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   Jharkhand Board Class 9TH History Notes | वन्य-समाज एवं उपनिवेशवाद :   

     JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) History Chapter 4


1. वन विनाश किसे कहते हैं?
उत्तर― वनों के लुप्त होने को सामान्यतः वन-विनाश कहते हैं।

2. वैज्ञानिक वानिकी क्या है?
उत्तर― वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई जिसमें पुराने पेड़ काट कर उनकी जगह
नए पेड़ लगाए जाते हैं। वैज्ञानिक वानिकी कहलाता है।

3. स्लीपर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― रेल की पटरी के आर-पार लगे लकड़ी के तख्ते जो पटरियों को उनकी
जगह पर रोके रखते हैं उन्हें स्लीपर कहते हैं।

4. भारत के पश्चिमी घाटों अथवा अमेजन वनों में कुल विभिन्न तरह के
जो पौधे पाये जाते हैं उनकी कुल संख्या लिखें।
उत्तर― लगभग 500 विभिन्न पौधों की प्रजातियाँ भारत में पश्चिमी घाटों अथवा
अमेजन वनों में पाई जाती है।

5. छत्तीसगढ़ में पाये जाने वाले एक गहन जंगल का नाम लिखें।
उत्तर―साल वन।

6. गाँवों में अंग्रेजों द्वारा किस तरह की भूमि प्रयोग हेतु छोड़ी गई थी?
उत्तर― जो भूमि बहुत ज्यादा दलदली एवं सामान्यता पहुंच से बाहर होती थी जहाँ
प्रायः मलेरिया जैसी भयंकर बीमार फूट पड़ती थी वही भूमि परम्परागत रूप
से गाँव वालों के सामान्य प्रयोग के लिए अंग्रेजों द्वारा छोड़ दी जाती थी।

7. हमें चरवाहा-समुदायों, वनवासियों, घुमंतू-किसानों और भोजन
एकत्र-कर्ताओं के विषय में क्यों जानकारी प्राप्त करनी चाहिए?
उत्तर― क्योंकि ये समुदाय भी आधुनिक जगत का महत्वपूर्ण भाग है, जहाँ हम
आज रह रहे हैं।

8. 1700 से 1995 तक विश्व भर में वनों का कितना क्षेत्र उद्योगों, कृषि
चरागाहों और जलाने की लकड़ी के लिए साफ किया गया?
उत्तर― लगभग 139 लाख वर्ग किलोमीटर जो संसार के समस्त भू-भाग का
9.3% है।

9. 1600 में भरत की कुल भूमि का कितना भाग कृषि-अधीन था?
उत्तर― कोई छठा भाग।

10. रेलवे की एक मील लम्बी पटरी को बनाने में कितने स्लीपरों की
आवश्यकता पड़ती थी?
उत्तर― कोई 1760 से 2000 स्लीपरों के बीच।

11. औपनिवेशिक काल में दोनों-वनों और लकड़ी के गोदामों में, भारी
लकड़ी के टुकड़े को उठाने के लिये किस पशु का प्रयोग किया जाता
था?
उत्तर― हाथी का।

12. बागान किसे कहते हैं?
उत्तर― किसी विशेष प्रजाति के पौधों को सीधी कतारों में लगाने की प्रक्रिया को
पौधा रोपण या बागान कहते हैं।

13. कब भारतीय वन्य सेवा शुरू की गई और कब पहला भारतीय वन्य
कानून पास किया गया?
उत्तर― भारतीय वन्य सेवा 1864 में शुरू की गई और भारतीय वन्य कानून
1865 में पास हुआ।

14. कब और कहाँ इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टीट्यूट स्थापित की गई?
उत्तर― यह 1906 में देहरादून में स्थापित की गई।

15. 1865 के भारतीय वन्य कानून में कब सुधार किया गया?
उत्तर― पहले 1878 में और फिर 1927 में।

16. 1878 के वन्य कानून में वनों को कन तीन भागों में बांटा गया?
उत्तर―(क) आरक्षित वन, (ख) सुरक्षित वन, (ग) ग्रामीण वन।

