JAC Board Solutions : Jharkhand Board TextBook Solutions for Class 12th, 11th, 10th, 9th, 8th, 7th, 6th

themoneytizer

 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | मानवीय करुणा की दिव्य चमक ― सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  Solutions Chapter 13


                दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

गद्यांश 1. फादर को जहरवाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगो में
दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस
जहर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे ? प्रभु की आस्था ही
जिसका अस्तित्व था। वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी
पर क्यों दे? एक लंबी, पादरी के सफेद चोगे से की आकृति सामने है-गोरा रंग,
सफेद झाँई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें-बाँहें खोल गले लगाने को आतुर । इतनी
ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपनी हर एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता
था। मैं पैंतीस साल से इसका साक्षी था। तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और
तब भी जब वह दिल्ली आते थे। आज उन बाँहों का दबाव मैं अपनी छाती पर
महसूस करता हूँ।                     [JAC 2009 (A); 2011 (A); 2016 (A)]
प्रश्न- (क) जहरबाद किस रोग को कहते हैं?             2
(ख) ज़हरबाद किस रोग को कहा जाता है?              1
(ग) 'आस्था' का अर्थ लिखिए।                                 1
उत्तर―(क) फादर के व्यक्तित्व की असीम ममता मुझे प्रभावित करती है।
वे सदा सभी को गले लगाने के लिए उत्सुक रहते थे। वे जिससे भी मिलते थे,
असीम ममता से, खुले दिल से मिलते थे। उनका सुंदर, लंबा, सौम्य शरीर और
सुशांत चेहरा भी प्रभावित करता है।

          (ख) जहरबाद गैंग्रीन नामक रोग को कहते हैं। इसमें शरीर में जहरीला
फोड़ा हो जाता है। इस रोग में भयंकर दर्द होता है।

(ग) आस्था का अर्थ-विश्वास, निष्ठा ।

गद्यांश 2. फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है
उनको देख करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना
कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे 'परिमल' के वे दिन याद आते हैं जब हम सब
एक पारिवारिक रिश्ते में बंधे जैसे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। हमारे
हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते,
हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव
और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर
देते । मुझे अपना बच्चा और फादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद
आता है और नीली आँखों की चमक में तैरती वात्सल्य भी-जैसे किसी ऊँचाई पर
देवदारु की छाया में खड़े हों।                   [JAC 2012 (C); 2014 (A)]

प्रश्न- (क) फादर को कामल बुल्के याद करना उदास शांत संगीत-सा
क्यों प्रतीत होता है?
(ख) लेखक ने फादर कामल बुल्के के व्यक्तित्व के प्रभाव को दर्शाने के
लिए कौन-कौन से उपमानों का प्रयोग किया है और क्यों ?
(ग) 'परिमल के दिन' से क्या आशय है ?
(घ) 'परिमल' में क्या होता था?
उत्तर―(क) फादर कामल बुल्के का जीवन करुणा, वाल्सल्य और अपनत्व
से भरा था। वे जब भी किसी से मिलते थे तो भरपूर स्नेह से मिलते थे। आज वे
दुनिया में नहीं हैं। अत: उन्हें याद करके एक उदासी और शांति छा जाती है। ठीक
वैसी उदास शांति जैसी कि उदास शांत संगीत को सुनने पर महसूस होती है।

(ख) लेखक ने फादर कामल बुल्के के व्यक्तित्व का चित्रण करने के लिए
निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है―
◆ उदास शांत संगीत सुनने जैसा ।
◆ करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा ।
◆ देवदारु की छाया के सुख जैसा ।
क्योंकि ये तीनों उपमान फादर कामिल बुल्के की असीम आत्मीयता, करुणा,
पवित्रता और दिव्यता को प्रकट करते हैं।

(ग) 'परिमल' एक साहित्यिक संस्था थी जिसमें कुछ उत्साही साहित्यिक
लोग थे। वे समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर की गोष्ठियाँ आयोजित किया करते थे।
उनमें कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि पर खुली बहस और आलोचना की
जाती थी। 'परिमल के दिन' का आशय है-वे दिन जब लेखक इलाहाबाद में रहते
हुए परिमल की गोष्ठियों में भाग लिया करता था।

