युज्यते = ठीक है, उपरुणसि = तुम रोकते हो, स्वसंकल्पदृढ़तया =
अपने संकल्प की दृढ़ता से, सोपानमार्गः = परंपरागत तरीके से, सोत्प्रासम् = मजाक
उड़ाते हुए, अट्टम् = अटारी से, अधिरोदुम् = चढ़ने के लिए, विश्वसिमि = मैं
विश्वास करता हूँ, समुत्प्लुत्य = छलांग मारकर, सव्यङ्गयम् = व्यंग्य पूर्वक, आञ्जनेयम्
= अञ्जनिपुत्र हनुमान को, अतिक्रामसि = तुम अतिक्रमण कर रहे हो, सविमर्शम् =
सोच-विचार कर, सन्देहः = सन्देह, किञ्च = इसके अतिरिक्त ।
        हिन्दी अर्थ―जरा सोचो! कहीं रेत से पुल बनाया जा सकता है?
       पुरुष : हे तपस्विन् ! तुम मुझे क्यों रोकते हो ? प्रयल करने से क्या सिद्ध नही
होता ? शिलाओं की क्या आवश्यकता? मैं रेत से ही पुल बनाने के लिए संकल्पबद्ध
हूँ।
    तपोदत्त :आश्चर्य है ! रेत से ही पुल बनाओगे ? क्या तुमने यह सोचा है कि
रेत जलप्रवाह पर कैसे ठहर पाएगी?
        पुरुष : (उसकी बात का खण्डन करते हुए) सोचा है, सोचा है, अच्छी प्रकार
सोचा है। मैं सीढ़ियों के मार्ग से (परंपरागत तरीके से) अटारी पर चढ़ने में विश्वास
नहीं करता । मुझने छलांग मारकर जाने की क्षमता है।
              तपोदत्त : (व्यंग्यपूर्वक) शाबाश ! शाबाश ! तुम तो अञ्जनिपुत्र हनुमान का
भी अतिक्रमण कर रहे हो।
              पुरुष : (सोच-विचार कर)
और क्या ? इसमें क्या सन्देह है?
                 विना लिप्यक्षरज्ञानं तपोभिरेव केवलम् ।
                 यदि विद्या वशे स्युस्ते, सेतुरेष तथा मम ।।
शब्दार्थ : लिप्यक्षरज्ञानं विना = लिपि और अक्षर ज्ञान के बिना, तपोभिः = 
तपस्या से, वशे स्युः = यदि वश में है।
        हिन्दी अनुवाद : लिपि तथा अक्षरज्ञान के बिना जिस प्रकार केवल तपस्या से
विद्या तुम्हारे वश में हो जाएगी, उसी प्रकार मेरा यह पुल भी (केवल रेत से ही बन
जाएगा)।

2. संकेत―तपोदत्तः (सवैलक्ष्यम्............सप्रणामं गच्छति)।
शब्दार्थ:―सवैलक्ष्यम् = लज्जापूर्वक, अभिलपामि = इच्छा कर रहा हूँ, अवमानन
= अपमान, शारदा = सरस्वती, लक्ष्यम् = लक्ष्य, उद्देश्य, पुरुषार्थैः = प्रयत्नों से
प्रकाशम् = प्रकट रूप में, भो नरोत्तम ! = हे महापुरुष ! उन्मीलितम् = खोल दिए
हैं, प्रयतमानः = प्रयत्न करना हुआ, सेतुनिर्माणप्रयासम् = पुल बनाने का प्रयत्न
सिकताभिरेव = रेत से ही, तदिदानीम् = तो अब ।
              हिन्दी अनुवाद―तपोदत्तः (लज्जापूर्वक अपने मन में)
      अरे ! यह सज्जन मुझे ही लक्ष्य करके आक्षेप लगा रहा है। निश्चय ही यह यहाँ
मैं सच्चाई देख रहा हूँ। मैं बिना अक्षरज्ञान के ही विद्वता प्राप्त करना चाहता हूँ। यहाँ
तो देवी सरस्वती का अपमान है। मुझे गुरुकुल जाकर ही विद्या का अध्ययन करना
चाहिए । पुरुषार्थ से ही लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है।
      (प्रकट रूप से)
      हे श्रेष्ठ पुरुष ! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं ? किन्तु आपने मेरे नेत्र खोल
दिए । तपस्या मात्र से ही विद्या को प्राप्त करने का प्रयल करता हुआ मैं भी रेत से
ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा था, तो अब मैं विद्या प्राप्त करने के लिए गुरुकुल
जाता हूँ।
       (प्रणाम करता हुआ चला जाता है।)

                                      अभ्यासः

प्रश्न 1.अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषय लिखत―
(क) अनधीतः तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत् ?
उत्तर―अनुधीतः तपोदत्तः सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितः अभवत् ।

(ख) तपोदत्त: केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत् ?
उत्तर―तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्या प्राप्तुं प्रवृत्तोऽभवत् ।

(ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टां दृष्ट्वा अहसत् ?
उत्तर―पुरुषेमेकं सिकताभि सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा अहसत् ।

