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   Jharkhand Board Class 8  Hindi  Notes | क्या निराश हुआ जाए  

    JAC Board Solution For Class 8TH Hindi Chapter 9


पाठ का सारांश : 'क्या निराश हुआ जाए' शीर्षक पाठ हजारी प्रसाद
द्विवेदी लिखित निबंध है। इसमें लेखक ने जीवन में घटित घटनाओं के माध्यम
से यह संदेश दिया है कि यदि निराशाजनक परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हों जाएँ
तो भी हमें निराश नहीं होना चाहिए।
      पाठ में कई उदाहरण दिए गए हैं जिसमें प्रमुख रूप से एक टिकट बाबू
का पैसा वापस करने का उदाहरण प्रस्तुत है। कंडेक्टर द्वारा नयी बस लाना
एवं दूध की व्यवस्था बच्चे के लिए करना दूसरा ज्वलंत उदाहरण है। जबकि
लोग ड्राइवर के साथ अभद्रता करने पर उतारू हो गए।
         अत: निराश नहीं होना चाहिए। हमें अपने सद्विवेक और अच्छाई पर
भरोसा कर इन परिस्थितियों को बदलने का यथाशक्ति प्रयास करना चाहिए।
        लेखक परिचय: 'क्या निराश हुआ जाए' हजारी प्रसाद द्विवेदी रचित
ज्ञानवर्धक निबंध है। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म 1907 ई० में उत्ता
प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। इन्होंने संस्कृत विद्यालय, काशी से शास्त्री
तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। हिरी
साहित्य के प्रख्यात इतिहासकार, आलोचक और साहित्य चिंतकों के रूप में
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी प्रख्यात है। इन्होंने अपनी सरल और प्रांजल भाषा में
हिन्दी गद्य को एक नई ऊँचाई दी।
     साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं पद्मभूषण पुरस्कारों से इन्हें नवाजा गया।
इनकी प्रमुख रचनाओं में–निबंध–अशोक के फूल, विचार और वितर्क,
कल्पलता, आलोक पर्व। उपन्यास– बाणभट्ट की आत्मकथा, चारू चंद्रलेख,
पुनर्नवा, अनामदास का पोथा। इतिहास– हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी
साहित्य का आदिकाल। आलोचना–कबीर, सूर-साहित्य आदि प्रमुख स्थान
रखती हैं।

                                अभ्यास प्रश्न

                                □ पाठ से:

1. लेखक ऐसा क्यों कहता है कि हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा
जा रहा है?
उत्तर―आज के परिवेश में हर आदमी अपना उल्लू सीधा करना चाहता
है। अतः वह अपने सामने वाले को मूर्ख बनाता है इस्तेमाल करना चाहता है।
इसलिए लेखक कहता है कि हर व्यक्ति आज संदेह की दृष्टि से देखा जा
रहा है।

2. लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है,
फिर भी वह निराश नहीं हैं। आपके विचार से इसका क्या कारण हो
सकता है?
उत्तर― लेखक ने स्वीकार किया है कि उसने भी धोखा खाया है। किन्तु
ऐसा कम बार ही हुआ है। अधिक बार लोगों ने उसे अकारण ही मदद भी
किया है। मेरे विचार से वह व्यक्ति समय का मारा होगा। अपनी आवश्यकताओं
की पूर्ति नहीं होने पर ही उसने किसी के साथ ऐसा बर्ताव किया होगा।

3. जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने
लगी है?
उत्तर―कुछ दिनों से ऐसा माहौल बन गया है कि ईमानदारी से मेहनत
करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और
झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। आज ईमानदारी को
मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों
न के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की
आस्था डगमगाने लगी है।

4. किन बातों से पता चलता है कि धर्म एवं आध्यामिकता के मूल्य
दय गए हैं?
उत्तर―हमारे देश में सदा कानून को धर्म के रूप में देखा जाता है। आज
एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं
दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो धर्म
भीरू हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते हैं। इन्ही
बातों से पता चलता है कि धर्म एवं आध्यात्मिकता के मूल्य दब गए हैं।