(घ) परिमल में साहित्यिक चर्चाएँ हुआ करती थीं। हिन्दी की कविताओं,
कहानियों, उपन्यासों और नाटकों पर खुली बहसें हुआ करती थीं। विभिन्न
साहित्यक रचनाओं पर गंभीर बहसें तथा बेबाक राय दी जाती थी।

गद्यांश 3. मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी
मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम
आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।)
इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार
फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर सबसे ऊंचाई पर, मानवीय
करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो
उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी।
मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।        [JAC 2009 (S); 2010 (C)]

प्रश्न- (क) फादर कामिल बुल्के ने सबका मन जीत लिया था-सिद्ध
कीजिए।
(ख) किसे सबसे अधिक छायादार, फल-फूल भरा कहा गया है और क्यों ?
(ग) फादर बुल्के को सबसे ऊंचा और सबका अपना क्यों कहा गया है?
(घ) मानवीय करुणा की दिव्य चमक लहलहाने वाला किसे कहा गया है
और क्यों?
उत्तर―(क) फादर कामिल बुल्के ने अपने सभी परिचितों का मन मोह लिया
था। उनके सभी साथी-परिचित उनसे गहरा प्रेम करते थे। यही कारण है कि उनकी
मृत्यु पर बहुत लोग रोए।

(ख) फादर कामिल बुल्के को सबसे अधिक छायादार और फल-फूल-भरा
कहा गया है। उन्होंने अपने सभी परिचितों को स्नेह, करुणा, वात्सल्य और सांत्वना
दी थी, इसलिए उन्हें छायादार पेड़ के समान कहा गया है। उन्हें फल-फूल भरा
इसलिए कहा गया है क्योंकि वे स्वयं बहुत अच्छे साहित्यकार, विद्यार्थी और
कोशकार, विद्वान थे। उन्होंने हिन्दी साहित्य को बहुत कुछ दिया।

(ग) फादर को सबसे ऊंचा इसलिए कहा गया है क्योंकि वे औरों से महान
थे। वे सबको अपनी छाया और करुणा प्रदान किया करते थे। फादर सबसे अलग
इसलिए थे क्योंकि वे ईसाई पादरी अर्थात् संन्यासी होने के कारण अपने सब संसा
साथियों से अलग थे। वे संन्यासी के रूप में भी अन्य संन्यासियों से अलग थे।
उनका मन प्रेम के रिश्ते बनाना और निभाना जानता था। वे सबसे अपने इसलिए
थे क्योंकि वे सबको अपनत्व देते थे। बदले में लोग उनसे प्रेम करते थे।

(घ) फादर कामिल बुल्के को मानवी करुणा की दिव्य चमक लहलहाने वाला
कहा गया है।
        क्योंकि फादर के व्यक्तित्व में मानव के दुख को समझने और उसे सांत्वना
देने की दिव्य शक्ति थी। यह शक्ति उनके चेहरे पर भी विराजती थी । उनका सारा
व्यवहार इसी मानवीय करुणा के कारण गरिमाशाली था।

                       पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी।
                                                [JAC 2017(A): 2019 (AS)]
उत्तर―फादर परमिल की गोष्ठी में सबसे बड़े माने जाते थे। वे सबके साथ
पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि वे सबके परों
में उत्सवा और संस्कारों पर पुरोहित की भाँति उपस्थिति रहते थे। हर व्यक्ति उनसे
स्नेह और सहारा प्राप्त करता था । वात्सल्य तो उनकी नीली आँखों में तैरता रहता था।
इस कारण सबको उनकी उपस्थिति देवदार की छाया के समान प्रतीत होती थी।

