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   Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | कल्पतरुः  

  JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 4


संकेत―"अस्ति हिमवान......................शक्नुयात्" इति ।
शब्दार्थ : हिमवान् = हिमालय, नाम = नामक, नगेन्द्रः = पर्वतों का राजा,
सानोः = चोटी के, आराध्य = आराधना करके, कुलक्रमागतः = कुल परम्परा से
प्राप्त हुआ, दानवीरः = दानी, सर्वभूतानुकम्पी = सब प्राणियों पर दया करने वाला
सचिव : = मंत्रियों द्वारा, प्रेरितः = प्रेरणा से, अभिषिक्तिवान् = अभिषेक कर दिया,
यौवराज्ये = युवराज के पद पर, हितैपिभिः = हित चाहने वालों के द्वारा,
सर्वकामदः = सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला, शक्रः = इन्द्र, न शक्नुयात् = समर्थ
नहीं होगा, बाधितुम् = कष्ट पहुँचाने में, अनुकूल : = अनुकूलः, सहायक ।
             हिन्दी अनुवाद―सब रलों की भूमि पर्वतों का राजा हिमालय है। उस पर्वत
के शिखर पर कञ्चनपुर नामक नगर है । वहाँ श्रीमान् विद्याधरपति जीमूतकेतु रहता
था। उसके गृहोद्यान में वंश परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष लगा हुआ था । उस कल्पवृक्ष
की पूजा करके तथा उसकी कृपा से राजा जीमूतकेतु ने बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न
जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया। वह अत्यन्त दानी तथा सब प्राणियों पर दया
करने वाला था। उसके गुणों से प्रसन्न तथा मंत्रियों से प्रेरित राजा ने उचित समय
पर यौवन सम्पन्न अपने पुत्र जीमूतवाहन का युवराज के पद पर अभिषेक कर दिया
युवराज के पद पर स्थित उस जीमूतवाहन से उसके हितेषी पिता तथा मंत्रियों ने
कहा-“हे युवराज ! जो यह सारी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला कल्पतरू तुम्हारे
उद्यान में स्थित है, वह तुम्हारे लिए सदा पूज्य है। इसके सहायक होने पर इन्द्र भी
हमें कोई बाधा नहीं पहुँचा सकता।"
      शब्दार्थ : आकण्य = सुनकर, अमरपादपम् = अमर पौधे को, पूर्वैः पुरुषै: =
पूर्वजों के द्वारा, नासादितम् = नहीं प्राप्त किया, कृपणै: = कंजूस लोगों के द्वारा,
साधयामि = मैं सिद्ध करता हूँ। अभ्यनुज्ञातः = अनुमति पाया हुआ, अर्थितः = मांगा
गया, अन्तिकम् = समीप, वीचिवत् = लहरों की तरह, चञ्चलम् = नश्वर, क्षणिक,
परोपकार : = दूसरों का उपकार, यशः = यश, आराधयामि = मैं पूजा करता हूँ,
कामाः = इच्छाएँ, पूरिताः = पूरी की गई, अदरिद्रामः = दरिद्रता से रहित, सम्पन्न,
वाक् = वाणी, शब्द, दिवम् = स्वर्ण में, समुत्प्रत्य = उड़कर, भुवि = पृथ्वी पर,
वसूनि = घर को, अवर्षत् = बरसाया, दुर्गतः = दुर्दशा में, निर्धन, प्रथितम् = प्रसिद्ध
हो गया, सर्वजीवानुकम्पया = सब जीवों पर दया करने से।
              हिन्दी अनुवाद―ऐसा सुनकर जीमूतवाहन ने मन में सोचा–"अरे ! आश्चर्य
है। ऐसे अमर वृक्ष को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों ने ऐसा कुछ भी फल प्राप्त नहीं
किया और केवल कुछ गरीब लोगों ने थोड़ा धन ही मांगा। अत: मैं इस वृक्ष से
अभीष्ट मनोरथ सिद्ध करता हूँ।" ऐसा सोचकर वह पिता के पास आया। आकर
सुखपूर्वक बैठे हुए पिता से एकान्त में निवेदन किया-"पिताजी ! आप तो जानते ही
हैं कि इस संसार सागर में शरीर सहित सारा धन लहरों की तरह चंचल (नश्वर)
है। इस संसार में एक परोपकार ही अनश्वर है जो युगान्त तक यश फैलाता है। यदि
ऐसा है तो हम ऐसे कल्पवृक्ष की रक्षा क्यों कर रहे हैं। जिन पूर्वजों ने 'मेरा मेरा'
कहकर इस वृक्ष की रक्षा की, वे अब कहाँ गए ? उनमें से किसका है यह? या
इसके वे कौन हैं ? तो आपकी आज्ञा से 'परोपकार' की फल सिद्धि के लिए मैं इस
कल्पवृक्ष की आराधना करता हूँ।"
          "अच्छा ठीक है" पिता के द्वारा ऐसी आज्ञा प्राप्त करके कल्पवृक्ष के पास
पहुँचकर जीमूतवाहन ने कहा-“हे देव ! तुमने हमारे पूर्वजों की अभीष्ट इच्छाएँ पूर्ण
की हैं, तो मेरी एक इच्छा पूरी कर दो। आप इस पृथ्वी को निर्धनों से रहित कर
दो, देव।" जीमूतवाहन के ऐसा कहते ही उस वृक्ष में से आवाज निकली "तुम्हारे
द्वारा इस तरह त्यागा हुआ मैं जा रहा हूँ।"
          उस कल्पवृक्ष ने क्षणभर में ही स्वर्ण में ही स्वर्ग की और उड़कर पृथ्वी पर
इतने धन की वर्षा की कि कोई भी निर्धन नहीं रहा। सब प्राणियों पर दया करने से
इस तरह उस जीमूतवाहन का यश सब जगह प्रसिद्ध हो गया।

