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 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | एक कहानी यह भी ― मन्नू भंडारी  Solutions Chapter 14


               दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

गद्यांश 1. पर यह पितृ-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका
गौरव-गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की
कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुंथी हुई या कि
अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया।
प्रश्न- (क) लेखिका अपने पिता के संबंध में क्यों बता रही है?
(ख) लेखिका के पिता में क्या खूबियाँ थी ?
(ग) लेखिका के पिता की खामियों का वर्णन कीजिए?
(घ) लेखिका पर पिता के व्यक्तित्व का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर―(क) लेखिका अपने पिता के संबंध में इसलिए बता रही है कि इससे यह
अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके व्यक्तित्व के किन-किन गुण-अवगुणों की
झलक उसके व्यक्तित्व में भी आ गई है अथवा वह उन से किन-किन रूपों में
प्रभावित हुई है।

(ख) लेखिका के पिता बहुत ही विद्वान व्यक्ति थे। वे सदा पढ़ने-लिखने में
व्यस्त रहते थे। समाज में उन्हें अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। वे
समाज-सुधार तथा देश को स्वतंत्र कराने वाले कांग्रेस के आंदोलनों से भी जुड़े हुए
थे। शिक्षा के प्रसार में वे बहुत रूचि रखते अपने घर में आठ-दस विद्यार्थियों
को रख कर पढ़ाते थे, जिनमें से कई बाद में ऊंचे पदों पर लग गए।

(ग) लेखिका के पिता बहुत क्रोधी तथा अहंवादी व्यक्ति थे। उनकी आदतें
नवाबों जैसी थीं। आर्थिक तंगी के होते हुए भी उनके अहं में किसी प्रकार की कमी
नहीं आई थी। वे अपने परिवार से भी अपनी आर्थिक विवशताओं की चर्चा नहीं
करते थे। इसी आर्थिक स्थिति से छुटकारा न पा सकने पर वे अपनी सारी झुंझलाहट
लेखिका की माँ पर उतारते थे।

(घ) लेखिका को ऐसा प्रतीत होता है कि उसके पिता के व्यक्तित्व ने लेखिका
को हीनभावना से ग्रसित कर दिया था, क्योंकि उसके पिता उसकी उपेक्षा करते थे
और उसकी बड़ी बहन की प्रशंसा करते थे। पिता के शक्की स्वभाव का भी लेखिका
पर प्रभाव है। इसी कारण वह अपनी उचित प्रशंसा को भी सहज रूप से ग्रहण नहीं
कर पाती।

गद्यांश 2. पिता जी के जिस शक्की स्वभाव पर मैं कभी भन्ना-भन्ना जाती
थी, आज एकाएक अपने खडित विश्वासों की व्यथा के नीचे मुझे उनके
शक्की स्वभाव की झलक ही दिखाई देती है-बहुत 'अपनों' के हाथों
विश्वासघात की गहरी व्यथा से उपजा शक । होश संभालने के बाद से ही
जिन पिता जी से किसी-न-किसी बात पर हमेशा मेरी टक्कर ही चलती रही,
वे तो न जाने कितने रूपों में मुझमें हैं-कहीं कुंठाओं के रूप में, कहीं प्रतिक्रिया
के रूप में तो कहीं प्रतिच्छाया के रूप में। केवल बाहरी भिन्नता के आधार
पर अपनी परंपरा और पीढ़ियों को नकराने वालों को क्या सचमुच इस बात
का बिलकुल अहसास नहीं होता कि उनका आसन्न अतीत किस कदर उनके
भीतर जड़ जमाए बैठा रहता है। समय के प्रवाह भले ही हमें दूसरी दिशाओं
में बहाकर ले जाए-स्थितियों का दबाव भले ही हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी
तरह उससे मुक्त तो नहीं ही कर सकता।

प्रश्न- (क) लेखिका ने शक्की स्वभाव पिता से पाया-कैसे?
(ख) लेखिका और पिता के संबंधों पर प्रकाश डालिए।
(ग) लेखिका का पैतृक संघर्ष किस प्रकार उसके जीवन को प्रभावित करता
रहा?
(घ) क्या परंपरा और पुरानी पीढ़ी के प्रभाव को नकारा जा सकता
है-तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर―(क) लेखिका के पिता अपने सभी परिवारजनों पर शक करने लगे
थे। कारण यह था कि उन्हें उन्हीं के अपनों ने धोखा दिया था। लेखिका पिता
के शक्की स्वभाव का विरोध करती थी। परन्तु हुआ उलटा । समय के साथ पिता
का यह अवगुण उसके स्वभाव में भी चला आया ।

(ख) लेखिका के विचार पिता से भिन्न थे। इसलिए वह प्रायः अपने पिता
से टकराती रहती थी। वे संघर्ष आज भी भिन्न-भिन्न रूप धारण करके उसके
स्वभाव में समा गए हैं।

(ग) लेखिका अपने पिता से कई बातों पर टकराती रही। वह उनके शक्की
स्वभाव पर खीजती रही। परन्तु उसने देखा कि पिता का वह शक्की स्वभाव उसके
अपने स्वभाव में भी आ गया। जब उसे अपने 'अपनों' ने गहरी पीड़ा पहुँचाई तो
वह भी शक्की हो गई। इसके अतिरिक्त उनका जिन-जिन बातों के कारण पिता
से संघर्ष रहता था, वे सभी बातें आज भी उसके जीवन में विद्यमान हैं।

(घ) अपनी परंपरा और पुरानी पीढ़ी के प्रभाव को चाहकर भी नहीं नकारा
जा सकता। इनके प्रभाव हमारे चित्त में गहरे पैठ जाते हैं। चाहे हम ऊपरी तौर
पर अपनी परंपराओं का विरोध करते रहें किन्तु वास्तव में वे परम्पराएँ हमारे स्वभाव
में भी ढल चुकी होती हैं। उदाहरणतया, लेखिका ने पिता के शक्की स्वभाव का
विरोध किया किन्तु वही स्वभाव उनके संस्कारों में प्रवेश कर गया।

गद्यांश 3. इन लोगों की छत्र-छाया के हटते ही पहली बार मुझे नए सिरे से
अपने वजूद का एहसास हुआ। पिता जी का ध्यान भी पहली बार मुझ पर केन्द्रित
हुआ। लड़कियों को जिस उम्र में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सुघड़ गृहिणी और
कुशल पाक-शास्त्री बनाने के नुस्खे जुटाए जाते थे, पिता जी का आग्रह रहता था
कि मैं रसोई से दूर ही रहूँ। रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और उनके हिसाब
से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्ठी में झोंकना था। घर में आए दिन
विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थीं, बहस
करना पिता जी का प्रिय शगल था। चाय-पानी या नाश्ता देने जाती तो पिता जी
मुझे भी वहीं बैठने को कहते। वे चाहते थे कि मैं भी वहीं बैतूं सुनें और जानें कि
देश में चारों ओर क्या कुछ हो रहा है।