17. सबसे अच्छे वन किन को माना जाता है?
उत्तर― सबसे अच्छे जंगलों को आरक्षित वन कहा जाता है क्योंकि ये लोगों की
दखलअंदाजी से बिल्कुल सुरक्षित होते हैं।

18. सागवान और साल जैसे वृक्षों को क्यों प्रोत्साहित किया गया?
उत्तर― क्योंकि वे लम्बे और सीधे होते हैं और उनसे जहाज और रेलों के डिब्बे
और पटरियाँ आसानी से बनाई जा सकती थीं।

19. झूम या घुमंतू खेती किसे कहते हैं?
उत्तर― जब वन के एक भाग को काट-फूंक कर साफ करने के पश्चात उसमें
अल्पकाल के लिये खेती की जाती है और उसकी उर्वरता हो जाने
पर उसे छोड़कर आगे बढ़ लिया जाता है तो ऐसी अल्पकालीन कृषि को
झूम या घुमंतू खेती कहा जाता है। ऐसी कृषि प्रायः वन-निवासी करते हैं।

20. कितने चीतों, बाघों और भेड़ियों को 1875-1925 की अवधि में मारा
गया?
उत्तर― 80,000 बाघों, 150,000 तेन्दुओं और कोई 200,000 भड़ियों को
1875 से 1925 की अवधि में मारा गया।

21. किन्हीं पाँच वन उत्पादों के नाम लिखें।
उत्तर― हाथी दाँत, सींग और खाल, गोंद, मसाले और बांस आदि।

22. घुमंतू समूहों (या कबीले) के नाम लिखें।
उत्तर― कोरावा, कराचा तथा येरुकुला ये तीनों समूह मद्रास प्रेजीडेन्सी में रहने वाले
थे।

23. बस्तर कहाँ है?
उत्तर― यह स्थान छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिण भाग में स्थित है और आन्ध्र प्रदेश,
उड़ीसा और महाराष्ट्र आदि राज्यों के साथ इसकी सीमाएँ लगती हैं।

24. किस क्षेत्र/देश में ऐसी परिस्थितियाँ मौजूद हैं जैसे कि बस्तर के
जंगलों में पाई जाती है?
उत्तर― जावा (इण्डोनेशिया) में लगभग ऐसी परिस्थितियाँ मौजूद हैं जैसा कि
बस्तर के जंगलों में पाई जाती है।

25. वैज्ञानिक वानिकी की नई योजना के अंतर्गत कौन-कौन से कदम
उठाए गए?
उत्तर―(क) प्राकृतिक वनों को जिनमें विविध प्रजाति वाले वृक्ष थे उन्हें काट
डाला गया क्योंकि उनका उद्योगों में कोई इतना प्रयोग और लाभ नहीं हो
सकता था।

(ख) इनके स्थान पर एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए गए जिनकी
देखभाल करना भी आसान था और जिनसे होने वाले लाभ की भी अधिक
सम्भावना थी।

26. वन वातावरण में नमी को कैसे जोड़ते हैं?
उत्तर― वनों के पेड़-पौधों से जल निकलने या उड़ने की जो प्रक्रिया होती रहती
है. वह पर्यावरण या वातावरण में नमी को बढ़ाती है। जल निकासी से एक
फायदा यह है कि इससे जलवायु समान स्तर की बनी रहती है। प्रायः जिन
क्षेत्रों में वन ज्यादा होते हैं उनमें वर्षा खूब होती है।

                                          लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तन ने घुमंतू और
चरवाहा समुदायों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर― ब्रिटिश सरकार ने नए वन्य कानूनों द्वारा घुमंतू लोगों और चरवाहा समुदायों
को वनों में आजादी से अपने पशुओं को चराने और छोटे-छोटे जंगली जानवरों का
शिकार करने के अधिकारों से हाथ धोना पड़ा। अब वे जंगल में अपने पशुओं को
चरा नहीं सकते थे और खाने के लिए कन्दमूल इकट्ठा न कर सकते थे, अपने
भवन बनाने के लिए वहाँ से लकड़ी काट नहीं सकते थे और न ही अपना चूल्हा
जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठा कर सकते थे। इस प्रकार उन और उनके पशुओं
के लिए जंगल के सभी दरवाजे बन्द हो गए और उन्हें भूखों मरने की नौबत आ
गई।

2. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तन ने झूम खेती
करने वालों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर― झूम खेती करने वाले वे लोग थे जो बार-बारी वन के एक भाग को काट
लेते थे और उसे जला लेते थे। वृक्ष काटने और जलाने का काम बारी-बारी किया
जाता था ताकि खेती भी होती रहे और बाकी हिस्से में जंगल कायम रहे। राख वाली
भूमि पर मानसून की वर्षां आने के पश्चात बीज बोए जाते थे और अक्टूबर-नवम्बर
फसल काट ली जाती थी। परन्तु अंग्रेजी सरकार ने झूम खेती को एक शर्मनाक
प्रथा मानकर बिल्कुल बंद कर दिया क्योंकि इसमें एक तो भूमिकर प्राप्त करने
की कोई संभावना नहीं होती थी और दूसरे आग की लपटों से अच्छे वृक्षों के जल
जाने का भी खतरा होता था। परन्तु इन नए प्रावधानों के कारण झूम खेती करने
वालो पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें अपने पैतृक स्थानों और घरों से हाथ
धोना पड़ा और नए व्यवसाय ढूँढने के लिए उन्हें दूसरे स्थानों पर जाने के लिए
मजबूर होना पड़ा। परन्तु कुछ झूम खेती करने वालों ने ऐसे कानूनों का विरोध किया
और छुट-पुट विद्रोह भी किए।

3. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तन ने लकड़ी और
वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर― जब आदिवासी जातियों से वन उत्पादों जैसे-हाथी दाँत, सींग, रेशम के
ककून, खालें, याँस, मसाले, जड़ी बूटियाँ, गोंद, तेल आदि के अधिकार छीन लिए।
गए तो भारतीय व्यापारियों को भी इन नए कानूनों से काफी हानि रही। केवल कुछ
ब्रिटिश कंपनियों को ही लाभ हुआ जिन्हें इन चीजों को इकट्ठा करने का तथा
उनका व्यापार करने के अधिकार दे दिये गये।

4. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तन ने बागान
मालिकों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर― बागान मालिकों जो प्रायः यूरोपीय ही होते थे उन्हें नए वन कानूनों से काफी
लाभ रहा। एक तो उन्हें बड़े-बड़े जंगलों को काटकर वहाँ अपने चाय, कॉफी और
नौल आदि के बागान स्थापित करने आसान हो गए और दूसरे उन्हें घुमंतू लोगों
चरवाहा समुदाय के लोगों तथा आदिवासियों को, अपने पास नौकर रखने का अच्छा
मौका मिल गया क्योंकि अब उन जातियों से वनों को लाभ उठाने के सभी अधिकार
छीन लिये गये थे। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए यूरोपीय बागान मालिकों ने
आदिवासी जातियों का का खूब शोषण किया।

5. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तन ने शिकार खेलने
वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर- एक और जहाँ जंगल निवासियों को छोटे-मोटे जंगली जानवरों जैसे-
हिरण, खरगोश, सूअर आदि का शिकार करने से रोक दिया गया, वहाँ भारतीय
राजा-महाराजाओं और ब्रिटिश अधिकारियों को इन जंगलों में शिकार कने की
खुली छूट दे दी गई। वे जब चाहते थे कर सकते थे। हमें यह जानकर हैरानी होती
है कि अकेले जार्ज यूल नामक एक ब्रिटिश अधिकार ने 400 बाघ मार डाले
जबकि सरगुज्जा के महाराज ने 1957 ई. तक कोई 1157 बाघ और 2000
के लगभग तेंदुओं का शिकार कर डाला।

6. वैज्ञानिक वानिकी की प्राथमिक गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर― (क) स्थानीय लोगों को उचित प्रशिक्षण देना ताकि वे स्थानीय स्तर पर
उचित ढंग से वनों की व्यवस्था एवं प्रबंध कर सकें।