प्रश्न 2. फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस
आधार पर ऐसा कहा गया है?                      [JAC 2011 (A)]
उत्तर―फादर कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे। उन्होंने
भारत में रहकर स्वयं को पूरी तरह भारतीय बना लिया। जब उनसे पूछा गया कि
क्या आपको अपने देश की याद आती है तो उन्होंने छूटते ही उत्तर दिया-मेरा देश
तो अब भारत है।
        फादर भारतीय मिट्टी में रच-बस गए। उन्होंने यहाँ रहकर राम-कथा के
उद्भव और विकास पर शोध-कार्य किया। उन्होंने हिन्दी सीखी ही नहीं, बल्कि
अंग्रेजी-हिन्दी का सबसे अधिक प्रामाणिक कोश तैयार किया। वे यहाँ के लोगों
के उत्सवों और संस्कारों पर अभिन्न सदस्य के रूप में उपस्थित रहते थे। वे सचमुच
भारतीय संस्कारों में खो चुके थे।

प्रश्न 3. पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के
का हिन्दी प्रेम प्रकट होता है?                              [JAC 2015 (A)]
उत्तर―फादर कामिल बुल्के के हिन्दी-प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि
उन्होंने अधिक प्रमाणिक अंग्रेजी-हिन्दी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल और
ब्लू बर्ड नामक नाटक का हिन्दी में अनुवाद किया । इससे पहले उन्होंने इलाहाबाद
से हिन्दी में एम.ए. किया। तत्पश्चात् उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से 'रामकथा :
उत्पत्ति और विकास' विषय पर शोध-प्रबंध लिखा। उसके बाद वे सेंट जेवियर्स
कॉलेज राँची में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। वे 'परिमल' नामक संस्था के साथ
जुड़े रहे। वे जहाँ-तहाँ हिन्दी के प्रति प्रेम प्रकट करते थे। उन्होंने हिन्दी को
राष्ट्रभाषा बनवाने के लिए खूब प्रयल किया।

प्रश्न 4. इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती
है उसे अपने शब्दों में लिखिए।            [JAC Sample Paper 2009]
अथवा, फादर कामिल बुल्के के व्यक्तित्व को अपने शब्दों में लिखें।
                                                       [JAC 2012 (A): 2017 (A)]
उत्तर―फादर कामिल बुल्के एक आत्मीय संन्यासी थे। वे ईसाई पादरी थे।
इसलिए हमेशा एक सफेद चोगा धारण करते थे। उनका रंग गोरा था। चेहरे पर
सफेद झलक देती हुई भूरी दादी थी। आँखें नीली थीं। बाँहें हमेशा गले लगाने को
आतुर दीखती थीं। उनके मन में अपने प्रियजनों आर परिचितों के प्रति असीम स्नेह
था। वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहाय और करुणा देने में समर्थ थे।

प्रश्न 5. लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक
क्यों कहा है?                                             [JAC 2015 (A)]
उत्तर―लेखक ने फादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक
कहा है। फादर के मन में सब परिचितों के प्रति सद्भावना और ममता थी । वे सबके
प्रति वात्सल्य भाव रखते थे। वे तरल-हृदय थे। वे कभी किसी से कुछ चाहते नहीं
थे, बल्कि देते ही देते थे। वे हर दुख में साथी होते थे और सुख में बड़े-बुजुर्ग की
भाँति वात्सल्य देते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुंह में पहला अन्न भी डाला और
उसकी मृत्यु पर सांत्वना भी दी । वास्तव में उनका हृदय सदा दूसरों के स्नेह में पिघला
रहता था। उस तरलता की चमक उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती थी।

प्रश्न 6. फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी
छवि प्रस्तुत की है, कैसे?                                  [JAC 2013 (A)]
उत्तर―परंपरागत रूप से ईसाई पादरी संसार से अलग जीवन जीते हैं। वे
सामान्य संसारी लोगों से अलग वैराग्य की नीरस जिंदगी जीते हैं। वे ईसाई धर्माचार
में ही अपना समय व्यतीत करते हैं। वे प्रायः अन्य धर्मानुयायियों के साथ मधुर
संबंध बनाने में रुचि नहीं लेते।
      फादर बुल्के परम्परागत पादरियों से भिन्न थे। वे संन्यासी होते हुए भी अपने
परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे। वे उनसे मिलने के लिए सदा आतुर रहते
थे तथा सबको गले लगाकर मिलते थे। वे संसारी लोगों के बीच रहकर उनसे
निर्लिप्त रहते थे। वे धर्माचार की परवाह किए बिना अन्य धर्म वालों के
उत्सवों-संस्कारों में भी घर के बड़े बुजुर्ग की भाँति शामिल होते थे। वे कभी किसी
को अपने से दूर तथा अलग नहीं प्रतीत होने देते थे। लोग उन्हें पादरी नहीं अपितु
अपना आत्मीय संरक्षक मानते थे।