(घ) तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः ?
उत्तर―तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तं तस्य प्रयासः सिकताभिरेव सेतुनिर्माणप्रयास मिव
कथितः।

(ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः ?
उत्तर―अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय गुरुकुलं गतः ।

प्रश्न 2. भिन्नवर्गीयं पदं चिनुत-
यथा-अधिरोदुम्, गन्तुम्, सेतुम, निर्मातुम् ।
उत्तर―सेतुम्।

(क) निःश्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य ।
उत्तर―चिन्तय।

(ख) विश्वपसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि ।
उत्तर―करिष्यामि।

(ग) तपोभिः, दुर्युद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः ।
उत्तर―दुर्बुद्धि।

प्रश्न 3. (क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि ?
(i) अलमलं तव श्रमेण।
उत्तर―पुरुषाय।

(ii) न अहं सोपानमागैरट्टमधिरोदं विश्वसिमि ।
उत्तर―पुरुषाय।

(ii) चिन्तित भवता न वा।
उत्तर―पुरुषाय ।

(iv) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः ?
उत्तर―तपोदत्ताय ।

(v) भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम् ।
उत्तर―तपोदत्ताय ।

(ख) अधोलिखितानि कथनानि कः के प्रति कथयति ?
कधनानि                                                     कः                कम्
(i) हा विधे। किमिदं मया कृतम् ?                  तपोदत्तः          विधिम्
(ii) भो महाशय। किमिदं विधीयते?               तपोदत्तः          पुरुषम्     
(iii) भोस्तपस्विन् । कथं माम् उपरुणित्सि ।     पुरुषः            तपोदत्तः
(iv) सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम् ?      तपोदत्तः         पुरुषम्
(v) नाहं जाने कोऽस्ति भवान् ?                     तपोदत्तः         पुरुषम्

प्रश्न-4. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(क) तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति ।
उत्तर―तपोदत्तः केन प्रकारेण विद्याभवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति ।

(ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत् ।
उत्तर―कः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत् ।

(ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते ?
उत्तर―पुरुष कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते ?

(घ) तपोदतः अक्षरज्ञानं विनैव बैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति ।
उत्तर―तपोदत्तः, कम् विनैव वेदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति ?

(3) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलम् अगच्छत् ।
उत्तर―तपोदत्तः किमर्थ गुरुकुलम् अगच्छत् ?

(च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः ।
उत्तर―कुत्र गत्वैव विद्याभ्यास: करणीयः ।

प्रश्न 5. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितविग्रहपदानां समस्तपदानि लिखत―
विग्रहपदानि                           समस्तपदानि
यथा-संकल्पस्य सातत्येन      = संकल्पसातत्येन
(क) अक्षराणां ज्ञानम्            = अक्षरज्ञानम्
(ख) सिकतायाः सेतुः           = सिकतासेतुः
(ग) पितुः चरणैः.                 = पितृचरणैः
(घ) गुरोः गृहम्                    = गुरुगृहम्
(ङ) विद्यायाः अभ्यासः         = विद्याभ्यासः

प्रश्न 6. उदाहरणमनुस्त्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत―
समस्तपदानि                             विग्रहः
यथा–नयनयुगलम्                    = नयनयोः युगलम्
उत्तर―(क) जलप्रवाहे               = जलस्यस्य प्रवाहे
(ख) तपश्चर्ययया                      = तपसः चर्यया
(ग) जलोच्छलनध्वनिः               = जलस्य उच्छलनस्य ध्वनिः
(घ) सेतुनिर्माणप्रयासः                = सेतोः निर्माणस्य प्रयासः ।

'प्रश्न 7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकात् पदम् आदाय नूतनं वाक्यद्वयं रचयत―
(क) यथा–अलं               चिन्तया               ('अलम्' योगे तृतीया)
(i) अलं                          भयेन                 (भय)
(ii) अलं                         कोलाहलेन         (कोलाहल)

(ख) यथा–माम् अनु स गच्छति ।    ('अनु' योगे द्वितीया)
(i) गृहम् अनु मम विद्यालय अस्ति ।   (गृह)
(ii) पर्वतम् अनु नदी वहति ।             (पर्वत)

(ग) यथा–अक्षरज्ञानं विनैन वैदष्य प्राप्तुमभिलषसि । ('बिना' योगे द्वितीया)
(i) परिश्रमं विनैव त्वं प्रथमस्थन प्राप्तमभिलपसि ।    (परिश्रम)
(ii) अभ्यास विनैव त्वं विद्यां प्राप्तुमभिषसि ।            (अभ्यास)

(घ) यथा–सन्ध्यां यावत् गृहमुपैति                 ( 'यावत्' योगे द्वितीया)
(i) मासं यावत् अभ्यास करोषि?                   (मास)
(ii) वर्षम यावत् तपः आचरिष्यसि ?              (वर्ष)

                                                   ◆◆

  FLIPKART

और नया पुराने

themoneytizer

inrdeal