(ख) इस व्यवस्था को कानूनी अनुमति की आवश्यकता होती है। वनों
के संसाधनों से जुड़े कानूनों के निर्माण की आवश्यकता थी। पेड़ न गिराया जाए
एवं जानवरों को चराने को सीमित किये जाने की आवश्यकता थी ताकि टिम्बर
उत्पादन लिए वनों को संरक्षित किया जा सके।

(ग) वैज्ञानिक वानिकी को बहुउद्देशीय भूमि उपयोग के सिद्धान्त के
आधार पर प्रतिबन्धन किया जाता है। यद्यपि टिम्बर की कटाई एवं उसके स्थान
पर नये वृक्षारोपण की गतिविधियाँ मुख्यतया चलाई जाती हैं। इन सभी गतिविधियों
का एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि आवश्यकतानुसार टिम्बर की आपूर्ति निरन्तर
जारी रहे तथा वनों का अभाव भी न हो।

7. वनों का जीविका से किस प्रकार से परोक्ष रूप से सम्बन्ध है?
उत्तर― वनों का बहुत ही महत्व है क्येकि ये न केवल प्रत्यक्ष रूप से अपितु परोक्ष
रूप से भी जीविका के साथ जुड़े हुए हैं। जंगलों से मृदा को उपजाऊ शक्ति मिलती
है जो फसलों की पैदावार को बढ़ाती है। वन जैव प्राणियों की आवश्यकता को
पूरा करते हैं। वन भू-कटाव को भी रोकते हैं. फसलों को संरक्षण देते हैं तथा उनकी
उपज को भी बढ़ाते हैं।

8. दो कारण बताएं कि औपनिवेशिक काल में खेती का क्यों विस्तर
हुआ?
उत्तर― उस काल को जब अंग्रेजों ने यहाँ अपना शासन किया. उसे औपनिवेशिक
काल कहते हैं। इस काल में खेती का खूब विस्तार हुआ जिसके मुख्य कारण इस
प्रकार हैं―
(क) अंग्रेजों ने व्यावसायिक फसलों, जैसे पटसन, गन्ना, गेहूँ और
कपास का खूब विस्तार किया क्योंकि इनकी खेती से अधिक आय प्राप्त होने की
सम्भावना रहती थी।

(ख) इंग्लैंड के कारखानों को कच्चा माल चाहिए था इसलिए भी इस
व्यावसायिक फसलों की पैदावार को बढावा दिया गया।

9. बस्तर के लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर― (क) जब अंग्रेजों ने वनों को आरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया तो बस्तर
के वन-निवासियों के लिये जीना हराम हो गया। अब वे वनों से लकड़ी नहीं कट
सकते थे वे अनेक वन्य-उत्पादों से भी वंचित हो गए जिन्हें बेचकर वे अपना निर्वाह
कर लेते थे।

(ख) वे वनीय भागों में घुमंतू खेती करके अपना पेट भरने के लिए
अनाज पैदा कर लेते थे। अब वे इससे भी महरूम हो गए। ऐसे में उनके भूखों
मरने की नौबत आ गई।

(ग) एक तो वे अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों से तंग आ चुके थे और
दूसरे वे ब्रिटिश अधिकारियों को तोहफे देते-देते तथा बेगार में उनकी नौकरी
करते-करते परेशान हो चुके थे।

                                        दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में क्या समानताएँ हैं ?
उत्तर― औपनिवेशिक काल में बस्तर तथा जावा में वन प्रबंधन में निम्नांकित
समानताएँ थीं―
(क) दोनों ही जगहों पर शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया।

(ख) रेलवे तथा जहाज निर्माण के लिए अत्यधिक संख्या में पेड़ों की
कटाई की गई।

(ग) वनवासी समुदायों द्वारा विरोध करने पर उन्हें प्रताड़ित किया गया।

(घ) घुमंतू तथ चरवाहे समुदायों को वनों में प्रवेश करने से रोका गया।

(ङ) वन-उत्पाद से संबंधित स्थानीय को वनों में प्रवेश करने से रोका
गया।

(च) वनों की कटाई तथा बागानों के विकास के लिए यूरोपीय कंपनियों
को लाइसेंस/परमिट दिये गये।