                                 अभ्यासः

प्रश्न-1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) कजपुरं नाम नगरं कुत्र विभाति स्म?
उत्तर―कञ्चनपुरं नाम नगरं हिमालयपर्वतस्य सानो: उपरि विभाति स्म।

(ख) जीमूतकेतुः किं विचार्य जीमूतवाहनं यौवराज्ये अभिषिक्तवान् ?
उत्तर―स्वपुत्रस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः जीमूतकेतुः सम्प्राप्तयौव
जीमूतवाहनं यौवराज्ये अभिषिक्तवान् ।

(ग) कल्पतरोः वैशिष्ट्यमाकये जीमूतवाहनः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर―कल्पतरो: वैशिष्ट्यमाकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत् “परोपकारैकफलसिद्ध
इमं कल्पपादपम् आराधयामि"।

(घ) पाठानुसारं संसारेऽस्मिन् किं किं नश्वरम् किञ्च अनश्वरम् ?
उत्तर―पाठनुसारं संसारेऽस्मिन् आशरीरमिदं सर्व धनं नश्वरम्, एकः परोपकार
एवानश्वरः।

(ङ) जीमूतवाहनस्य यशः सर्वत्र कथं प्रथितम् ?
उत्तर―सर्वजीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः सर्वत्र प्रथितम् ।

प्रश्न 2. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि ?
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम् ।
उत्तर―हिमवते।

(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान् ?
उत्तर―जीमूतवाहनाय ।

(ग) अयं तव सदा पूज्यः ।
उत्तर―कल्पवृक्षाय।

(घ) तात् ! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम् ।
उत्तर―जीमूतकेतवे।

प्रश्न-3. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत―
उत्तर―(क) पर्वतः = नगेन्द्रः
(ख) भूपतिः = राजा
(ग) इन्द्रः = शक्रः
(घ) धनम् = अर्थ:
(ङ) इच्छितम् = अर्थितः
(च) समीपम् = अन्तिकम्
(छ) धरित्रीम् = पृथ्वीम्
(ज) कल्याणम् = स्वास्ति, हितम
(झ) वाणी = वाक्
(ञ) वृक्षः = तरुः

प्रश्न-4. 'क' स्तम्भे विशेषणानि 'ख' स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि ।
तानि समुचितं योजयत―
'क' स्तम्भः                             'ख' स्तम्भः
(क) कुलक्रमागतः                  (1) परोपकारः
(ख) दानवीरः                         (2) मन्त्रिभिः
(ग) हितैषिभिः                        (3) जीमूतवाहनः
(घ) वीचिवच्चञ्चलम्               (4) कल्पतरुः
(ङ) अनश्वरः                          (5) धनम्
उत्तर―'क' स्तम्भः                   'ख' स्तम्भः
(क) कुलक्रमागतः                  (4) कल्पतरुः
(ख) दानवीरः                        (3) जीमूतवाहनः
(ग) हितैषिभिः                       (2) मन्त्रिभिः
(घ) वीचिवच्चञ्चलम्              (5) धनम्
(ङ) अनश्वरः                          (1) परोपकारः

प्रश्न―5.(क) “स्वस्ति तुभ्यम्" स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः
प्रवति । इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता । एवमेव (कोष्ठकगतेषु)
चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
उत्तर―(i) स्वस्ति राज्ञे (राजा)।
(ii) स्वस्ति प्रजायै (प्रजा)।
(iii) स्वस्ति छात्राय (छात्र)।
(iv) स्वस्ति सर्वजनाय (सर्वजन)।

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्ति प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत―
उत्तर―(i) तस्य गृहस्य उद्याने कल्पतरुः आसीत् । (गृह)
(ii) सः पितुः अन्तिकम् अगच्छत् । (पितृ)
(iii) जीमूतवाहनस्य सर्वत्र यशः प्रथितम् । (जीमूतवाहन)
(iv) अयं कस्य तरू:? (किम्)

प्रश्न 6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(क) तरोः कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ।
उत्तर―कस्य कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत् ?

(ख) सः कल्पतरव न्यवेदयत् ।
उत्तर―सः कस्मै न्यवेदयत् ?

(ग) धनवृष्ट्या कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत् ।
उत्तर―कया कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत् ?

(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत् ।
उत्तर―कल्पतरु: कुत्र धनानि अवर्षत् ?

(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रसारत् ।
उत्तर―कया जीमूतवाहनस्य यशः प्रसारत् ?

प्रश्न-7.(क) यथास्ना, समास विग्रहं च कुरुत―
उत्तर―(i) विद्याधराणां पतिः = विद्याधरपति
(ii) गृहस्य उद्याने = गृहोद्याने
(iii) नगानाम् इन्द्र = नगेन्द्रः
(iv) परेषाम् उपकारः = परोपकारः
(v) जीवानाम् अनुकम्पया = जीवानुकम्पया

(ख) उदाहरणमनुसृत्य मतुप् (मत्, वत्) प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि
रचयत―
यथा―हिम + मतुप् = हिमवान् ।
         श्री + मतुप् = श्रीमान् ।
उत्तर―(i) शक्ति + मतुप् = शक्तिमान् ।
(ii) धन + मतुप् = धनवान् ।
(iii) बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमान् ।
(iv) धैर्य + मतुप् = धैर्यवान् ।
(v) गुण + मतुप् = गुणवान् ।

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