प्रश्न-लेखिका के व्यक्तित्व में उनकी परिस्थितियों का क्या योगदान है?
उत्तर―लेखिका की परिस्थितियाँ अपने ढंग की थीं। उन्हें अपने परिवार में
बौद्धिकता के संस्कार मिले। उनके पिताजी ने उन्हें जागरूक नारी बनने का पाठ
पढ़ाया। स्वतन्त्रता आन्दोलन संबंधी उनके घर में जो भी विचार-विमर्श होते थे,
उनका सीधा प्रभाव लेखिका के मन पर पड़ा। लेखिका को अपनी घरेलू
परिस्थितियों ने उनके व्यक्तित्व का निर्माण किया और सुसंस्कृत बनाया।

प्रश्न-लेखिका के पिताजी की अभिरुचियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर―लेखिका के पिताजी एक विद्वान व्यक्ति या वे अपने बच्चों को विद्वान
नागरिक और नेता बनाना चाहते थे। अतः वे प्रायः अपने बाल-बच्चों को समाज
और देश की समस्याओं की ओर खींचना चाहते थे।

प्रश्न-पिताजी लेखिका के बारे में क्या चाहते थे?
उत्तर―पिताजी चाहते थे कि लेखिका केवल रसोई घर तक ही सीमित नहीं
रहे। वह देश सेवा भी करे। देश में चल रहे आंदोलनों में भाग ले सके।

प्रश्न-किस उम्र में लड़कियों को रसोई घर और घर-गृहस्थी की कुशलता
सिखायी जाती थी?
उत्तर―प्राय: लड़कियों को स्कूल शिक्षा समाप्त हो जाने के बाद रसोईघर और
घर-गृहस्थी की कुशलता सिखायी जाती है।

प्रश्न-लेखिका के पिताजी रसोई घर को भटियारखाना क्यों कहते थे?
उन्हें रसोई घर से दूर रखना क्यों चाहते थे?
उत्तर―लेखिका के पिताजी एक प्रबुद्ध व्यक्ति थे। उनके अनुसार रसोईघर में
रहकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं हो सकता। रसोई घर के काम में लग कर कोई
भी व्यक्ति अपनी बौद्धिक प्रतिभा नष्ट कर देता है। इसी वजह से वे रसोई घर को
भटियारखाना कहते थे।

प्रश्न-लेखिका का मन किसके प्रति आकृष्ट होता था?
उत्तर―लेखिका का मन क्रान्तिकारियों और देशभक्त शहीदों के प्रति अधिक
आकृष्ट होता था। उनकी कहानियाँ सुन-सुनकर उनके मन में काफी उत्सुकता होती
थी।

गद्यांश 4. शीला अग्रवाल ने साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया था बल्कि
घर की चारदीवारी के बीच बैठकर देश की स्थितियों को जानने-समझने का जो
सिलसिला पिता जी ने शुरू किया था. उन्होंने वहाँ से खींचकर उसे भी स्थितियों
को सक्रिय भागीदारी में बदल दिया। सन् 46-47 के दिन.... वे स्थितियाँ, उसमें
वैसे भी घर में बैठे रहना संभव था भला? प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस, भाषण
हर शहर का चरित्र था और पूरे दमखम ओर जोश-खरोश के साथ इन सबसे
जुड़ना हर युवा का उन्माद। मैं भी युवा थी और शीला अग्रवाल की जोशीली बातों
ने रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया था। स्थिति यह हुई कि एक बवंडर
शहर में मचा हुआ था और एक घर में। पिता जी की आजादी की सीमा यहीं तक
थी कि उनकी उपस्थिति में घर में आए लोगों के बीच उठूँ-बैठूँ, जानूँ-समझूँ।

प्रश्न-शीला अग्रवाल कौन थी? उसके योगदान पर प्रकाश डालें।
उत्तर―शीला अग्रवाल लेखिका के कॉलेज में हिन्दी की प्राध्यापिका थी।
उन्होंने लेखिका को पढ़ाने के साथ ही साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने की
प्रेरणा दी।

प्रश्न-लेखिका को प्रभावित करने में उनके पिताजी का क्या योगदान
था?
उत्तर―लेखिका के पिता एक विद्वान के साथ ही साथ स्वतन्त्रता आंदोलन के
समर्थक थे। उन्होंने लेखिका को स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए मानसिक
रूप से तैयार किया। देश की तत्कालीन परिस्थितियों की भी जानकारी उन्हें मिली।

प्रश्न-1946-47 के वातावरण को अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर―सर्वत्र स्वतन्त्रता आंदोलन की हलचल मची थी। 1946-47 ई. में संपूर्ण
भारत जोश-खरोश से आच्छादित था। हर नगर में प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस
और जोशीले भाषण हो रहे थे। देश के नवयुवक पूरे दमखम से आन्दोलन में लगे
थे। युवक और युवतियों का खून लावा बन चुका था।

प्रश्न-पिताजी आजादी के नाम पर लेखिका को कितनी छूट देना चाहते
थे?
उत्तर―पिताजी आजादी के नाम पर एक सीमित छूट देना चाहते थे। वे चाहते
थे कि घर में बैठकर जितना काम हो सके करे। घर में लोगों के साथ ही बैठ
कर विचार-विमर्श करे ओर उन सबों को उत्साहित करे।

प्रश्न-लेखिका ने स्वतन्त्रता आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी की?
उत्तर―लेखिका ने स्वतन्त्रता आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से भागदीदारी की।
लेखिका और उसकी दो सहेलियों के इशारे पर कॉलेज की सभी लड़कियाँ बाहर
निकल पड़ती थीं। प्रभात फेरियाँ जुलूस, हड़तालों और भाषाणबाजी में खुलकर भाग
लेती थी। वह लड़कों के साथ बाजारों में घूमती फिरती थी।

गद्यांश 5. "सारे कॉलिज की लड़कियों पर इतना रौब है तेरा .......सारा
कॉलिज तुम तीन लड़कियों के इशारे पर चल रहा है ? प्रिसिपल बहुत परेशान थी
और बार-बार आग्रह कर रही थी कि मैं तुझे घर बिठा लूँ, क्योंकि वे लोग किसी
तरह डरा-धमकाकर, डाँट-डपटकर लड़कियों को क्लासों में भेजते हैं और अगर
तुम लोग एक इशारा कर दो कि क्लास छोड़कर बाहर आ जाओ तो सारी लड़कियाँ
निकलकर मैदान में जमा होकर नारे लगाने लगती हैं। तुम लोगों के मारे कॉलिज
चलाना मुश्किल हो गया है उन लोगों के लिए।" कहाँ तो जाते समय पिता जी मुँह
दिखाने से घबरा रहे थे और कहाँ बड़े गर्व से कहकर आए कि यह तो पूरे देश
की पुकार है........इस पर कोई कैसे रोक लगा सकता है भला? बेहद गद्गद स्वर
में पिता जी यह सब सुनाते रहे और मैं अवाक् । मुझे न अपनी आँखों पर विश्वास
हो रहा था, न अपने कानों पर । पर यह हकीकत थी।