(छ) वनवासी समुदायों को जंगल में अपने घरों में रहने के लिए या तो
किराया देने के लिए अथवा बेगारी के लिए मजबूर किया गया।

(ज) वन भूमि का ग्रामीण, सुरक्षित तथा संरक्षित वनों में वर्गीकरण कर
दिया गया।

(झ) इन नीतियों के निर्माण में दोनों ही जगहों पर स्थानीय लोगों को
शामिल नहीं किया गया बल्कि, यूरोपीय विशेषज्ञों ने इन नीतियों का
अपने हितों के लिए निर्माण किया।

(ञ) दोनों ही जगहों पर औपनिवेशिक वन प्रबंधन का उद्देश्य सरकारी
सत्ता का फायदा पहुंचाना तथा स्थानीय वनों में या आस-पास रहने
वालों का शोषण करना था।

2. युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर― अनेक कारणों से युद्ध के दौरान वनों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।
विशेषकर निम्नांकित कारणों की विशेष भूमिका रहती है―
           (क) आधुनिक युग में आक्रमण से बचने के लिए सैनिक लोग खुले
स्थान छोड़कर वनों की छत्रछाया में आ जाते हैं ताकि उन पर कोई हवाई हमला
न कर सके। एक तो वनों को बर्बाद कर देते हैं और बाकी बची-खुची कसर शत्रु
पक्ष के लोग पूरा कर देते हैं जब अपने विरोधियों को ढूंढते-ढूँढते वे वनों में घुस
आते हैं या जला देते हैं। ऐसे में वनों का कुछ नहीं बचता।

                     (ख) युद्धों में व्यस्त हो जाने के कारण बहुत से देशों का ध्यान वनों
का सुव्यवस्थित ढंग से विकास करने के कार्यों से हट जाता है और परिणामस्वरूप
बहुत से वन लापरवाही का शिकार हो जाते हैं।

                          (ग) युद्ध से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों की पूर्ति के लिये वृक्षों को
अन्धाधुध काट दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय में हरे-भरे वन
गायब हो जाते हैं।

            (घ) कई बार देश की अपनी सरकारें, जब देखती है कि उनके वनों
पर शुत्र का अधिकार हो जाएगा तो वे स्वयं वनों को काटना शुरू कर देती है
और इस प्रकार भी वनों का नामोनिशान तक मिट जाता है। ऐसे ही दूसरे विश्व
युद्ध में इण्डोनेशिया में हुआ जब वहाँ जापानी अधिकार की सम्भावना बढ़ गई तो
वहाँ की डच सरकार ने स्वयं अपने वनों को काट डाला।

                (ङ) कई बार इन वनों पर अधिकार करने वाली शक्तियाँ इन वनों को
अन्धाधुन्ध काट देती हैं ताकि दूसरा पक्ष इन वनों में शरण न ले सके। दूसरे विश्व
युद्ध में इण्डोनेशिया के वनों को दोहरी मार भुगतनी पड़ी। इस दोधारी तलवार से
भला वन कैसे बच सकते थे।

          (च) वन-अधिकारियों और सरकार को युद्ध में फंसा देखकर बहुत बार
वनों के आस-पास रहने वाले लोग वनों को काटना शुरू कर देते हैं ताकि एक
तो उनको लकड़ी से आमदनी हो जाए और दूसरे उनकी खेती करने वाली भूमि
का दायरा बढ़ जाए। विशेषकर जिन लोगों को पहले वनों से बाहर से निकाला
गया था वे फिर से वनों को अपना अधिकार में ले लेते हैं।

