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    Jharkhand Board Class 9TH Economics Notes | भारत में खाद्य सुरक्षा:  

  JAC Board Solution For Class 9TH (Social Science) Economics Chapter 4


1. खाद्य सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा से अभिप्राय हर समय सब व्यक्तियों को खाद्यान्न उपलब
हों, खाद्यान्न उनकी पहुँच में हो तथा वे खाद्यान्न को खरीदने में समर्थ हों।

2. न्यूनतम समर्थित कीमत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― न्यूनतम समर्थित कीमत यह वह कीमत है जिस पर सरकार भारतीय
खाद्य निगम के माध्यम से उन राज्यों के किसानों से अनाज खरीदती है
जहाँ अधिशेष उत्पादन होता है। प्रतिवर्ष बुआई के मौसम से पहले ही
सरकार न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा करती हैं ऐसा फसलों के
उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किया जाता है।

3. बफर स्टॉक क्या है?
उत्तर― बफर स्टॉक- यह सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज का भंडार है। उदाहरण
के लिए गेहूँ और चावल का अधिशेष उत्पादन भारतीय खाद्य निगम के
माध्यम से सरकार द्वारा भंडारित होता है। भारतीय खाद्य निगम किसी पूर्व
निर्धारित कीमत पर उन राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदती है,
जहाँ अधिशेष उत्पदन होता है।

4. कौन लोग खाद्य सुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर― भूमिहीन लोग (जिनके पास कोई भूमि नहीं है या बहुत ही कम भूमि है).
परम्परागत कारीगर, परम्परागत सेवाएँ, प्रदान करने वाले छोटे-छोटे
स्वनियोजित कार्यकर्ता, भिखारी तथा अनाज व्यक्ति।

5. भारत में कौन-से राज्य अधिक खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त है?
उत्तर― उत्तर प्रदेश (पूर्वी तथा दक्षिणी पूर्वी भाग), बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा,
पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र।

6. निर्गम कीमत पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर― समाज के गरीब वर्गों को, विशेषकर कमी वाले क्षेत्रों में, सहायता के रूप
में बाजार कीमत से कम कीमत पर जो अनाज दिया जाता है, उस कम
कीमत को निर्गम कीमत कहा जाता है।

7. सरकार की कौन-सी एजेन्सी किसानों से आधिक्य गेहूँ तथा चावलों का
क्रय करती है?
उत्तर― भारतीय खाद्य निगम किसानों से अधिक गेहूँ तथा चावल का क्रय करती
है।

8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
उत्तर― सार्वजनिक वितरण प्रणाली वह प्रणाली है जिसके अन्तर्गत भारतीय खाद्य
निगम द्वारा एकत्रित अनाज को उचित मूल्य वाली दुकानों के माध्यम से
समाज के सबसे अधिक निर्धनों में वितरित किया जाता है।

9. राशन कार्ड के तीन प्रकार लिखें।
उत्तर― राशन कार्ड तीन प्रकार के हैं―
(क) अन्त्योदय कार्ड,
(ख) बी० पी० एल० कार्ड (निर्धनता रेखा के नीचे रहने वालों के लिये,
तथा
(ग) ए० पी० एल० कार्ड (अन्य सभी लोगों के लिए)।

10. आर्थिक सहायता क्या है
उत्तर― आर्थिक सहायता उत्पादकों को सरकार द्वारा दिया जाने वाला वह भुगतान
है जो एक वस्तु की बाजार कीमत का पूरक होता है। आर्थिक सहायता
से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर वस्तुएँ मिलती हैं।

11. भारतीय खाद्य निगम क्या करता है?
उत्तर― भारतीय खाद्य निगम किसानों से उनके आधिक्य गेहूँ तथा चावल खरीदता
है, उनका भण्डारण करता है तथा उचित मूल्य की दुकानों पर इनकी
आपूर्ति करता है।

12. मौसमी भूख कब अस्तित्व में आती है?
उत्तर― मौसमी भूख उस समय अस्तित्व में आती है जब एक व्यक्ति को साल
में कुछ महीने ही रोजगार मिल पाता है अर्थात् उसे सारा वर्ष काम नहीं
मिलता।

13. ग्रामीण क्षेत्र में मौसमी भूख क्यों व्यापक (प्रचलित) है?
उत्तर― ग्रामीण क्षेत्र में कृषि क्रियाओं के मौसमी होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र में
मौसमी भूख प्रचलित है।

