JAC Board Solutions : Jharkhand Board TextBook Solutions for Class 12th, 11th, 10th, 9th, 8th, 7th, 6th

themoneytizer

    Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | पर्यावरणम्  

    JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 11 


1. संकेत-प्रकृति समेषां..............क्व मङ्गलम् ।
शब्दार्थ:―समेषाम् = सबकी, प्राणिनाम् = प्राणियों को, यतते = प्रयत्न करती
है, संरक्षणाय = रक्षा के लिए, पुष्णाति = पुष्ट करती है, तर्पयति = तृप्त करती है,
सुखसाधनैः = सुख के साधनों से, अतत्त्वानि = तत्त्व, रचयन्ति = बनाते हैं,
पर्यावरणम् = पर्यावरण, आवियते = आच्छादित किया जाता है, लोकः = संसार,
बात्याचक्रः = आंधी से, अजातशिशुः = पैदा न हुआ शिशु, मातृगर्भ = माता के गर्भ
में, सुरक्षितः = सुरक्षित, पर्यावरणकुक्षौ = पर्यावरण की कोख में, परिष्कृतम् =
परिष्कृत, प्रदूषणरहितम् = प्रदूषण से रहित, सत्संकल्पम् = अच्छे संकल्प,
माङ्गलिकसामग्रीम् = मंगल सामग्री, आतङिक्रतः = व्याकुल, प्रभवति = समर्थ है,
मङ्गलम् = कल्याण, जलप्लावनैः = बाढ़ों से, भूकम्पैः = भूचालों से, उलकपातादिभिः
= उल्का आदि के गिरने से ।
        हिन्दी अनुवाद―प्रकृति सब प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है। यह
विभिन्न प्रकारों से सबको पुष्ट करती है तथा सुखसाधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी,
जल, तेज, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही मिलकर या
अलग-अलग हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। संसार जिसके द्वारा सब ओर से
आच्छादित किया जाता है, वह 'पर्यावरण' कहलाता है। जिस प्रकार अजन्माशिशु
अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में
(सुरक्षित रहता है)। परिष्कृत तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक
जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री देता है। प्रकृति के
क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है ? बाढ़, अग्नि भय, भूकम्पों, आंधी-तूफानों
तथा उल्का आदि के गिरने से संतप्त मानव का कहाँ कल्याण है ? अर्थात् कहीं
नहीं।

2. संकेत-अतएव.......प्राणवायु वितरन्ति ।
शब्दार्थ:―रक्षणीया = रक्षा करनी चाहिए, लोकमङ्गलशासिनः = जनता का
कल्याण चाहने वाले, ऋषयः = ऋषि, निवसन्ति स्म = रहते थे, विविधा विहगाः
= विभिन्न प्रकार के पक्षी, औषधकल्पम् = औषधि के समान, प्राणवायुः =
ऑक्सीजन, कलकूजितैः = मधुर कूजन से, श्रीवरसायनम् = कानों को अच्छा लगने
वाला, ददाति = देते हैं, सरितः = नदियाँ, गिरिनिर्झराः = पर्वतीय झरने, अमृतस्वादु
= अमृत के समान स्वादिष्ट, इन्धनकाष्ठानि = जलाने की लकड़ियाँ ।
                 हिन्दी अर्थ―इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए, उससे पर्यावरण
अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा । प्राचीनकाल में जनता का कल्याण चाहने वाले ऋषि
वन में ही रहते थे क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। विभिन्न
प्रकार के पक्षी अपने मधुर कूजन से वहाँ कानों को अमृत प्रदान करते हैं। नदियाँ
और पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट पवित्र जल देते हैं। वृक्ष तथा लताएँ
फल, फूल तथा इंधन की लकड़ी बहुत मात्रा में देते हैं । शीतल, मन्द तथा सुगन्धित
वनवायु औषध के समान प्राणवायु बाँटते हैं।

