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      Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | लौहतुला  

   JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 8


1. संकेत-आसीत् कस्मिंश्चिद्.................. गृहमागतः ।
शब्दार्थः–अधिष्ठाने = स्थान पर, वणिक्पुत्र = बनिए का पुत्र, विभवक्षयात्
= धन की कमी के कारण, व्यचिन्तयत् = सोचा, स्ववीर्यतः = अपने पराक्रम से,
पुरुषाधमः = नीच पुरुष, लौहघटिता = लोहे से बनी हुई, पूर्वपुरुषोपार्जिता = पूर्वजों
के द्वारा खरीदी गई, श्रेष्ठी = सेठ, तुला = तराजू, निक्षेपभूताम् = जमाराशि के रूप
में, सुचिरं कालं = बहुत समय तक, भ्रान्त्वा = घूमकर, शाश्वतम = सदा रहने
वाला, स्नानोपकरणहस्तम् = नहाने का सामान हाथ में लिए हुए, प्रेषय = भेज दो,
पितृव्यः = चाचा, ताऊ, यास्यति = वह जाएगा, अनेन सार्धम् = उसके साथ,
प्रहृष्टमनाः = प्रसन्न मन वाला, अभ्यागतः = अतिथि, गिरिगुहायाम् = पर्वत की
गुफा में, वृहच्छिलया = विशाल शिला से, आच्छाद्य = ढककर, सत्त्वरम् = शीघ्र ।
     हिन्दी अनुवाद―किसी स्थान पर जीर्णधन नामक एक बनिए का पुत्र था। धन
की कमी के कारण विदेश जाने की इच्छा से उसने सोचा-
                जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं वहाँ
धन-ऐश्वर्य से हीन रहने वाला मनुष्य नीच पुरुष होता है।
       उसके घर पर उसके पूर्वजों द्वारा खरीदी गई लोहे से निर्मित एक तराजू थी।
उसे किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश को चला गया । तब
दीर्घकाल तक इच्छानुसार दूसरे देश में घूमकर पुनः अपने देश वापस आकर उसने
सेठ से कहा–"हे सेठ ! धरोहर के रूप में रखी मेरी वह तराजू दे दो।" उसने
कहा–"अरे ! वह तो नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए।"
जीर्णधन ने कहा-"हे सेठ ! यदि उसको चूहे खा गए तो इसमें तुम्हारा दोष
नहीं है। यह संसार ही ऐसा है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। किन्तु मैं नदी पर
स्नान के लिए जा रहा हूँ। खैर, तुम धनदेव नामक अपने इस पुत्र को स्नान की
वस्तुएँ हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।"
     उस सेठ ने अपने पुत्र से कहा-"पुत्र ! ये तुम्हारे चाचा हैं, स्नान के लिए जा
रहे हैं, तुम इसके साथ जाओ।"
    इस तरह वह बनिए का पुत्र स्नान की वस्तुएँ लेकन प्रसन्न मन से उस अतिथि
के साथ चला गया। तब वहाँ पहुँचकर और स्नान करके उस शिशु को पर्वत की
गुफा में रखकर उसने गुफा के द्वार को एक बड़े पत्थर से ढक दिया और शीघ्र घर
आ गया।
              संकेत-पृष्ठश्च.......भूयतां मद्वचः ।
शब्दार्थ―कथ्यताम् = बताओ, श्येनेन = बाज के द्वारा, इतः = ले जाया गया,
मिथ्यावादिन् = झूठ बोलने वाले ! वाणिजा = व्यापारी के द्वारा, समर्पय = लौटा दो,
अन्यथा = नहीं तो, विवदमानौ = झगड़ा करते हुए, तारस्वरेण = जोर से, अब्रह्मण्यम
= घोर अन्याय, अनुचित । अपहृतः = चुरा लिया गया है, पश्यतः मे = मेरे देखते हुए,
नदीतटात् = नदी के तट से, अभिहितम् = कहा गया ।
          हिन्दी अर्थ―उस व्यापारी से पूछा गया-" हे अतिथि । बताओ तुम्हारे साथ नदी
पर गया मेरा पुत्र कहाँ है?
           उसने कहा―"नदी के तट से उसे बाज उठाकर ले गया।" सेठ ने कहा―"हे
झूठे! क्या कहीं बाज बालक को ले जा सकता है ? तो मेरा पुत्र लौटा दो अन्यथा
मैं राजकुल में शिकायत करूंगा।"
        उसने कहा―"हे सत्यवादिन् । जैसे बाज बालक को नहीं ले जाता वैसे ही चूहे
भी लोहे की बनी हुई तराजू नहीं खाते । यदि पुत्र को पाना चाहते हो तो मेरी तराजू
लौटा दो।"
        इस प्रकार झगड़ते हुए वे दोनों राजकुल चले गए। वहाँ सेठ ने जोर से कहा―
"अरे ! अनुचित हो गया। अनुचित ! मेरे पुत्र को इस चोर ने चुरा लिया।"
              तब न्यायकर्ताओं ने उससे कहा-"अरे! सेठ का पुत्र लौटा दो।" उसने
कहा―"मैं क्या करूं? मेरे देखते-देखते बालक को बाज नदी के तट से ले गया।"
यह सुनकर सब बोले―अरे ! आपने सच नहीं कहा-क्या बाज बालक को ले जाने
में समर्थ है?
        उसने कहा―अरे अरे ! मेरी बात सुनिए―
तुलां लौहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः ।
राजतन्त्र हरेच्छयेनो बालक, नात्र संशयः ॥
शब्दार्थ-हरेत् = ले जा सकता है, संशयः = सन्देह ।
हिन्दी अनुवाद-हे राजन् ! जहाँ लोहे से बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं वहाँ
बाज बालक को उठाकर ले जा सकता है, इसमें सन्देह नहीं।
            संकेत―ते प्रोचुः......सन्तोषितौ ।
            शब्दार्थ―सभ्यानाम् अग्रे = सभासदों के सम्मुख, आदितः = आरम्भ से,
निवेदयामास = निवेदन किया, सर्व वृत्तान्तम् = सारी घटना, विहस्य = हँसकर,
संबोध्य = समझा-बुझाकर, सन्तोषितौ = सन्तुष्ट किए गए।
        हिन्दी अनुवाद―उन्होंने कहा―"यह कैसे हो सकता है।"
       तब उस सेठ ने सभासदों के सम्मुख आरम्भ से सारा वृत्तान्त कह दिया । तय
हंसकर उन्होंने उन दोनों को समझा-बुझाकर तराजू तथा बालक का आदान-प्रदान
करके उन दोनों को प्रसन्न किया।