14. निर्धनता की अधिकता के फलस्वरूप कौन-कौन से तीन मुख्य
कार्यक्रम आरम्भ किये गये?
उत्तर― (क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
(ख) स्वीकृत बाल विकास सेवाएँ प्रणाली तथा
(ग) काम के बदले अनाज

15. लक्षित सार्वजनिक वितरण को कब और किस उद्देश्य से आरम्भ
किया गया था?
उत्तर― लखित सार्वजनिक प्रणाली को 1997 में आरम्भ किया गया था। इसके
उद्देश्य सब क्षेत्रों में निर्धनों को लक्ष्य करना था।

16. खाद्य की उपलब्धता का क्या अर्थ है?
उत्तर― खाद्य की उपलब्धता से अभिप्राय है देश के अन्दर खाद्य का उत्पादन,
खाद्य का आयात तथा सरकारी अनाज के गोदामों में पिछले वर्ष का
स्टॉक।

17. खाद्य की सामर्थ्यता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक शर्ते निम्नांकित हैं–
(क) सभी लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य उपलव्य है।
(ख) स्वीकृत गुण वाले खाद्य को क्रय करने की शक्ति है।
(ग) खाद्य तक पहुँचाने के लिये कोई रुकावट नहीं है।

18. निर्धन रेखा से ऊपर व्यक्ति का कय खाद्य असुरक्षित हो सकता है?
उत्तर― निर्धन रेखा से ऊपर व्यक्ति का उस समय खाद्य असुरक्षित हो सकता है
जब कोई राष्ट्रीय आपदा आ जाये या अकाल पड़ जाये बाढ़ आ जाये या
सारे देश में अकाल पड़ जाये।

19.भूख क्या है?
उत्तर― भूख न केवल निर्धनता का प्रदर्शन करती है अपितु यह निर्धनता का कारण
भी बनती है।

20. ए० ए० एस० का पूरा नाम लिखें।
उत्तर― ए० ए० एस० का पूरा नाम अन्नपूर्णा प्रणाली है।

21. अन्नपूर्णा प्रणाली कब लागू की गई और इस प्रणाली का लक्षित समूह
कौन है?
उत्तर― अन्नपूर्णा प्रणाली 2000 में आरम्भ की गई। इस प्रणाली का लक्षित समूह
दीन वरिष्ठ नागरिक हैं।

22. अन्नपूर्ण प्रणाली का लक्षित समूह क्या है इस प्रणाली के अन्तर्गत
लक्षित समूह को किनता अनाज निःशुल्क दिया जाता है?
उत्तर― अन्नपूर्णा प्रणाली का लक्षित समूह दीन वरिष्ठ नागरिक हैं। इस प्रणाली के
अन्तर्गत 10 किलो अनाज लक्षित समूह को बिना किसी पैसे के दिया जाता
है।

23. टी० पी० डी० एस० का पूरा नाम लिखें। यह प्रणाली कब शुरू की
गई थी?
उत्तर― टी० पी० डी० एस० का पूरा नाम लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली है।
इस प्रणाली को 1997 में शुरू किया गया था।

24. अन्त्योदय योजना कब शुरू की गई थी और इस का लक्षित समूह क्या
है?
उत्तर― अन्तयोदय योजना 2000 में शुरू की गई थी। इसका लक्षित समूह निर्धनों
का निर्धन है।

25. आर० पी० डी० एस० का पूरा नाम लिखें। इस प्रणाली का लक्षित
समूह क्या है?
उत्तर― आर० पी० डी० एस० का पूरा नाम नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली
है। इसका लक्षित समूह दुर्गम आदिवासी पिछड़े सूखा ग्रस्त एवं पर्वतीय
क्षेत्रों में उपभोक्ता हैं।

26. भारतीय खाद्य निगम के पास बफर स्टॉक का स्तर बहुत ऊँचा है। इससे
क्या हानियाँ हैं?
उत्तर― इससे खाद्यान्न के परिवहन का व्यय बढ़ता है तथा अनाज की गुणवत्ता
तथा मात्रा में कमी आती है।

27. उन राज्यों के नाम लिखें जो निम्नतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिए
दबाव डालते हैं।
उत्तर― पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश निम्नतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिये
दबाव डलते हैं।

28. बिहार, उड़ीसा आदि राज्यों में प्रति व्यक्ति प्रति मास औसत उपभोग
कितना है?
उत्तर― बिहार, उड़ीसा आदि राज्य में प्रति व्यक्ति प्रति मास औसत उपभोग 300
ग्राम है।