प्रश्न- (क) लेखिका के पिता अपनी लड़की की किस बात पर गर्वित थे?
(ख) लेखिका कॉलेज को किस प्रकार प्रभावित करती थी?
(ग) कॉलेज की प्रिंसिपल लेखिका से किसलिए परेशान थीं ?
(घ) लेखिका के पिता ने प्रिंसिपल को क्या उत्तर दिया ।
उत्तर―(क) लेखिका के पिता अपनी लड़की के साहस, रौब और नेतृत्व-शक्ति
पर गर्वित थे। उन्हें कॉलेज की प्रिसिपल से पता चला कि कॉलेज की सारी लड़कियाँ
लेखिका तथा उसकी दो सहेलियों को अपना नेता मानती हैं। वे सब उनके इशारे
पर नारे लगाने लगती हैं, हड़ताल करती हैं और कक्षाएँ छोड़कर बाहर आ जाती
है।

(ख) लेखिका और उसकी दो सहेलियों ने कॉलेज का नेतृत्व अपने हाथों में
ले लिया था। वे जब भी चाहती थीं, शेष लड़कियाँ उनके पीछे कक्षाएं छोड़ देती
थी तथा नारे लगाने लगती थीं। इस प्रकार सब लड़कियाँ प्राचार्य के नियंत्रण में
न होकर लेखिका के नियंत्रण में हो गई थीं।

(ग) कॉलेज की प्रिसिपल लेखिका से परेशान थी। कारण यह था कि
लड़कियाँ प्रिसिपल का कहना न मानकर लेखिका का कहना मानती थीं। इसलिए
प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो रहा था। प्रिसिपल लड़कियों को
समझा-बुझाकर कक्षाओं में भेजती थी, किन्तु लेखिका का इशारा मिलते ही वे फिर
से बाहर आकर नारे लगाने लगती थीं। इस कारण प्रिसिपल लेखिका से परेशान
हो गई थी।

(घ) लेखिका के पिता ने कॉलेज जाकर सारी स्थिति समझी । उन्हें जानकर
गर्व हुआ कि उनकी लड़की सब लड़कियों की नेत्री है। उसके कहने पर सब
लड़कियाँ हड़ताल कर देती हैं। इसलिए उन्होंने प्रिंसिपल को कहा-'यह तो पूरे देश
की पुकार है...... इस पर कोई रोक लगा सकता है।'

गद्यांश 6. आज पीछे मुड़कर देखती हूँ तो इतना तो समझ में आता ही है क्या
तो उस समय मेरी उम्र थी और क्या मेरा भाषण रहा होगा। यह तो डॉक्टर साहब
का स्नेह था जो उनके मुँह से प्रशंसा बनकर बह रहा था या यह भी हो सकता
है कि आज से पचास साल पहले अजमेर जैसे शहर में चारों ओर से उमड़ती भीड
के बीच एक लड़की का बिना किसी संकोच और झिझक को यो धुआँधार बोलते
चले जाना ही इसके मूल में हो रहा हो । पर पिता जी । कितनी तरह के अंतर्विरोधों
के बीच जीते थे वे! एक ओर 'विशिष्ट' बनने की प्रबल लालसा तो दूसरी ओर
अपनी सामाजिक छवि के प्रति भी उतनी ही सजगता । पर क्या यह संभव है ? क्या
पिता जी को इस बात का बिलकुल भी अहसास नहीं था कि इन दोनों का तो रास्ता
ही टकराहट का है?                                                        [JAC 2014 (A)]

प्रश्न- (क) यहाँ किस डॉक्टर साहब की चर्चा है? उनकी भूमिका स्पष्ट
कीजिए।
(ख) डॉक्टर साहब ने लेखिका की प्रशंसा क्यों की होगी?
(ग) लेखिका ने स्वतंत्रता आंदोलन में किस प्रकार योगदान किया?
(घ) लेखिका के पिताजी के व्यक्तित्व का अन्तर्विरोध क्या था?
उत्तर―(क) यहाँ अजमेर के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर अंबालाल की चर्चा की
गई है। उन्होंने दो महत्त्वपूर्ण काम किए। पहला उन्होंने लेखिका के धुंआधार
भाषण के लिए उसे बधाई दी। उसकी जमकर प्रशंसा की। इससे लेखिका का
उत्साह बढ़ा। दूसरे, उन्होंने लेखिका के पिता का मन बदला। लेखिका के पिता
अपनी पुत्री को सरेबाजार भाषण, हड़ताल आदि में भाग लेता देखकर शर्मसार थे।
डॉ० अंबालाल ने लेखिका की प्रशंसा करके उनका मान-सम्मान और गर्व बढ़ा
दिया।

(ख) डॉक्टर साहब ने लेखिका का उत्साह, जोश और साहस देखकर उसकी
प्रशंसा की होगी। उन्होंने लेखिका की देशभक्ति देखी होगी। वे उसकी पवित्र
भावनाओं पर मुग्ध हो गए होंगे। लेखिका सोचती है कि शायद डॉ. साहब उमड़ती
भीड़ के बीच एक लड़की को बेझिझक बोलते देखकर प्रभावित हो गए होंगे।

(ग) लेखिका ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
उसने कॉलेज की छात्राओं को राष्ट्रीय आंदोलन में झोंका था। उसने हड़ताल
नारेबाजी, प्रभात फेरी, जलसे, जूलूस आदि में आगे आकर आम विद्यार्थियों को
प्रेरित किया था।

(घ) पिताजी के व्यक्तित्व का अंतर्विरोध यह था कि वे विशिष्ट बनने का
मान-सम्मान भी चाहते थे और सामाजिक छवि पर जरा-सी आँच भी नहीं आने
देना चाहते थे। अर्थात् वे बिना कोई कीमत दिए यह लूटना चाहते थे।

                     पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1.लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप
में प्रभाव पड़ा?                                           [JAC 2013 (A)]
उत्तर―लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा।
पिताजी का प्रभाव―लेखिका के व्यक्तित्व को बनाने बिगाड़ने में उनके पिता
का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने ही लेखिका के मन में हीनता की भावना
पैदा की। उन्होंने ही उसे शक्की बनाया, विद्रोही बनाया। उन्होंने ही लेखिका को
देश और समाज के पति जागरूक बनाया । उसे रसोईघर और सामान्य घर-गृहस्थी
से दूर एक प्रबुद्ध व्यक्तित्व दिया। लेखिका को देश के प्रति जागरूक बनाने में
उनके पिता का ही योगदान है।
शीला अग्रवाल का प्रभाव―लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी
बनाने में उनकी हिन्दी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का योगदान है। शीला अग्रवाल
ने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य-रूप दे दिया।
उन्होंने लेखिका के खून में शोले भड़का दिए । पिता उसे चारदीवारी तक सीमित
रखना चाहते थे, परन्तु शीला अग्रवाल ने उसे जन-जीवन में खुलकर विद्रोह सिखा
दिया।