3. संकेत-परन्तु स्वार्थान्यो.............प्रतिभाति ।
शब्दार्थ:―नाशयति = नष्ट कर रहा है, स्वल्पलाभाय = थोड़े से लाभ के
लिए, यन्त्रागाराणाम् = कारखानों के, विभाक्तम् = विषैला, निपात्यते = फेंका जाता
है, जलचराणाम् = जलचरों का, अपेयम् = न पीने योग्य, वनवृक्षाः = जंगल के
वृक्ष, निर्विवेकम् = अकारण, अवृष्टि = वर्षा की कमी, प्रवर्धते = बढ़ती है,
वनपशवः = जंगली पशु, शरणरहिताः = अशरण, उपद्रवम् = भय तथा शान्ति,
विदधति = करते हैं, संकटापन्नः = संकटयुक्त, विकृतिमुपगता = विकारयुक्त,
विनाशकी = विनाशी, सञ्जाता = हो गई है, चिन्तनीयम् = चिन्ता से युक्त,
प्रतिभाति = प्रतीत हो रहा है।
   हिन्दी अनुवाद―किन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज
नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए मनुष्य बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे
हैं। कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है जिससे मछली आदि
जलचरों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। नदियों का पानी भी सर्वथा न पीने
योग्य (अपेय) हो जाता है। वन के वृक्ष व्यापार बढ़ाने के लिए अंधाधुंध काटे जाते
हैं जिससे अवृष्टि में वृद्धि होती है तथा वन के पशु असहाय होकर गांवों में उपद्रव
उत्पन्न करते हैं। वृक्षों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। इस प्रकार
स्वार्थ से अन्धे मनुष्य के द्वारा विकारयुक्त प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है।
पर्यावरण में विकार आ जाने से विभिन्न रोग तथा भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो रही
हैं। इसलिए अब सब कुछ चिन्तायुक्त प्रतीत हो रहा है।

4. संकेत-धर्मो रक्षितः..............न संशयः ।
शब्दार्थः―प्रतिपादितवन्तः = प्रतिपादित किया है, वापी = बावड़ी, कूप =
कुएँ, तड़ागादिनिर्माणम् = तालाब आदि बनवाना, देवायतनम् = मन्दिर,
विश्रामगृहस्थापनम् = विश्राम गृह बनवाना, संशयः = सन्देह, धर्मसिद्धे = धर्म की
सिद्धि के, अङ्गीकृतम् = माने गए हैं, कुक्कुर = कुत्ता, सूकर = सूअर, नकुल =
नेवला, स्थलचराः = पृथ्वी पर रहने वाले जीव, स्थलमलापनोदिनः = पृथ्वी की
गंदगी को दूर करने वाले, सम्भवति = संभव है, कच्छप = कछुए, मकर = मगरमच्छ ।
"हिन्दी अर्थ-'रक्षित धर्म रक्षा करता है'-ये ऋषियों के वचन हैं। पर्यावरण की
रक्षा करना भी धर्म का ही एक अंग है-ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है।
इसलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि बनवाना, मन्दिर, विश्रामगृह आदि की स्थापना
धर्मसिद्धि के साधन के रूप में ही माने गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि
स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए
क्योंकि ये पृथ्वी तथा जल की मलीनता को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा से
ही संसार की रक्षा हो सकती है-इसमें सन्देह नहीं है।

                                      अभ्यासः

प्रश्न 1.अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति ?
उत्तर―पृथिवी, जलं, तेजो, वायुकाशश्चेति प्रकृत्या प्रमुखतत्वानि सन्ति ।

(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति ?
उत्तर―स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति ।

(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति ?
उत्तर―पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगा: भीषणसमस्याश्च जायन्ते ।

(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया ?
उत्तर―वाणीकूपतडागादिनिर्माणं कृत्वा, कुक्कुरसूकरसर्पनकुलादिस्थलचराणां
मत्स्यकच्छपकरप्रभूतीनां जलचराणां रक्षणेन पर्यावरणस्य रक्षा करणीया ।

(ङ) लोकरक्षा कथं सम्भवति ?
उत्तर―प्रकृतिरक्षयैव लोकरक्षा सम्भावति ।

(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति ?
उत्तर―परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं सद्विचार, सत्यसङ्कल्प
मालिकसामग्रीञ्च प्रददाति ।

प्रश्न-2. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(क) वनवृक्षाः निर्विवेक छिद्यन्ते ।
उत्तर―के निर्विवेक छिद्यन्ते ?

(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते ।
उत्तर―कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते ?

(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति ।
उत्तर―प्रकृतिः किं प्रददाति ?

(घ) अजातशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति ।
उत्तर―अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?

(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अगम् अस्ति ।
उत्तर―पर्यावरणक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति ?