29. सार्वजनिक उपभोग वितरण के कुछ व्यापारी किस प्रकार कदाचार
करते हैं।
उत्तर― अधिक लाभ कमाने के लिये काले बाजार में अन्न बेचना, राशन की
दुकानों पर घटिया किस्म का अनाज बेचना, अपनी दुकानें नियमित रूप
से न खोलना आदि-आदि।

30. सार्वजनिक वितरण प्रणाली किस प्रकार से भूख तथा अकाल को
फैलने से रोकने में सफल रही है।
उत्तर― अनाज को अधिक क्षेत्रों में कम क्षेत्रों में लोकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली
भूख तथा अकाल को फैलने से रोकने में सफल रही है।

31. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के घटक लिखें।
उत्तर― निम्नतम समर्थन मूल्य, अनाज को इकट्ठा करना तथा राशन की दुकानों
पर वितरण के लिये अनाज भेजना सार्वजनिक वितरण प्रणाली के घटक
हैं।

32. न्यूनतम समर्धित मूल्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर― न्यूनतम समर्थित मूल्य से अभिप्राय उस मूल्य से जिस पर भारतीय खाद्य
निगम किसानों से खाद्यान्न खरीदता है। यह मूल्य सरकार के द्वारा निर्धारित
किया जाता है।

33. भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का आधारभूत उद्देश्य क्या है?
उत्तर― भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का आधारभूत उद्देश्य निर्धनों
को कम कीमत पर अनाज देना और उनकी बढ़ती हुई कीमतों के प्रभाव
को संरक्षण देना है।

34. भारत में कब और कहाँ सबसे अधिक विनाशकारी अकाल पड़ा?
उत्तर― भारत में बंगाल में सन् 1770 में सबसे अधिक विनाशकारी अकाल पड़ा।

35. भारत में जोते जाने वाली भूमि का क्षेत्रफल क्यों कम हो रहा है।
उत्तर― आर्थिक आवासों तथा कारखानों के बनने से भारत में जोते जाने वाली भूमि
का क्षेत्रफल कम हो रहा है।

36. सार्वजनिक वितरण प्रणाली से वस्तुओं के खुले बाजार में रिसाव से
क्या अभिप्राय है?
उत्तर― इसका अभिप्राय कार्डधारियों को सहायतार्थ दरों पर खाद्यान्न बेचने के
स्थान पर ऊँची कीमत पर बाजार में खाद्यान्नों तथा अन्य वस्तुओं का
विक्रय।

37. खाद्य सुरक्षा किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा निम्नांकित कारकों पर निर्भर करती हैं-
(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(ख) शासकीय सतर्कता
(ग) खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई
कार्यवाही।


                                     लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या करें।
उत्तर― खाद्य सुरक्षा समाज के गरीब वर्गों के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि
यह गरीबी रेखा के ऊपर रह रहे लोगों के लिए भी आवश्यक होता है। वे भी खाद्य
असुरक्षित हो जाते हैं जब देश भूकम्प, बाढ़, सूखा, सुनामी, फसलों की ऊपज में
व्यापक गिरावट के कारण पैदा हुए अकाल जैसी आपदाओं का सामना करता है।
भारत में होने वाला सर्वाधिक विनाशकारी अकाल 1943 में बंगाल का अकाल
था जिससे तत्कालीन बंगला प्रान्त में लगभग 30,00,000 लोगों की जानें गई।
यद्यपि ऐसा विनाशकारी अकाल पुन: नहीं हुआ है। परन्तु आज भी भारत में उडीसा
का कालाहांडी एवं काशीपुर, राजस्थान का बारन जिला. झारखंड का पलामू जिला
एवं कई अन्य ऐसे सुदूर क्षेत्र है जहाँ कई वर्षा से अकाल जैसी स्थितियाँ विद्यमान
हैं। जनसंख्या का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित हैं। इन स्थानों में कुछ भुखमरी
की घटनाएँ भी हुए हैं। इलिए सभी लोगों एवं समयों में खाद्य सुनिश्चित करने के
लिए देश में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता है।

2. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य की आपूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता
है?
उत्तर― निस्संदेह भूकम्प, बाढ़, सूखा, सुनामी, फसलों की व्यापक बर्बादी के
कारण हुए अकाल जैसी आपदा के दौरान खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। यदि कोई
अपदा, जैसे-बाढ़ आती है तो खाद्यान्नों का कुल उत्पदन एवं आपूर्ति कम हो जाती
हैं इससे प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य की कमी से खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ जाती है।
कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य नहीं खरीद पाते हैं। स्थिति तब और गंभीर हो
जाती है तब ऐसी आपदा अति व्यापक क्षेत्र एवं लंबी अवधि के लिए आती है।
इससे भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यदि यह भुखमरी व्यापक स्तर पर
होती है तो यह अकाल का रूप ले लेती है। अकाल के दौरान भूखमरी से बड़ी
संख्या में लोगों की जानें जाती हैं। प्रभावित क्षेत्रों में दूषित जल एवं सड़े हुए खाद्य
के प्रयोग तथा खाद्य के अभाव में होने वाली कमजोरी के कारण शारीरिक प्रतिरोधी
क्षमता में कमी होने से विनाशकारी महामारी फैल जाती है।