3. सन् 1880 से 1920 के बीच भरतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र
में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से
घटकर यह क्षेत्र 9.81 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नांकित
कारकों की भूमिका बताएँ―
(क) रेलवे
(ख) जहाज निर्माण
(ग) कृषि विस्तार
(घ) व्यावसायिक खेती
(ङ) चाय-कॉफी के बागान 
(च) आदिवासी और किसान
उत्तर― (क) रेलवे : इंग्लैंड द्वारा रेलवे के विस्तार ने वनों की कटाई एवं विनाश
में भारी योगदान दिया। रेलवे को यातायात, औपनिवेशिक नियंत्रण, प्रशासनिक
आवश्यकताओं, व्यापार एवं सैनिकों को लाने ले जाने के लिए बहुत जरूरी समझा
गया (i) रेलवे में कोयले से चलने वाले इंजनों के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी की
जरूरत पड़ी। (ii) रेलवे लाइन बिछाने तथा रेलवे डिब्बे बनाने के लिए भी टिम्बर
की भारी आवश्यकता महसूस की गई। इन सबके लिए बड़ी संख्या में पेड़ गिराये
गये जो जंगल रेलवे लाइनों के नजदीक स्थिति थे वे लगभग गायब हो गये।

                 (ख) जहाज-निर्माण : यूनाइटेड किंगडम का औपनिवेशिक साम्राज्य
सर्वाधिक विस्तृत था तथा उसके पास ओक वनों की कमी के कारण जहाज बनाने
के लिए लकड़ी की बड़ी भारी कमी महसूस की गई। शाही नेवली (नौ-सेना),
बडत्र-बड़ी लकड़ी की नावें बनाने, जहाज, कोर्टयार्ड्स तथा जहाजरानी अदि के
लिए लकड़ी की आवश्यकता महसूस की गई। 1820 तथा 1830 के दशकों में
भरत से बड़ी मात्रा में टिम्बर इंग्लैंड भेजा गया ताकि जहाजों के निर्माण के लिए
लकड़ी की माँग पूरी की जा सके। स्वाभाविक उप-महाद्वीप की वनों से आच्छादित
भू-भाग में तेजी से कमी आई।

(ग) कृषि-विस्तार― बढ़ती हुई जनसंख्या, फैलता हुआ शहरीकरण,
बढ़ता हुआ विदेशी व्यापार, व्यावसायिक फसलों की माँग तथा छोटे पैमाने के एवं
कुटीर उद्योग-धन्धों के पतन के किसानों को प्रेरणा दी कि कृषि क्षेत्र का विस्तार
किया जाए। औपनिवेशिक सरकार की गलत नीतियों ने भी कृषि विस्तार को बढ़ावा
दिया क्योंकि विदेशी शासकों ने गहन कृषि के लिए कोई भी लाभकारी कदम नहीं
उठाये। इसने भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत में वनों के गायब होने में
मदद की।

                 (घ) व्यवसायिक खेती- प्राकृतिक जंगलों का विस्तृत क्षेत्र बागान
लगाने अथवा व्यावसायिक कृषि करने के लिए भी साफ किया गया। जूट, रबर,
नील, तम्बाकू इत्यादि व्यवसायिक फसलों खूब लगायी गई। ताकि इन वस्तुओं की
इंग्लैंड में जो माँग बढ़ रही थी उसे पूरा किया जा सके। औपनिवेशिक सरकार
(ब्रिटिश सरकार) ने भारत में विशाल वन क्षेत्रों को अपने कब्जों में ले लिया तथा
उनमें लगाए गये बागानों के व्यवसायिक उत्पाद ब्रिटेन निर्यात कर दिए गए।

(ङ) चाय/कॉफी के बागान― सस्ती कीमत पर्वतीय ढलानों के भू-भाग
एवं क्षेत्र (या खेत) एवं कॉफी के पौधे लगाने वाले (काश्कातरों) को दिये गये
तथा उन्होंने इन क्षेत्रों या जंगलों को साफ करके चाय या कॉफी की पौधे लगाई।