प्रश्न-3. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत―
(क) जले चरन्ति इति = जलचरा।
उत्तर―(i) स्थले चरन्ति इति = स्थलचराः
(ii) निशायां चरन्ति इति = निशाचराः
(iii) व्योम्नि चरन्ति इति = व्योमचराः
(iv) गिरौ चरन्ति इति = गिरिचरा
(v) भूमौ चरन्ति इति = भूमिचरा:

(ख) यथा-न पेयम् इति = अपेयम्
उत्तर―(i) न वृष्टिः इति = अवृष्टिः
(ii) न सुखम् इति = असुखम्
(iii) न भावः इति = अभाव:
(iv) न पूर्णः इति = अपूर्णः

प्रश्न-4. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माण कुरुत―
यथा―वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः ।
उत्तर―(क) प्र+ गम् + क्तिन् = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् = गतिः
(घ) मन् + क्तिन् = मतिः
(ङ) शम् + क्तिन् = शान्तिः
(च) भी + क्तिन् = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् = जातिः
(ज) भज् + क्तिन् = भक्ति
(झ) नी + क्तिन् = नीतिः

प्रश्न-5. निर्देशानुसारं परिवर्तयत-
यथा― स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति (बहुवचने)।
स्वार्थान्धाः मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति ।
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः ?
उत्तर―सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः?

(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्तिं (एकवचने)
उत्तर―मानव: पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति ।

(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते (एकवचने)
उत्तर―वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते ।

(घ) गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति (द्विवचने)
उत्तर―गिरिनिर्झरा: निर्मलं जलं प्रयच्छतः ।

(3) सरित निर्मल जल प्रयच्छति (बहुवचने)।
उत्तर―सरित: निर्मलं जलं प्रयच्छति ।

प्रश्न-6. पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्चवाक्यानि
लिखत्।
यथा―अहं विषाक्तम् अवकर नदीषु न पातयिष्यामि ।
(क) अहं वृक्षच्छेदन न करिष्यामि ।
(ख) अहं नूतनवृक्षान् लता: च आरोपयिष्याणि ।
(ग) अहं पशून् पालयिष्यामि ।
(घ) अहं पशुपक्षिणाम् आखेटं न करिष्यामि ।
(ङ) अहं वापीकूपतडागादीनां निर्माणं करिष्यामि ।

प्रश्न-7.(क) उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत―
यथा―संरक्षणाय = सम् ।
उत्तर―(i) प्रभवति = प्र
(ii) उपलभ्यते = उप
(iii) निवसन्ति = नि
(iv) समुपहरन्ति = सम् + उप
(v) वितरन्ति = वि
(vi) प्रयच्छन्ति = प्र
(vii) उपगता = उप
(viii) प्रतिभाति = प्रति

(ख) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत-
यथा―तेजोवायुः = तेजः वायुः च ।
गिरिनिर्झराः = गिरयः निर्झराः च ।
उत्तर―(i) पत्रपुष्पे = पत्रम् पुष्पम च ।
(ii) लतावृक्षौ = लता वृक्षः च
(iii) पशुपक्षी = पशुः पक्षी च
(iv) कीटपतङ्गः च।

                             परियोजनाकार्यम्

प्रश्न-(क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य उद्यानस्य वृक्षाः पापाश्च कर्थ
सुरक्षिताः । स्युः तदर्थे प्रयत्नः करणीयः इति सप्तवाक्येषु लिखत ।
उत्तर―1. सर्वप्रथमं वृक्षाणां पादपानां च स्पर्शस्य निषेधः स्यात् ।
2. तेषां पुष्पाणामपि स्पर्शस्य निषेधः भक्तिव्यः ।
3. वृक्षाणां फलानामपि कपि हानिः न भवितव्या ।
4. तेषां जलसिञ्चनस्य पूर्णः प्रबन्धः स्यात् ।
5. पुष्पविनाशकं प्रति दण्डस्य व्यवस्था स्यात् ।
6. वृक्षान् पादपान् वा प्रति रक्षाजालस्य व्यवस्था भक्तिव्या ।
7. वृक्षाणां संरक्षणाय मालाकाराणामपि व्यवस्था भवितव्या ।

(ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं
करणीयम् । ( यदि स्थानम् अस्ति ) तर्हि विद्यालये प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन्
प्रतिवेशे, गृहे वा। कृतं सर्व दैनिन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शयत ।
उत्तर―छात्र अपने-अपने अध्यापक के सहयोग से अपने-अपने विद्यालय में
वृक्ष लगाएँ तथा अपनी डायरी में लिखें कि वे उसकी रक्षा के लिए प्रतिदिन
क्या-क्या करते हैं-यह सब वह अपने अध्यापक को भी लिखकर दिखाएँ।

                                                ◆◆

  FLIPKART

और नया पुराने

themoneytizer

inrdeal