प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए―
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलना है।
(ख) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर―(क) फादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर उनके प्रियजन, परिचित और
साहित्यक मित्र इतनी अधिक संख्या में रोए कि उनको गिनना कठिन है। उनके बारे
में लिख व्यर्थ में खर्च करना है। आशय यह है कि उनके दुख में रोने
वालों की संख्या बहुत अधिक थी।
      (ख) हम फादर कामिल बुल्के को याद करते हैं तो उनका करुणापूर्ण और
शांत व्यक्तित्व सामने आ जाता है। उनके न रहने से मन में उदासी घिरने लगती
है। ऐसा लगता है मानो कोई शांत उदास संगीत बज रहा हो।

प्रश्न 8. आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया
होगा ?                                      [JAC 2009 (A): 2011 (A)]
उत्तर―फादर के मन में भारत के संतों, ऋषियों और आध्यात्मिक पुरुषों का
आकर्षण रहा होगा। हो सकता है, वे स्वमी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य
धर्माचार्यों से प्रभावित रहे हों। एक वैरागी ने वैराग्य की धरती में ही जीना चाहा हो।

प्रश्न 9. 'बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्सचैपल ।'-इस पंक्ति में फादर
बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं ?
आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर―इस पंक्ति में फादर कामिल बुल्के का स्वाभाविक देश प्रेम व्यक्त हुआ
है। जन्मभूमि से गहरा लगाव होने के कारण उन्हें वह बहुत सुन्दर प्रतीत होता है।
       मैं भी अपनी जन्मभूमि भारत का पुत्र हूँ। यह धरती मेरी माँ के समान है।
मुझे इसका सब कुछ प्रिय लगता है। मुझे यहाँ का अन्न-जल, धर्म-संस्कृति-सब
प्रिय है। मैं इसके उत्थान में अपना जीवन लगाना चाहता हूँ। मैं संकल्प करता हूँ
कि मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे जन्मभूमि का अपमान हो ।

प्रश्न 10. फादर के परिवार का परिचय दीजिए।
उत्तर―फादर कामिल बुल्के मूल रूप से येल्जियम के निवासी थे। उनके
परिवार में उनके माता-पिता, दो भाई और एक बहन भी थी। उन्होंने वेल्जियम से
बी.एस-सी. अंतिम वर्ष तक पढ़ाई की। तत्पश्चात् वे पादरी होकर भारत आ गए।
लगभग 26 वर्ष की वय में वहाँ से आए। कुल 47 वर्ष यहाँ रहकर 73 वर्ष
की पूर्णायु में दिवंगत हो गए। उनके पिता व्यवसायी थे। एक भाई बेल्जियम में ही
पादरी बन गया था। दूसरा काम करता था। फादर को अपनी माँ से बहुत लगाव
था।

प्रश्न 11. फादर बुल्के भारत से अपने लगाव के बारे में क्या कहते हैं ?
उत्तर―फादर बुल्के भारत से स्वाभाविक लगाव रखते थे। जब उनके मन में
संन्यासी बनने का विचार उठा तो उन्होंने उसे प्रभु की इच्छा माना । इसी प्रकार जब
उनसे पूछा गया कि वे भारत ही क्यों आना चाहते थे, तो उन्होंने बताया कि बस
मन में यही था। ऐसा लगता है कि उनके मन में भारत के प्रति स्वाभाविक लगाव
था। इसे चाहें तो पूर्वजन्मों का संस्कार कह सकते हैं। उन्होंने भारत से प्रेम करके
अपने उस लगाव को प्रकट भी कर दिया।

