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    Jharkhand Board Class 8  Hindi  Notes | पथ की पहचान  

   JAC Board Solution For Class 8TH Hindi Chapter 4


कविता का सारांश : 'पध को पहचान' शीर्षक कविता हरिवंश राय
'बच्चन' द्वारा लिखी गई है। इस कविता में कवि ने जीवन पथ के राही को
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सर्चत होकर सही पथ पर चलने की
सलाह दी है। जीवन पथ नाना प्रकार की विघ्न बाधाओं से भरा पड़ा है। कहीं
नदी, कहीं जंगल, कहीं भयानक जीव, कहीं दुर्घटना, कहीं, हर्ष, शोक, विषाद
है―इस पथ में। हम सभी जीवनपथियों को इन बाधाओं को पार करने में
काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कवि की सलाह है कि हमें इनसे
विचलित न होकर सतत आगे बढ़ते रहना चाहिए।
कवि परिचय : 'पथ की पहचान' शीर्षक कविता डॉ० हरिवंश राय
बच्चन द्वारा लिखित है। बच्चन जी का जन्म 27 नवम्बर, 1907 ई० में उत्तर
प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। इनका देहावसान 18 जनवरी, 2003 में
हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1938 ई० में अंग्रेजी में एम०ए०
किया। इसके पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही 1952 ई० तक अंग्रेजी
के प्रवक्ता पद पर अपनी सेवाएं प्रदान की। इसके बाद इन्होंने कैम्ब्रीज
विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया। वापस लौटने पर भारतीय विदेश मंत्रालय
में हिन्दी विशेषज्ञ के पद पर कार्य किया। ये राज्यसभा के मनोनीत सदस्य
भी रहे। बच्चन जी हिन्दी के लोकप्रिय कवि थे।
          इन्हें 1968 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1976 ई० में
पद्म-भूषण पुरस्कार मिला। इनकी प्रमुख रचनाओं में-मधुशाला, मधुबाला,
मधुकलश, निशा, निमंत्रण, एकांत संगीत, सतगिनी, मिलनयामिनी, दो चट्टानें,
आकुल अतर आदि प्रमुख हैं।

                               अभ्यास प्रश्न

                               □ पाठ से:

1. 'पथ की पहचान' कविता में कवि ने पथ पर चलने के पहले क्या
करने को कहा है?
उत्तर―'पंथ की पहचान' शीर्षक कविता में कवि ने पथ पर चलने के
पूर्व पथ की पहचान करने की बात कही है। जीवन में सफलता पाने के लिए
हमें सचेत होकर अपना मार्ग चयन करना चाहिए। जीवन पथ विभिन्न प्रकार
की बाधाओं से युक्त, भरा पड़ा है। इनसे विचलित नहीं होना चाहिए। इस पथ
के बारे में न तो कहीं लिखा गया है, न कही सुना गया है। सिर्फ अपने अनुभव
और ज्ञान के बल पर ही हम जीवन पथ पर सही रूप से चल सकते हैं।

2. पाठ के अनुसार अनगिनत राही इस पथ पर क्या छोड़ गए हैं?
उत्तर― पाठ में कवि का कहना है कि जीवन पथ पर अनगिनत मुसाफिर
गुजरे हैं। इनकी न तो कहानियाँ हैं. न गाथाएँ ही सुनने को मिलती हैं। किन्तु
इस पथ पर पूर्व के सभी मुसाफिरों के बारे में कुछ अता-पता नहीं है, किन्तु
कुछ बिरले मुसाफिर इस पथ पर अपने पद चिन्हों को छोड़ गए हैं। यह निशानी
मूक है फिर भी होशियार राही इसका अर्थ पहचान कर अपने रास्ते का
अनुमान कर लेते हैं।

3. पथ की पहचान किस प्रकार की जा सकती है?
उत्तर―जीवन पथ की पहचान अपने विवेक से की जाती है। महान लोग
जिस रास्ते से गुजरे हैं वही सही रास्ता है। अत: जिस रास्ते पर हमारे समाज
के पूर्व निर्माता चले हैं उसी राह का अवलंबन करना श्रेयस्कर है। इस पथ
की पहचान 'महाजनों येन गतः स पंथा' युक्ति के आधार पर की जानी चाहिए।
अर्थात् पूर्व के बड़े लोगों का अनुसरण करना ही इस जीवन पथ की सही
पहचान है।

4. यात्रा को सरल बनाने के लिए कवि ने क्या सुझाव दिया है ?
उत्तर―यात्रा को सफल बनाने के लिए कवि ने सुझाव दिया है कि
अच्छा या बुरा यह सोचने में वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। संभव-असंभव
की फिक्र नहीं करनी चाहिए। सिर्फ कर्म करने से ही यह यात्रा सफल होगी।
सभी लोगों को जीवन पथ में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अत:
परेशानियों से मुँह न मोड़कर उसके विरूद्ध प्रयास करना चाहिए।