(च) आदिवासी एवं किसान― आदिवासियों एवं अन्य काश्तकारों एवं
वनों पर निर्भरकर्ताओं (उनके प्रयोगकर्ताओं) ने भी वनों के विनाश में अपनी
भूमिका निभायी थी। वे जब कभी अपने निजी प्रयोग के लिए या बाजार में बिक्री
हेतु अथवा अपने पशुओं आदि के उपयोग के लिए आवपश्यकता महसूस करते,
जंगलों एवं उनके उत्पदों तथा पर्यावरण का सन्तुलन बनाने वाले पदार्थों या जीवों
को खत्म कर देते थे। आदिवासियों एवं वनों के अन्य उपयोगकर्ताओं को वनों
सम्बन्धी अधिनियम या कानूनों ने बुरी तरह प्रभावित किया था। यूरोपीय उपनिवेशवाद
का एक सबसे प्रमुख उल्लेखनीय प्रभाव स्थानांतरी कृषि के रूप में प्रयोग में लायी
जाती है। इस कृषि में वनों का एक जंगल जला दिया जाता है और कुछ वर्षों तक
राख के ढेरों वाली जमीन पर बदल-बदल कर खेती की जाती है फिर उस जमीन
को 12 से 18 वर्षों के लिए वनों को पुनः उगने के लिए छोड़ दी जाती है।

4. औपनिवेशिक काल (1757-1947) में कृषि विस्तार के मुख्य
कौन-कौन से कारण थे?
उत्तर―1600 तक भारत के कुल क्षेत्र के 1/6 भाग में ही कृषि कार्य होता था
जो बढ़ते-बढ़ते 1947 तक 12 भाग तक पहुँच गया। इस कृषि क्षेत्र के बढ़ने
के लिये अनेक कारण उत्तरदायी थे जिनमें मुख्य निम्नाकित है―
           (क) बहुत से औपनिवेशिक देशों को अपने कारखानों के लिये कच्चा
माल चाहिए होता था इसलिए उन्होंने अपने अधीन                        किसानों
को कृषि-कार्य बढ़ाने की दिशा में बड़ा प्रोत्साहन दिया। इस प्रकार देखते ही देखते
बहुत-सी ऊसर और वनीय भूमियाँ कृषि के अधीन लाई गई। किसानों को पटसन,
गन्ना, गेहूँ और कपास की खेती करने को कहा गया क्योंकि इंग्लैंड के कारखानों
को ऐसे ही कच्चे माल की आवश्यकता थी।

             (ख) इंग्लैंड के साथ-साथ अन्य यूरोपीय देशों की भी जनसंख्या बड़ी
तेजी से बढ़ रही थी इसलिए उनके लिये भी एक बड़ी मात्रा में खाद्य और ऐश्वर्य
की सामग्री की आवश्यकता थी जो भारत जैसे बस्तियों से ही पूरी हो सकती थीं
फिर क्या था इन चीजों की पूर्ति के लिये कृषि के अधीन भूमि निरन्तर बढ़ती चली
गई।

               (ग) यूरोपीय देशों में चाय, कहवा और रबड़ आदि की बहुत मांग थी
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इन चीजों की पैदावार को भरत में एक बड़े पैमाने पर
शुरू कर दिया। ऐसी खेती को बागान खेती कहा जाता हैं इस प्रकार की खेती
में एक ही वस्तु की खेती एक लम्बे-चौड़े क्षेत्र में की जाती है फिर क्या था यूरोपीय
विशेषकर अंग्रेजी बागान-मालिकों ने भूमि के बड़े-बड़े भाग साफ कर वहाँ अपनी
बागान खेती का कार्य शुरू कर दिया। ऐसे में कृषि अधीन भूमि का काफी विस्तार
हो गया।

               (घ) बहुत से साम्राज्यवादी देश, 19वीं शताब्दी में यह मानते थे कि वनों
के अधीन भूमि कोई लाभकारी नहीं क्योंकि इससे सरकार को कोई भूमि कर प्राप्त
नहीं होता। इस धारणा से प्रेरित होकर उन्होंने वनों को धड़ाधड़ कटवाना शुरू कर
दिया और इन नई भूमियों पर खेती करवाना शुरू कर दिया। इससे सरकार को
न केवल भूमिकर ही प्राप्त हुआ वरन् बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य सामग्री
भी प्राप्त हुई।