प्रश्न 12. फादर बुल्के की मृत्यु किस प्रकार हुई ? लेखक उनकी मृत्यु से
संतुष्ट क्यों नहीं था?
अथवा, फादर कामिल बुल्के के देहावसान के बारे में आप क्या जनते
हैं?                                                             [JAC 2014 (A)]
उत्तर―फादर की मृत्यु गैंग्रीन नामक रोग से हुई। इस रोग में शरीर के अंदर
एक जहरीला फोड़ा हो जाता है, जो बहुत यातना देता है। लेखक ने फादर के शांत
अमृतमय जीवन को देखा था। उन्होंने जीवन-भर लोगों को दिया ही दिया था। लोगों
को स्नेह, वात्सल्य और करुणा का दान दिया था। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु बड़ी शांत
होनी चाहिए। इसलिए लेखक ने उनकी यातनामय मृत्यु पर असंतोष प्रकट किया।

प्रश्न 13. फादर कामिल बुके ने हिन्दी के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर―फादर कामिल बुल्के ने हिन्दी के विकास में अनेक प्रकार से योगदान
दिया। सबसे पहले, उन्होंने हिन्दी साहित्य के ज्ञान में वृद्धि की। उन्होंने राम-कथा
के आरंभ और विकास पर शोध-ग्रंथ लिखा । उन्होंने हिन्दी में बाइबिल का अनुवाद
करके भारतवासियों को ईसाई धर्म पढ़ने का अवसर दिया। उन्होंने एक नाटक का
भी हिन्दी में अनुवाद किया। अंग्रेजी-हिन्दी का सबसे प्रमाणिक कोश भी उन्होंने
तैयार किया। वे जीवन-भर हिन्दी पढ़ाते रहे। वे राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने । इससे भी बढ़कर उन्होंने सभी मंचों से हिन्दी को
राष्ट्रभाषा बनाने की जोरदार आवाज उठाई।

प्रश्न 14. 'परिमल' के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर―'परिमल' एक साहित्यिक संस्था है। इसकी शुरुआत इलाहाबाद से
हुई। आरंभ में इलाहाबाद के साहित्यिक मित्र इसके सदस्य थे। वे आपस में हिन्दी
कविता, कहानी, उपन्यास नाटक आदि पर साहित्यिक गोष्ठियाँ किया करते थे।
धीरे-धीरे ये गोष्ठियाँ अखिल भारतीय स्तर की होती चली गईं। संस्था भी आसपास
के क्षेत्रों में फैलने लगी। बाद में मुंबई, जौनपुर, मथुरा, पटना तथा कटनी में भी 'परिमल'
की स्थापना हुई। इलाहाबाद में लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ, रघुवंश, फादर
कामिल बुल्के और अन्य बड़े साहित्यकार इसमें भाग लिया करते थे। डॉ. बुल्के ने
'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' के कुछ अध्याय परिमल में पढ़े थे।

प्रश्न 15. फादर कामिल बुल्के का जीवन किसलिए, अनुकरणीय माना
जा सकता है?
उत्तर―फादर कामिल बुल्के का जीवन अनुकरणीय था । वे सच्चे इनसान थे।
उनमें निर्दोष, निर्विकार आत्मा थी। वे बड़े करुणापूर्ण, स्नेही, सहयोगी और आत्मीय
थे। वे अपने संपर्क में आने वाले को जल्दी अपना बना लेते थे। उनमें अपने-पराए
का छोटा मनोभाव नहीं था। वे ऊँचे छायादार पेड़ थे। उनके शब्दों से शाति झरती
थी। वे सबका दिल जीतना जानते थे।

प्रश्न 16. क्या फादर कामिल बुल्के को भारत का रल कह सकते हैं?
उत्तर―फादर कामिल बुल्के निश्चित रूप से रन थे। वे प्रतिभाशाली थे,
समर्पित थे, करुणापूर्ण थे, गरिमापूर्ण थे। अब प्रश्न उठता है कि वे भारत रल थे
या नहीं। निश्चित रूप से वे भारत के रल थे। उन्होंने स्वयं को भारत का ही माना।
उनका वचन है-'अब तो मेरा देश भारत है।' वे भारत आने के बाद भारत जिए।
उसके विकास के लिए तिल-तिल जले। उन्होंने भारत की संस्कृति का अध्ययन
किया। यहाँ की भाषा को समृद्ध किया। वे सचमुच भारत के रल थे।