5. कविता के आधार पर बताइए कि यात्रा में कौन-सी चीजें
अनिश्चित है?
उत्तर―कविता में कवि ने यात्रा की अनिश्चितताओं पर विस्तार से चर्चा
किया है। जैसे- यह यात्रा कब खतम होगी। कहाँ जंगल एवं काँटे
(विपत्तियों) मिलेंगे, कहाँ आराम एवं आसानी मिलेगी। कौन अचानक साथ
छोड़ देंगे, कौन अचानक से मिल जाएगा। ऐसी परिस्थितियों में हमें यात्रा
रोकना नहीं चाहिए बल्कि सभी को समान भाव से स्वीकार कर जीवन पथ
पर सदैव अग्रसारित रहना चाहिए।

6. कवि ने स्वर्ण पर मुग्ध होने से मना क्यों किया है ?
उत्तर―कवि का मानना है कि स्वप्न देखना अच्छी बात है। बिना स्वप्न
देखें, बिना कल्पना किए व्यक्ति किसी भी उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा।
स्वप्न सभी देखते हैं। अपनी-अपनी उम्र और समय में सबको स्पप्न देखना
चाहिए। परन्तु स्वप्न उन्हीं के सफल होते हैं जो कठोर मेहनत दृढ़-निश्चय
से करता है। अत: सिर्फ स्वप्न देखकर मुग्ध नहीं रहना चाहिए। स्वप्नों को
पूरा करने के लिए सतत् प्रयास भी करना चाहिए। अन्यथा स्वप्न स्वप्न ही
रह जाएँगे।

7. कवि ने पाँव पृथ्वी पर टिकाए रखने की बात क्यों की है ?
उत्तर―कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि उद्देश्य (स्वप्न) कितना
भी बड़ा हो व्यक्ति को अपना आधार नहीं भूलना चाहिए। ऐसा न हो कि
आँखों में तो स्वर्ग का स्वप्न पाल लें और हवा में उड़ने लगे। ऐसे स्वप्न द्रष्टा
जब गिरते हैं तो उन्हें संभालने वाला कोई नहीं होता है। अत: उद्देश्य कितना
भी बड़ा क्यों न हो उसके लिए प्रयास जमीनी स्तर पर करना जरूरी है। तभी
हमें सफलता मिल पाएगी।

                         □ पाठ से आगे :

1. विद्यार्थी अपना लक्ष्य अक्सर विद्यार्थी जीवन में ही निर्धारित कर
लेते हैं, आपने अपने जीवन का क्या लक्ष्य निर्धारित किया है ?
उत्तर― हमने अपने जीवन का लक्ष्य शिक्षाविद्य के रूप में प्रतिष्ठित होने
का रखा है। एक शिक्षक ही समाज को ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित कर
स्वर्णिम देश की रचना कर सकता है। शिक्षक बनकर हम बच्चों में नैतिकता
के गुणों का संचार करेंगे। देश भक्ति की भावना को प्रेरित करेंगे ताकि देश
प्रगति पथ पर अग्रसारित हो।

2. यदि कोई अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित कर कार्य नहीं करता
तो उसे किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। लिखिए।
उत्तर―बिना लक्ष्य का जीवन दिशा विहीन हो जाता है। अगर हम लक्ष्य
निर्धारित कर परिश्रम नहीं करते हैं तो हमें सफलता नहीं मिलेगी। हमारा जीवन
उद्देश्यविहीन होकर रह जाएगा। असफल व्यक्ति को जीवन में सदा झंझावातों
का सामना करना पड़ता है। वह समाज में, परिवार में अपनी पहचान असफल
के रूप में दर्ज करा लेता है। इस स्थिति में उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता
है। सब उसे नीची दृष्टि से देखने लगते हैं।

                             □ अनुमान और कल्पना :

1. क्या सिर्फ स्वप्न देखने से ही सफलता मिल सकती है ? इस
संबंध में अपने विचार लिखें।
उत्तर―सिर्फ स्वप्न देखने से सफलता नहीं मिलती है। स्वप्न देखना शेख
चिल्लियों का काम है। उद्देश्यवान व्यक्ति स्वप्न देखता तो है पर उस सपने
को पूरा करने के लिए दिन-रात एड़ी-चोटी जोर लगा देता है ताकि सफलता
उसके चरण चूमे। सिर्फ स्वप्न देखना एवं कार्य न करने से असफलता ही
हासिल होगी। अतः प्रभाव पूर्ण स्वप्न एवं श्रमशील लगन से हम सफल हो
सकते हैं।

                                             ★★★

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