प्रश्न 2. इस आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना'
कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर―भटियारखाने के दो अर्थ हैं-(1) जहाँ हमेशा भट्टी जलती रहती है,
अर्थात् चूल्हा चढ़ा रहता है। (2) जहाँ बहुत शोर-गुल रहता है। भटियारे का घर।
कमीने और असभ्य लोगों का जमघट । पाठ के संदर्भ में यह शब्द पहले अर्थ में प्रयुक्त
हुआ है। रसोईघर में हमेशा खाना-पकाना चलता रहता है। पिताजी अपने बच्चों को
घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उन्हें जागरूक
नागरिक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसाईघर की उपेक्षा करते हुए भटियारखाना
अर्थात् प्रतिभा को नष्ट करने वाला कह दिया है।

प्रश्न 3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी
आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर? [JAC 2015(A); 2017(A)]
उत्तर―हुआ यूँ कि लेखिका के आंदोलनकारी व्यवहार से तंग आकर उनके
कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को बुलवाया। पिता पहले से ही लेखिका
के विद्रोही रुख से परेशान रहते थे। उन्हें लगा कि जरूर इस लड़की ने कोई
अपमानजनक काम किया होगा। इस कारण उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। इसलिए वे
बड़बड़ाते हुए कॉलेज गए।
        कॉलेज में जाकर उन्हें पता चला कि उनकी लड़की तो सब लड़कियों की
चहेती नेत्री है। सारा कॉलेज उसके इशारों पर चलता है। लड़कियाँ प्रिंसिपल की
बात भी नहीं मानतीं, केवल उसी के संकेत पर चलती है। इसलिए प्रिंसिपल के लिए
कॉलेज चलाना कठिन हो गया है। यह सुनकर पिता का सीना गर्व से फूल उठा।
वे गद्गद् हो गए। उन्होंने प्राचार्य को उत्तर दिया-'ये आंदोलन तो वक्त की पुकार
हैं.... इन्हें कैसे रोका जा सकता है।' लेखिका पिता के मुख से ऐसी प्रशंसा सुनकर
विश्वास न कर पाई। उसे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। उसे तो यही आशा
थी कि उसके पिता उसे डाँटेंगे, धमकाएँगे तथा उसका घर से बाहर निकलना बंद
कर देंगे।

प्रश्न 4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों
में लिखिए।                                      [JAC 2010 (C); 2016 (A]
उत्तर―लेखिका और उसके पिता के विचार आपस में टकराते थे। पिता
लेखिका को देश-समाज के प्रति जागरूक बनाना चाहते थे किन्तु उसे घर तक ही
सीमित रखना चाहते थे। वे उसके मन में विद्रोह और जागरण के स्वर भरना चाहते
थे। किन्तु उसे सक्रिय नहीं होने देना चाहते थे। लेखिका चाहती थी कि वह अपनी
भावनाओं को प्रकट भी करे। वह देश की स्वतंत्रता में सक्रिय होकर भाग ले । यहीं
आकर दोनों की टक्कर होती थी। विवाह के मामले में भी दोनों विचार टकराए।
पिता नहीं चाहते थे कि लेखिका अपनी मनमर्जी से राजेंद्र यादव से शादी करे । परन्तु
लेखिका ने उनकी परवाह नहीं की।

प्रश्न 5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य
का चित्रण करते हुए उसमें मनू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर―सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतंत्रता आंदोलन का समय था ।
इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पूरे यौवन पर था। हर नगर में हड़ताल
हो रही थीं। प्रभात-फेरियाँ हो रही थीं। जलसे हो रहे थे। जुलूस निकाले जा रहे
थे। युवक-युवतियाँ सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगा रहे थे । सारी मर्यादाएँ गुट
रही थीं। घर के बंधन, स्कूल-कॉलेज के नियम-सबकी धज्जियां उड़ रही थीं।
लड़कियाँ भी लड़कों के बीच खुलकर सामने आ रही थीं।
    ऐसे वातावरण में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपूर्व उत्साह दिखाया। उसने पिता
की इच्छा के विरुद्ध सड़कों पर घूम-घूमकर नारेबाजी की, भाषण दिए, हड़ताले
की, जलसे-जूलूस किए। उसके इशारे पर पूरा कॉलेज कक्षाएँ छोड़कर आंदोलन
में साथ हो लेता था। हम कह सकते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थीं।

प्रश्न 6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा तथा
पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किन्तु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर
की चारदीवारी तक सीमित था । क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ
ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए ।
उत्तर―आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। महानगरों में बच्चे गुल्ली-डंडा, पतंग
उड़ाना आदि भूल गए हैं। छोटे नगरों में, जहाँ ये खेल अभी प्रचलित हैं, अब
मोहल्लेदारी उतनी नहीं रही। अब लोग अपने-अपने घरों में सिकुड़ने लगे हैं। कोई
किसी दूसरे के बच्चे को अपने घर में घुसाने को राजी नहीं है। दिल भी उतने बड़े
नहीं है। पहले संयुक्त परिवार थे । इसलिए परिवारों को अधिक बच्चों की आदत थी।
उसी तरह का रहन-सहन भी था। खुले आँगन या खुली छतें थीं। आस-पड़ोस का
भाव जीवित था। अब मोहल्लेदारी नहीं रही। खेलने-कूदने के शौक भी टी.वी. देखने
या कंप्यूटर चलाने में बदल गए हैं। परिणामस्वरूप पड़ोस को झेलने का तात्पर्य है
अपने ड्राइंगरूम में पड़ोसी बच्चे को झेलना। उसे अपने सोफे पर बैठाना तथा
कभी-कभी होने वाली हानि को सहना । यह संभव नहीं रहा है।
    दूसरे, अब टी०वी० संस्कृति ने नर-नारी संबंधों को उभाड़कर इतना भड़का
दिया है कि हर माता-पिता अपनी लड़कियों के बारे में सजग है। सब बच्चे
अकाल-परिपक्व हो गए हैं। इस कारण माता-पिता लड़की को तो अकेला बिल्कुल
नहीं छोड़ते । अतः कुल मिलाकर लड़कियों की स्वतंत्रता कम हुई है।