                                    अभ्यासः

प्रश्न-1. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत् ?
उत्तर―देशांतर गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः 'व्यचिन्तयत्' यत्र स्ववीर्यतः भोगा:
भुक्ताः तस्मिन स्थाने यः विभवहीनः वसेत् सः पुरुषाधमः ।

(ख) स्वतुला याचमान जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत् ?
उत्तर―स्वतूला याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत् 'भोः । त्वदीया तुला मूषकैः
भक्षिता' इति ।

(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वार कया आच्छाद्य गृहमागतः ?
उत्तर―जीर्णधनः गिरिगुहाद्वार बृहच्छिलया आच्छद्य गृहमागतः ।

(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् उवाच ?
उत्तर―स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं उवाच-"नदी तटात् सः
बालः श्येनेन हतः" इति ।

(ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनो कथं सन्तोषितो?
उत्तर―धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ "परस्परं संबोध्य तुला-शिशु प्रदानेन
सन्तोषितौ।

प्रश्न-2. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ।
उत्तर―क: विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ?

(ख) श्रेष्ठिनः शिशु स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः ।
उत्तर―श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः?

(ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच-भोः अग्रगण्यम् अग्रहाण्यम् ।
उत्तर―श्रेष्ठौ उच्चस्वरेण किम् उवाच?

(घ) सभ्यः तौ परस्पर संयोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ ।
उत्तर―सम्यैः तौ परस्पर संबोध्य कथं सन्तोषितौ ?

प्रश्न 3. अधोलिखिताना श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्व तम्
पूरयत्―
उत्तर―(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्थवीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन विभवहीनः
यः वसेत् स पुरुषाधमः ।

(ख) राजन् । यत्र लौहसहनस्य तुलाम मूषकाः खादन्ति तत्र श्येनः बालकम
हरेत! अत्र संशयः न।

प्रश्न-4. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुतः यत्र―
(क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति
विहस्य, लौहसहस्रस्य, संबोध्य आदाय ।
उत्तर―लौहसहस्रस्य।

(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्त्वरम्, कार्यकारणम्
उत्तर―सत्वरम् ।

(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति
पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्
उत्तर―स्ववीर्यतः।

प्रश्न-5. सन्धिना सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत―
उत्तर―(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी+आह
(ख) द्वावपि = द्वौ+ अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्

प्रश्न-6.समस्त पदं विग्रह वा लिखत―
विग्रहः                                   समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम्          = स्नानोपकरणम् ।
(ख) गिरेः गुहायाम्                 = गिरिगुहायाम् ।
(ग) धर्मस्य अधिकारी              = धर्माधिकारी।
(घ) विभवेन हीनाः                  = विभवहीनाः।

प्रश्न 7. यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायता “लौहतुला" इति
कथायाः सारांश संस्कृतभाषया लिखत―
              वणिक्पुत्रः, लौहतुला, वृत्तान्तं, श्रेष्ठिनं, गतः
              स्नानार्थम्, अयाचत्, ज्ञात्वा, प्रत्यागतः, प्रदानम्
उत्तर―कथायाः सारांश संस्कृतभाषायाम्―
        एकदा जीर्णधनः नाम वणिकपुत्र धनक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् अचिन्तयत् । तस्य
गृहे एका लौहतुला आसीत् । तां कस्यचित् श्रेष्ठिनः गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा सः देशान्तरं
प्रस्थितः । देशान्तरं भ्रान्त्वा स्वपुरमं प्रत्यागत्य सः तुलामयाचत् । सः श्रेष्ठी प्रत्युवाच–
"तुला तु मूषकैः भूषिता।"
         ततः जीर्णधनः श्रेष्ठिनः पुत्रेण सह स्नानार्थं गतः। स्नात्वा सः श्रेष्ठि पुत्रं
गिरिगृहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं च ब्रहच्छिलया आच्छाद्य गृहम् आगतः ।
          ततः सः वणिक् श्रेष्ठिनं स्वपुत्रविषये अपृच्छत् ।
       वणिक उवाच "नदीतटात् स: श्यनेन हृतः" इति । सः शीघ्रमाह-"श्येन: बालं
हर्तुं न शक्नोति । अतः समर्पय मे सुतम् ।"
     एवं विवदमानौ ते राजकुलं गतौ । सर्व वृत्तान्तं ज्ञात्वा धर्माधिकारिभिः तुला-शिशु
प्रदानेन तौ द्वौ सन्तोषितौ।

                                                         ◆◆

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