प्रश्न 17. फादर कामिल बुल्के का जीवन किसलिए अनुकरणीय माना जा
सकता है?
अथवा, फादर कामिल बुल्के का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर―फादर कामिल बुल्के एक सच्चे इंसान थे। उनकी आत्मा निर्दोष और
निर्विकार थी। वे बड़े करुणामय, स्नेही, सहयोगी और आत्मीय जीव थे। उनके
जीवन में किसी प्रकार का अहं भाव नहीं था। वे सभी के लिए एक छायादार
वृक्ष के समान थे। वे सभी का दिल जीतना जानते थे। इन कारणों से उनके
जीवन को अनुकरणीय माना जा सकता है।

प्रश्न 18. इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि
उभरती है, उसे अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर―फादर कामिल बुल्के एक पादरी संन्यासी थे। वे हमेशा एक दुधिया
सफेद चोंगा पहनते थे। उनका रंग गोरा था और चेहरे पर सफेद-भूरी दाढ़ी थी।
उनकी आँखें नीली थीं उनका हृदय स्नेह-सहयोग से परिपूर्ण था। अपने परिचितों
और प्रिय जनों के प्रति उनके मन में प्रेम का सागर उमड़ता था। उनके मन में सभी
के प्रति कल्याण की भावना भरी थी।

प्रश्न 19. फादर बुल्के के व्यक्तित्व को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर―फादर कामिल बुल्के का सुन्दर, लम्बा भव्य शरीर और सुशील चेहरा
उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता था। वे एक सच्चे इंसान थे। उनकी आत्मा
निर्दोष और निर्विकार थी। वे बड़े करुणामय, ममताशील, स्नेही, सहयोगी और
आत्मीय व्यक्ति थे। उनके जीवन में किसी प्रकार का अहं भाव नहीं था। वे सभी
के लिए एक छायादार वृक्ष के समान थे।

प्रश्न 20. फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी
छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर―ईसाई पादरी अपने परम्परागत रूप से अलग की जिन्दगी व्यतीत करते
हैं। दूसरी ओर फादर बुल्के पादरी होकर भी परंपरागत छवि से अलग हटकर एक
नये किस्म की जिन्दगी व्यतीत करते थे। वे और सभी पादरियों से भिन्न थे।
   संन्यासी होने पर भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे। वे सभी
से मिलना-जुलना पसन्द करते थे। वे सभी को गले लगाकर मिलते थे। सांसारिक
माया-मोह में लिप्त लोगों के साथ रहकर भी निर्लिप्त रहते थे। वे केवल अपने धर्म
के लोगों का ही आदर नहीं, सभी धर्मों का आदर करते थे। वे सर्व-धर्म-समन्वय
की नीति पर चलते थे। लोग उन्हें पादरी नहीं, अपना संरक्षक मानते थे।

प्रश्न 21. आपके विचार से फादर बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया
होगा?
उत्तर―मेरे विचार से फादर कामिल बुल्के स्वयं वीतरागी महान चिन्तक,
विचारक एवं मानवीय करुणा के पोषक व्यक्ति थे। उनके मन में सभी के प्रति
सद्भाव एवं समभाव की भावना भरी थी। ऐसे व्यक्ति के लिए अपना देश और
पराया देश अपना अर्थ खो देता है। वे मानवता और मानवीय करुणा की दिव्य
चमक थे। हिन्दी भाषा और राम-कथा ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया। फादर
कामिल बुल्के स्वभाव से ही एक संन्यासी थे। आध्यात्मिक ज्ञान एवं चिन्तन भारत
की मिट्टी में रचा-बसा हुआ रहा है। इन कारणों से फादर बुल्के ने भारत आने
का मन बनाया होगा।

                                                 ■■
और नया पुराने

themoneytizer

inrdeal