प्रश्न 7. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परन्तु
महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः 'पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते ह । इस
बारे में अपने विचार लिखिए।                    [JAC 2009 (A): 2018 (A)]
उत्तर―यह बात बिल्कुल सत्य है। आस-पड़ोस मनुष्य की वास्तविक शक्ति
होती है। किसी मुसीबत में पड़ोसी ही काम आते हैं। परन्तु दुर्भाग्य से अब पड़ोस
में आना-जाना नहीं रहा। नर-नारी दोनों कमाऊ होने लगे हैं। इस कारण उन्हें इतना
समय नहीं मिलता कि अपने निजी काम समेट सकें। छुट्टी का दिन भी घर-बार
सँभालने में बीत जाता है। इस कारण पड़ोस कल्चर प्रायः समाप्त हो गई है। बड़े
तो बड़े, बच्चे भी पैदा होते ही कैरियर की दौड़ में इतने अंधे होने लगे हैं कि उन्हें
अपनी छोड़कर अन्य किसी को खबर नहीं है। यह शहरी जीवन का सबसे बड़ा हादसा
है। इस कारण मनुष्य हृदय की उदारता, विशालता, हँसी-ठिठोली, ठहाके और उल्लास
भूल गया है। वह स्वयं में बिलकुल अकेला, उदास और बेचारा हो गया है।

प्रश्न 8. लेखिका के पिता की कार्य-शैली कैसी थी?
उत्तर―लेखिका के पिता विद्वान लेखक थे। वे सदा पुस्तकों और कागजों से
घिरे रहते थे। इनकी कार्यशैली व्यवस्थित नहीं थी। लेखिका के शब्दों में-"वे
निहायत अव्यवस्थित ढंग से फैली-बिखरी पुस्तकों-पत्रिकाओं और अखबारों के
बीच या तो कुछ पढ़ते रहते थे या फिर 'डिक्टेशन' देते रहते थे।"

प्रश्न 9. लेखिका की माँ लेखिका के लिए आदर्श क्यों न बन सकी ?
उत्तर―लेखिका की माँ बहुत ही धैर्यशाली और सहनशील थीं। वे अपने पति
के हर आदेश को मौन भाव से पूरा करती थीं। वे बच्चों की उचित अनुचित इच्छा
को पूरा करना भी अपना धर्म मानती थीं। उन्होंने सबको जीवन-भर दिया ही दिया ।
इसलिए घर के सभी सदस्य उनसे गहरा लगाव रखते थे। परन्तु उनके व्यक्तित्व
की दो कमजोरियां भी थीं। पहली, वे अनपढ़ थीं। दूसरी, वे निरीह, बेचारी और
व्यक्तित्व विहिन थीं । संघर्ष, विरोध, स्वेच्छा आदि से उनका दूर का भी संबंध नहीं
था।

प्रश्न 10. लेखिका और अन्य सदस्य माँ के प्रति कैसा भाव रखते थे?
उत्तर―लेखिका तथा परिवार के अन्य सभी सदस्य माँ को बहुत निरीह मानते
थे। वे उनसे अपनी हर उचित-अनुचित इच्छा पूरी करवाते थे। माँ अनपढ़ और
निरीह थीं। वे सबकी सब इच्छाएं पूरी कर देती थीं। इसलिए सब लोग उनके साथ
गहरा लगाव और सहानुभूति रखते थे।

प्रश्न 11. इंदौर रहते हुए लेखिका के पिता का मान-साम्मान कैसा था ?
उत्तर―इंदौर रहते हुए लेखिका के पिता बहुत सम्मानित व्यक्ति थे । वहाँ उनकी
बड़ी प्रतिष्ठा थी। वे कांग्रेस दल के साथ-साथ समाज-सुधार के अन्य कार्यों में
भी आगे रहते थे। वे केवल उपदेश ही नहीं देते थे, अपितु आठ-दस विद्यार्थियों
को अपने घर रखकर पढ़ाते भी थे। वे बहुत दरियादिल और संवेदनशील व्यक्ति थे।

प्रश्न 12. लेखिका के व्यक्तित्व पर अपने पिता का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर―लेखिका के जीवन को उसके पिता ने गहराई से प्रभावित किया । उन्होंने
लेखिका को न केवल हीनता-ग्रंथि दी अपितु सोचने-समझने की शक्ति भी दी। पिता
ने कभी नहीं चाहा कि लेखिका हीनता अनुभव करे। परन्तु वे लेखिका से दो साल
बड़ी सुशीला को उसके गोरे रंग, स्वस्थ शरीर और हँसमुख स्वभाव के कारण बहुत
प्यार करते थे। इस कारण लेखिका के मन में हीनता का भाव अपने-आप आ
गया।
पिता ने लेखिका को रसाईघर से बचा लिया। उन्होंने उसकी रुचि समाज-जीवन
की समस्याओं की ओर लगाई। उसे बड़ी-बड़ी चर्चाओं में शामिल किया । इससे
वह जागरूक नागरिक बन गई।

प्रश्न 13. लेखिका के मन में उपजी हीनता-ग्रंथि का क्या दुष्परिणाम हुआ ?
उत्तर―लेखिका के मन में उपजी हीनता-पथि ने लेखिका को सदा-सदा के
लिए दबा दिया। वह स्वयं को हीन समझने लगी। परिणाम यह हुआ कि यदि उसे
कोई उपलब्धि प्राप्त होती थी, तो वह उसे तुक्का मानती थी। उसे अपनी योग्यता
का प्रतिफल नहीं मानती थी।

प्रश्न 14. लेखिका के विश्वास एकाएक खंडित क्यों होने लगे?
उत्तर―लेखिका के विश्वास एकाएक खडित होने लगे। इसके दो कारण थे-
(i) उसके मन में पिता का शक्की स्वभाव जाग उठा।
(ii) उसके साथ उसके 'अपनों' ने गहरा विश्वासघात किया ।

प्रश्न 15. परंपराओं के बारे में लेखिका की क्या राय है?
उत्तर―लेखिका की राय है कि हमारी परंपराएँ, हमारा भूतकाल हमारा पीछा
नहीं छोड़ता। वह हमारे व्यक्तित्व में समा जाता है। हाँ, उसकी अभिव्यक्ति
भिन्न-भिन्न प्रकार से होती है। कभी हम अपने अतीत के विरुद्ध प्रतिक्रिया प्रकट
करते हैं, कभी अतीत के अनुरूप ढल जाते हैं तो कभी अतीत की कुंठाओं से भर
जाते हैं। परन्तु उससे पिंड नहीं छुड़ा पाते ।