5. वनों के अधीन क्षेत्र बढ़ने की क्या आवश्यकता है? कारण बताएँ?
उत्तर― वनों के अधीन क्षेत्र बढ़ाने की आवश्यकता― भारत में वनों की अधीन
क्षेत्र काफी कम है जितन कि वैज्ञानिक माँग के अनुसार होना चाहिए। यह कुल
भूमि-क्षेत्र 19.3% है जबकि यह कुल भूमि-क्षेत्र का एक तिहाई या 33.3% होना
चाहिए। हमें हर ढंग से इस क्षेत्र को बढ़ावा चाहिए, जिसके मुख्य कारण निम्नांकित
हैं―

                  (क) पारिस्थितिक-तंत्र को बनाए रखने के लिए― हवा का प्रदूषण
मानव-जीवन के लिए बड़ा हानिकारक है। इस हानि से बचने में वन हमारी बड़ी
सहायता करते हैं। वे पारिस्थितिक-संतुलन को बनाये रखते हैं।

(ख) वन-जीवन को प्राकृतिक निवास स्थान प्रदान करना― वन
अनेक प्रकार से वनीय जीव-जन्तुओं को प्राकृतिक निवास स्थान उपलब्ध कराते
हैं और इस प्रकार उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखते हैं।

   (ग) वातावरण के तापमान को बढ़ने से रोकना― वातावरण के
तापमान को आवश्यकता से अधिक बढ़ने से रोकने में वन बड़े उपयोगी सिद्ध होते
हैं। अन्यथा तापमान के बढ़ने से पहाड़ों की सभी बर्फ पिघल जायेगी और
परिणामस्वरूप समुद्रों का पानी इतना बढ़ जायेगा कि समुद्र-तट के साथ लगने वाले
निचले इलाके पानी में डूब जायेंगे।

6. वनों के छः लाभों (लकड़ी के अलावा) को लिखें।
उत्तर― (क) वनों ने लाखों-करोड़ों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए
हैं।

                 (ख) वनों से मिट्टी को उत्पादन शक्ति एवं उत्पादन ऊर्जा प्राप्त होती
है जो फसलों तथा जैव-प्राणियों के लिए उपयोगी होती है। ये मृदा का कटाव कम
करने में भी सहायक हैं।

             (ग) जंगली जीव संरक्षण एवं वन उद्योग साथ-साथ चलते हैं।

             (घ) वनों से हमें अनेक तरह के पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, जड़ी-बूटियाँ,
पेड़-पौधे, फल-फूल-पत्तियाँ आदि मिलती हैं।

(ङ) वनों से हमें कई तरह के नट, तेजपत्ता, औषधियों में काम आने
वाले पौधे, जड़ी-बूटियाँ भी मिलती हैं।

(च) वनों में हम योग क्रियाएँ, आध्यात्मिक क्रियाएँ, तपस्या, ध्यान आदि
लगा सकते हैं वनों में शान्त वातावरण, शुद्ध वायु आदि मिलते हैं।

7. वन संरक्षण के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर― वन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा हैं। ये देश के विकास में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं। अत: वन-संरक्षण के लिये निम्नांकित उपाय अपनाकर, वन
समस्या का हल किया जा सकता है―
(क) वनों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।

(ख) अति चराई पर रोक लगाई जाए।

(ग) वनों से वृक्ष काटने पर उनके स्थान पर वृक्षारोपण करना
आवश्यक है।

(घ) वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए, क्षेत्रों का निर्धारण करना चाहिए।

(ङ) वन क्षेत्रों को संरक्षित करने की नितांत आवश्यकता है।

(च) लकड़ी के ईंधन का उपयोग कम-से-कम हो, उसके लिए पूरक
साधनों का विकास किया जाए।

(छ) वनों को हानिकारक कीड़े, मकोड़ों, बीमारियों, आग आदि से
सुरक्षित रखा जाए।

(ज) वनों की उपयोगिता और उसकी महत्ता की जानकारी के लिए
जनचेतना व जनजागरण पैदा किया जाए।

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