5. किसी एक घटना का वर्णन कीजिए जिससे लेखक को यह पता
चलता है कि दुनियाँ से सच्चाई और ईमानदारी लुप्त नहीं हुई है।
उत्तर―एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से लेखक ने
दस के बजाए सौ का नोट दे दिया। वह जल्दीबाजी में था। अतः गाड़ी के
डिब्बे में आकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में टिकट या बोगी में चेहरा
पहचानता हुआ उसके पास पहुँच गया और विनम्रता के साथ नव्ये रुपये
लेखक को लौटा दिया। उसने अपनी गलती भी स्वीकार कर ली। उसके
चेहरे पर विचित्र संतोष था। उससे पता चलता है कि दुनियाँ से सच्चाई और
ईमानदारी लुप्त नहीं हुई है।

6. कविवर रविन्द्र नाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में ईश्वर से
क्या प्रार्थना की है?
उत्तर― कविवर रविन्द्र नाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से
प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना
पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दे कि मैं तुम्हारे ऊपर
संदेह न करूँ।

                               □ पाठ से आगे

1.आपकी समझ से किसी के दोषों का पर्दाफाश करना कब जरूरी
हो जाता है?
उत्तर―दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती
है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया
जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्त्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में
रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और
भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी होती है जिन्हें उजागर करने से
लोक-चित में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जागती है। तय दोषों का पर्दाफाश
करना जरूरी हो जाता है।

2. मीडिया में किसी व्यक्ति के भ्रष्ट आचरण या व्यवस्था में दोष
से संबंधित समाचार अक्सर प्रकाशित-प्रसारित होते हैं। क्या ऐसा करना
उचित है ? कारण सहित अपने विचार लिखें।
उत्तर―ऐसा करना तय उचित है जब व्यक्ति भ्रष्ट है। ऐसे व्यक्ति का
पर्दाफाश करना भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना कहलाता है। किन्तु व्यक्ति भ्रष्ट
नहीं है और समाचार बना दिया जाए तो ये प्रजातंत्र की हत्या के समान है।

3. लेखक ने लेख का शीर्षक-'क्या निराश हुआ जाए' क्यों रखा
होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं ?
उत्तर―लेखक के इस शीर्षक द्वारा निबंध की सार्थकता सिद्ध होती है।
विविध उदाहरण भी सही साबित करते हैं कि निराश होना जरूरी नहीं है। यह
परिस्थितिविशेष के कारण घटती है।
            इससे बेहतर शीर्षक होता― आशा ही जीवन है।

4. आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उनपर चलना
बहुत कठिन है। क्या आप इस यात से सहमत हैं, तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर―आदर्श की बात करना आसान है पर चलना कठिन है। आजकल
नेता समानता की बात करते हैं। जैसे ही चुनाव आता है समानता भूल कर
जातिगत समीकरण में लिप्त हो जाते हैं। तब उनका एक मात्र उद्देश्य होता
है ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीतकर सत्ता सुख प्राप्त करना। अतः आदर्श की
बात और काम दोनों आसान नहीं हैं।

5. आप किस प्रकार कह सकते हैं कि अब भी हमारे भीतर सेवा,
ईमानदारी और सच्चाई बनी हुई है ?
उत्तर― हम कभी सफर करते हैं तो साथ बैठे मुसाफिरों के साथ भाईचारा
पूर्वक यात्रा करते हैं। उनके साथ विचार ही नहीं खान-पान भी आदान-प्रदान करते
हैं। अतः यह सेवा, ईमानदारी एवं सच्चाई की भावना को प्रदर्शित करता है।

6. क्या आपने कभी किसी की मदद की है ? आपने उसकी मदद
किस प्रकार की और मदद करने के बाद आपको कैसा महसूस हुआ ?
उत्तर―हमने कईयों को मदद की है। हमने अपने सहपाठी को अपनी
पुस्तकें पढ़ने को दी। उसका परीक्षा शुल्क भी हमने दिया। उसे जो खुशी हुई
वो तो हुई ही मुझे संतोष मिला कि मैं किसी के काम आया। इससे मुझे अत्यधिक
प्रसन्नता महसूस हुई।

                                              ★★★

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