प्रश्न 16. लेखिका के अनुसार पड़ोस-कल्चर न होने के क्या दुष्परिणाम
हो रहे हैं?
उत्तर―लेखिका के अनुसार, पड़ोस-कल्चर हमें अधिक सुरक्षा, अपनत्व और
विस्तार देती है। पहले पड़ोस में रहते हुए हम पूरे मोहल्ले को अपना मानते थे।
अनेक घरों में अधिकार से जाते थे। उन्हें अपने जीवन का अंग मानते थे। परन्तु
जब से महानगरीय फ्लैटों के कारण पड़ोस-कल्चर समाप्त हुई है, हम अधिक
अकेले, असुरक्षित, संकुचित और अनुदार हो गए हैं।

प्रश्न 17.लेखिका की कहानियों के अधिकतर पात्र अपने मोहल्ले से क्यों
हैं ? इससे किस तथ्य का बोध होता है?
उत्तर―लेखिका की कहानियों के अधिकतर पात्र उसके अपने मोहल्ले के लोग
हैं। कारण यह है कि ये सारे उसके अपने जाने-पहचाने थे। इन्होंने लेखिका को
किसी-न-किसी रूप से प्रभावित किया था। उसका इनसे न केवल नजदीक का
परिचय था, बल्कि गहरा लगाव भी था। इससे इस तथ्य का बोध होता है कि हमारी
पड़ोस-कल्चर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होती है।

प्रश्न 18. लेखिका का व्यक्तित्व घर में दबा क्यों रहा?
उत्तर―जब तक लेखिका के बड़े भाई-बहन घर में रहे, उसका व्यक्तित्व दबा
रहा। वह यों भी दुबली-पतली, काली और मरियल लड़की थी। बड़ी बहन गोरी,
स्वस्थ और हँसमुख थी। इसलिए उनके रहते उसके व्यक्तित्व का विकास न हो
सका।

प्रश्न 19. लेखिका के व्यक्तित्व का सही विकास कब हुआ?
उत्तर―जब लेखिका की बड़ी बहन की शादी हो गई तथा बड़े भाई पढ़ाई के
लिए कोलकाता चले गए तो उसके व्यक्तित्व का विकास होना शुरू हुआ। तब पिता
ने उस पर ध्यान देना शुरू किया । उसे भी अपने अलग अस्तित्व का बोध हुआ।
पिता ने उसे जन-चेतना से जोड़ा। बड़े-बड़े लोगों की मीटिंग में बैठाना शुरू
किया। इससे उसका बौद्धिक विकास हुआ। फिर जब शीला अग्रवाल ने उसे प्रेरणा
दी तो वह गतिशील क्रांतिकारी बन गई।

प्रश्न 20. लेखिका को देश-चिंतक बनाने में उसके पिता की क्या भूमिका थी।
उत्तर―लेखिका को देश संबंधी मामलों में जागरूक बनाने के लिए उसके पिता
को श्रेय मिलना चाहिए। उन्होंने ही उसे रसोईघर में झोंकने की बजाय बड़ी-बड़ी
विचार-गोष्ठियों में उठना-बैठना सिखाया।

प्रश्न 21. अपने घर होने वाली बैठकों में लेखिका के लिए सबसे बड़ा
आकर्षण क्या था?
उत्तर―लेखिका के घर में बैठकें होती थीं, वे अधिकतर 1942 के राजनीतिक
आंदोलन के बारे में होती थीं। उनमें विभिन्न राजनीतिक दलों की रीतियों, नीतियों या
मतभेदों की चर्चा होती थी। लेखिका को ये बातें कम ही समझ में आती थीं। उसकी
सबसे अधिक रुचि क्रांतिकारियों और देशभक्त शहीदों के बलिदान में होती थी।

प्रश्न 22. स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में साहित्य-जगत में कौन-कौन
साहित्यकार लोकप्रिय थे?
उत्तर―स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में प्रेमचंद, शरत, नेंद्र, अज्ञेय, यशपाल,
भगवतीचरण वर्मा आदि बहुत लोकप्रिय थे। उन दिनों जैनेंद्र के छोटे-छोटे वाक्यों
वाली कथा-शैली बहुत लोकप्रिय हुई।

प्रश्न 23. उन दिनों साहित्य-जगत में कौन-सी प्रवृत्ति चल रही थी ?
उत्तर―उन दिनों साहित्य-क्षेत्र में पुरानी परंपराएँ टूट रही थीं। पुराने विचार
खंडित हो रहे थे। पुरानी आस्थाओं और विश्वासों पर प्रश्नचिह्न लग रहे थे।
पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक, सही-गलत की पुरानी धारणाएँ बदल रही थीं।

प्रश्न 24. शीला अग्रवाल ने लेखिका को क्या प्रेरणा दी?
उत्तर―शीला अग्रवाल लेखिका की हिन्दी अध्यापिका थीं। उन्होंने लेखिका
को जन-जीवन में संघर्ष करना सिखाया। उन्होंने अपनी जोशीली बातों से लेखिका
के हृदय में जोश, साहस और उत्साह भर दिया। वे लड़कियों की अगुआ बनकर
हड़तालें करने लगीं तथा धुंआधार भाषण देने लगीं।

प्रश्न 25. लेखिका को पिता के साथ संघर्ष क्यों करना पड़ा?
उत्तर―लेखिका के पिता भंवर में थे । वे लड़की को विशिष्ट भी बनाना चाहते
थे और मान-सम्मान के प्रति भी सावधान थे। लड़की ने विशिष्टता का मार्ग पकड़
लिया था। वह क्रांति के मार्ग पर खुलकर चल पड़ी। उसके पिता को यह अच्छा
न लगा कि वह लड़कों के संग सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगाए या भाषण दे।
इस कारण दोनों में संघर्ष हुआ। शादी के मामले में भी लेखिका ने स्वतंत्र मार्ग
पकड़ा। उसने मनमर्जी से राजेंद्र यादव के साथ शादी की।

प्रश्न 26. पिताजी के व्यक्तित्व की कौन-सी दुर्बलता थी। उससे लेखिका
को क्या लाभ मिला?
उत्तर―पिताजी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी दुर्बलता थी उनकी यश-लिप्सा ।
वे समाज में प्रतिष्ठा बनाए रखना चाहते थे। उनकी इस दुर्बलता का लाभ यह हुआ
कि कई बार वह पिता से डॉट खाते-खाते बची। उसने दो बार हड़तालों और
भाषणों में खुलकर हिस्सा लिया। पिता इसे अनुशासनहीनता और अनुचित मानते
थे। परन्तु मित्रों ने लेखिका के साहस की प्रशंसा कर दी। इससे वे फूलकर कुप्पा
हो गए। इस प्रकार लेखिका डाँट से बच गई।

प्रश्न 27. लेखिका के पिता कॉलेज-प्रिंसिपल से मिलकर गर्वित क्यों हुए?
उत्तर―लेखिका के पिता कॉलेज की प्रिसिपल से मिले । उन्हें पता चला कि
प्रिंसिपल लेखिका से बहुत परेशान है। कॉलेज की सारी लड़कियाँ उसी के इशारे
पर चलती हैं। यदि वह संकेत कर दे तो सारी की सारी लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर
नारे लगाने लगती हैं। अपने बेटी का इतना प्रभाव और रौबदाब देखकर वे गर्वित
हो उठे।

प्रश्न 28. पिता के दकियानूसी मित्र ने उन्हें क्या कहकर भड़काया ?
उत्तर―पिता के दकियानूसी मित्र ने उन्हें कहा कि लड़की का उल्टे-सीधे
लड़कों के साथ सड़कों पर नारे लगाना, भाषण देना, हुड़दंग करना ठीक नहीं है।
यह लड़की की मर्यादा और परिवार को इज्जत-आबरू के विरुद्ध है। इसलिए उसे
इतनी स्वतंत्रता नहीं देनी चाहिए।

प्रश्न 29. अपने दकियानूसी मित्र की बातें सुनकर पिता पर क्या प्रतिक्रिया
हुई?
उत्तर―अपने दकियानूसी मित्र की बातें सुनकर पिता क्रोध में आ गए। उन्हें
लगा कि उनका सरेआम अपमान हो रहा है। अतः उन्होंने सोचा कि अब वे मन्नू
को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं देंगे।

प्रश्न 30 डॉ. अंबालाल ने लेखिका की किस प्रकार सहायता की?
उत्तर―डॉ० अंबालाल लेखिका के पिता के गहरे मित्र थे। उन्होंने लेखिका
का भाषण सुना था। वे उससे प्रभावित हुए थे। अत: उन्होंने लेखिका को शाबासी
दी। उसके भाषण की खूब प्रशंसा की। अंबालाला के मुख से प्रशंसा सुनकर
लेखिका के पिता का क्रोध गायब हो गया। वे भी गर्व से फूल उठे । इस प्रकार
लेखिका डॉट खाने से बच गई।

प्रश्न 31. शीला अग्रवाल और लेखिका को कॉलेज से बाहर क्यों निकाल
दिया गया?
उत्तर―शीला अग्रवाल को कॉलेज का अनुशासन बिगाड़ने और लड़कियों को
भड़काने का आरोप में कॉलेज से निकालने का नोटिस थमा दिया गया। बी.ए.
अंतिम वर्ष की लड़कियाँ इस बात का विरोध न करें, इसलिए उनकी नेत्रियों को
कॉलेज से निकाल दिया गया।

प्रश्न 32. प्रिंसिपल ने थर्ड ईयर की कक्षाएँ क्यों बंद कर दी?
उत्तर―प्रिसिपल जानती थी कि थर्ड ईयर में पढ़ने वाली छात्राएँ शीला अग्रवाल
को नोटिस थमाने का विरोध करेंगी। पहले वे कक्षाओं का बहिष्कार करेंगी, फिर
हड़ताल करके सारा कॉलेज ठप्प कर देंगी। अत: उन्होंने कुछ दिनों के लिए थर्ड
ईयर की कक्षा ही बंद कर दी।

प्रश्न 33. प्रिंसपल की कार्यवाही का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर―प्रिंसिपल ने अपनी ओर से आंदोलन दबाने की बहुत कोशिश की।
उसने थर्ड ईयर की कक्षा भी बंद कर दी । लेखिका तथा दो अन्य नेत्रियों का कॉलेज
में आना ही निषिद्ध कर दिया। फिर भी लेखिका तथा अन्य छात्राओं ने कॉलेज
के बाहर रहकर ऐसा आंदोलन छेड़ा कि आखिरकार थर्ड ईयर की कक्षा फिर से
शुरू करनी पड़ी।

प्रश्न 34. थर्ड ईयर की कक्षा खुलने की खुशी किस कारण दबकर रह गई?
उत्तर―अगस्त, 1947 का महीना था। इसी महीने लेखिका तथा उसकी
साथियों ने संघर्ष करके थर्ड ईयर की कक्षा को फिर से खुलवाया था। परन्तु देश
आजाद हो गया। यह वह खुशी इतनी बड़ी थी कि उसके सामने कक्षा खुलने की
खुशी दब कर रह गई।

प्रश्न 35. ऐसे क्या कारण थे जिनकी वजह से लेखिका के मन में हीन
भावना पैदा हो गई थी?
उत्तर―लेखिका की बड़ी बहन सुशीला बहुत स्वस्थ और खूब गोरी थी।
लेखिका काली, मरियल और दुबली थी। उसके पिताजी गोरे रंग पर मुग्ध थे। वे
बातों-बातों में उसकी बहन की प्रशंसा किया करते थे। इस कारण लेखिका के मन
में अपने काले रंग और दुबले शरीर के प्रति हीन-भावना घर कर गई।

प्रश्न 36. 'एक कहानी यह भी' से प्राप्त प्रेरणा/संदेश पर प्रकाश डालें।
उत्तर―इस पाठ से संदेश मिलता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का
अधिकार केवल पुरुषों का नहीं बल्कि महिलाओं का भी है। इससे यह भी संदेश
मिलता है कि आंदोलन के मार्ग में बड़े-बूढ़े भी बाधक बन सकते हैं लेकिन
आंदोलनकारियों को अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। हम अपनी परम्पराओं
और पूर्वजों से नहीं कट सकते हैं। किसी न किसी रूप में वे हमारे व्यक्तित्व को
अवश्य प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 37. लेखिका की अपनी पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों
में लिखिए।
अथवा, लेखिका को अपने पिता से संघर्ष क्यों करना पड़ा?
उत्तर―लेखिका के विचार पिता से भिन्न थे। फलस्वरूप, पिता-पुत्री के बीच
टकराव होते रहता था। वे टकराव भिन्न-भिन रूप धारण करके लेखिका के
स्वभाव में समा गये हैं। लेखिका के पिता लड़की को विशिष्ट भी बनाना चाहत
थे और मान-सम्मान के प्रति भी सावधान थे। लेखिका विशिष्टता का मार्ग
पकड़कर स्वतन्त्रता आंदोलन के क्रम में सड़क पर उतर पड़ी। नारे,जुलूस,हड़ताल.
भाषण आदि उनका दैनिक कार्य-कलाप हो गया।
      दूसरी ओर लेखिका ने अपने पिता से विरोध कर अपनी शादी स्वतन्त्रतापूर्वक
राजेन्द्र यादव से कर ली। इस प्रकार लेखिका को अपने पिता से संघर्ष करना पड़ा।

प्रश्न 38. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप
में प्रभाव पड़ा?
उत्तर―लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्यतः दो व्यक्तियों के प्रभाव पड़े-
लेखिका के व्यक्तित्व को बिगाड़ने और बनाने में उसके पिताजी का प्रमुख
हाध रहा। प्रारंभ में लेखिका के पिता ने लेखिका में हीन भावना का समावेश किया।
उन्होंने उसे शक्की और विद्रोही बनाया। उन्होंने ही लेखिका को देश भक्त बनने
का मौका दिया। उन्होंने ही लेखिका को रसोई घर से दूर रखकर एक प्रबुद्ध नारी
बनने में सहयोग किया।
लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी बनाने में प्राध्यापिका
शीला अग्रवाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। शीला अग्रवाल ने अपने जोशीले
वक्तव्यों से उसके व्यक्तित्व में एक नया जोश पैदा किया। शीला अग्रवाल ने
लेखिका की नस-नस में देशभक्ति का भाव भर दिया। शीला अग्रवाल ने लेखिका
के मन में खुलकर विद्रोह करने का भाव भर दिया।

प्रश्न 39. शीला अग्रवाल ने लेखिका को क्या प्रेरणा दी?
उत्तर―शीला अग्रवाल हिन्दी की प्राध्यापिका थीं। उन्होंने लेखिका को
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का मार्ग बताया। उनके जोशीले भाषणों ने लेखिका
में जोश, साहस और उत्साह भर दिया।

प्रश्न 40. डॉ. अम्बा लाल ने लेखिका की किस प्रकार सहायता की?
उत्तर―डॉ. अम्बा लाल लेखिका के पिता के गहरे मित्र थे। एक बार उन्होंने
लेखिका का भाषण सुना था। इसकी प्रशंसा उन्होंने लेखिका के पिता से की थी।
उन्होंने लेखिका को काफी शाबासी दी। फलस्वरूप, उनके पिता का क्रोध शांत
हो गया। लेखिका पर उन्होंने भी गर्व महसूस करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 41. 'एक बवंडर शहर में मचा हुआ था और एक घरम।'-व्याख्या
कीजिए।
उत्तर―शहर और देहातों में सब जगह स्वतन्त्रता आंदोलन की भयंकर हलचल
थी। सम्पूर्ण देश उबाल पर था। उधर घर में लेखिका की भागीदारी को लेकर
बवंडर मचा हुआ था। पिताजी नहीं चाहते थे कि वह लड़कों के साथ मिलकर इस
आंदोलन में भाग ले।

प्रश्न 42. इस आत्म कथ्य (पाठ) में लेखिका के पिता ने रसोई को
भटियार खाना कहकर क्यों सम्बोधित किया है?
उत्तर―भटियार खाने का अर्थ होता है-जहाँ हमेशा भट्ठी जलती रहती है
अर्थात् चूल्हा जलते रहता है। इसके अतिरिक्त भटियार खाने का अर्थ होता है, जहाँ
असभ्य लोगों का जमघट रहता है। इस पाठ में भटियार खाना 'रसोईघर' के लिए
प्रयुक्त हुआ है। लेखिका के पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे चौके
तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। लेखिका के पिता अपने बाल-बच्चों को रसोई
घर में लगाना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 43. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वतन्त्रता आंदोलन के परिदृश्य
का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू की भूमिका पर प्रकाश डालें।
उत्तर―सर्वत्र स्वतन्त्रता आंदोलन की हलचल मची थी। 1946-47 ई. में संपूर्ण
भारत जोश-खरोश से आच्छादित था। हर नगर में प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस
और जोशीले भाषण हो रहे थे। देश के नवयुवक पूरे दमखम से आंदोलन में लगे
थे। युवक और युवतियों का खून लावा बन चुका था।
        लेखिका ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रत्यक्ष रूप में भागीदारी की। कॉलेज का
वातावरण पूर्णतः स्वतन्त्रता-आंदोलनमय था। कॉलेज की लड़कियों में भी राष्ट्रीयता
की भावना कूट-कूट कर भरी थी। लेखिका और उसकी दो सहेलियों के इशारे
पर कॉलेज की सभी लड़कियाँ बाहर निकल पड़ती थीं। प्रभात फेरियों, जुलूस,
हड़तालों और भाषण बाजी में खुलकर भाग लेती थीं। लड़कियाँ कॉलेज के
अनुशासन से स्वतन्त्र होकर जुलूस निकालती थीं, नारे लगाती थी और लोगों को
आंदोलन के लिए प्रेरित करती थी। इस प्रकार का वातावरण राष्ट्रीय भावना से
ओत-प्रोत था।

प्रश्न 44. लेखिका ने स्वतन्त्रता-आन्दोलन में किस प्रकार योगदान किया?
उत्तर―लेखिका ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में खुल कर भाग लिया। भाषण,
जुलूस, हड़ताल आदि में सक्रिय सहयोग करती थी। वह लोगों को प्रेरित भी करती
थी।

प्रश्न 45. लेखिका के अनुसार पड़ोस कल्चर न होने के क्या दुष्परिणाम
हो रहे हैं?
उत्तर―पड़ोस कल्चर हमें अधिक सुरक्षा और अपनत्व प्रदान करती है। हमारा
जीवन सामाजिक बना रहता है। बचपन में लेखिका सम्पूर्ण मुहल्ले को अपना मानती
थी। लेकिन आज हमारे बीच फ्लैट कल्चर का इतना विस्तार हो रहा है कि हमारा
जीवन एक पिंजड़े में सिमट कर रह गया है। हमें अपने बगल में रहने वालों से
कोई संबंध नहीं रह गया। सुख-दुख में कोई साथी नहीं-पूरा एकाकी जीवन व्यतीत
करना पड़ रहा है।

प्रश्न 46. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परन्तु
महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः पड़ोस कल्चर से वंचित रह जाते हैं। इस
बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर―पास-पड़ोस मनुष्य की वास्तविक शक्ति होती है। किसी मुसीबत में
तत्काल पड़ोसी ही काम आते हैं। पड़ोस कल्चर हमें सुरक्षा और अपनत्व प्रदान
करती है। हमारा जीवन सामाजिक बना रहता है। परन्तु यह दुर्भाग्य की बात है कि
आज नगरों और महानगरों में पड़ोस-संस्कृति खत्म होती जा रही है। अब एक नयी
संस्कृति का जन्म हुआ है, जिसे फ्लैट संस्कृति कहा जा सकता है। लोग अपने फ्लैट
रूपी पिंजरे में बन्द होकर जीने को अभ्यस्त हो गये हैं। बच्चे भी अपने को खुलापन
महसूस नहीं करते हैं। इससे मानवीय एवं सामाजिक संवेदना लुप्त होती जा रही है।

प्रश्न 47. 1946-47 के वातावरण को अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर―सर्वत्र स्वतंत्रता आंदोलन की हचलल मची थी। 1946-47 में संपूर्ण
भारत जोश-खरोश से आच्छादित था। हर नगर में प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस
और जोशीले भाषण हो रहे थे। देश के नवयुवक पूरे दमखम से आन्दोलन में लगे
थे। युवक और युवतियों का खून लावा बन चुका था।

                                                 ■■
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