3. मौसमी भुखमरी और दीर्घकालीक भुखमरी में भेव करें।
उत्तर― भुखमरी खाद्य असुरक्षा को व्यक्त करती है। इस प्रकार, खाद्य असुरक्षा की
प्राप्ति का अर्थ है- वर्तमान भुखमरी की समाप्ति और भविष्य में भुखमरी के खतरे
में कमी। भुखमरी मौसमी या दीर्घकालिक प्रकार की हो सकती है जो निम्नांकित
है–
(क) मौसमी भुखमरी― मौसमी भखमरी फसल उपजाने और काटने के
चक्र से संबद्ध है। इस प्रकार की भुखमरी ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से कृषि कार्यों
की मौसमी प्रकृति के कारण उत्पन्न होती है। यह नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम
के कारण होती है। जैसे, बरसात के मौसम में अनियमित निर्माण श्रमिक को कम
काम मिलता है। इस तरह की भुखमरी तब होती है जब कोई व्यक्ति पुरे वर्ष काम
पाने में अक्षम रहता है।

(ख) दीर्घकालिक भुखमरी― दीर्घकालिक भुखमरी निरन्तर अपर्याप्त,
असुरक्षित एवं अपौष्टिक आहारों के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न
एवं अनियमित आय के कारण दीघकालिक भुखमरी से पीड़ित होते हैं। वे जीवित
रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षम होते हैं।

4. सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर― बफर स्टॉक खाद्यानों का भंडार होता है। उदाहरण के लिए गेहूँ और
चावल का उत्पादन भारतय खाद्य निगम (एफ० सी० आई०) के माध्यम से
सरकार द्वारा भंडारित होता है। एफ० सी० आई० उन राजयों के किसानों से गेहूँ
और चावल खरीदती है जहाँ अधिशेष उत्पादन होता है। वह कीमत जिस प्रकार
सरकार यह अधिशेष खरीदती है, उसे न्यूनतम समर्थित मल्य (एम० आर० पी०)
कहते हैं। फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से
सरकार न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य
भंडारों में रखे जाते हैं। वास्तव में, बफर स्टॉक कमी वाले क्षेत्रों में और समाज
के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया
जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भ कहते हैं। बफर स्टॉक खराब मौसम में
या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता
है।

5. उचित दर की दुकान पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर― उचित दर वाली दुकानें- भारत खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अर्थात् संचित
अनाज को सरकार द्वार विनियमत राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब
वर्गों में वितरित की जाती है। इन राशन की दुकानों को उचित दर वाली दुकानें
भी कहा जाता है। कोई भी परिवार अपने राशन कार्ड से अनाज, मिट्टी का तेल,
चीनी आदि की एक निश्चित मात्रा प्रतिमाह उचित दर वाली दुकानों से खरीद
सकता है।

6. भारत में सार्वजनिक खाद्यान्नों के बड़े-बड़े भण्डारों के पीछे दो कारणों
का वर्णन करें।
उत्तर― भारत में सार्वजनिक खाद्यानों के बड़े-बड़े भण्डारों के मुख्य कारण
अग्रलिखित हैं―
(क) निम्नतम समर्थन मूल्य में वृद्धि होना।
(ख) खाद्यान्नों के बड़े-बड़े भण्डारों का दूसरा कारण, सार्वजनिक
वितरण प्रणाली के अन्तर्गत बिक्री की मात्रा में कमी आना है। बिक्री की मात्रा में
कमी आने का मुख्य कारण यह है कि निर्धनता रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों
को राशन की दुकानों से खाद्यान्न खरीदने में कोई विशेष लाभ नहीं होता। वे प्रायः
खुले बाजार में, खाद्यान खरीदना अधिक पसन्द करते हैं।

7. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कुछ व्यापारियों द्वारा अपनाएँ गए भ्रष्ट
तरीके लिखें।
उत्तर― सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कुछ व्यापारी निम्नांकित भ्रष्ट तरीकों का
सहारा लेते हैं।
                 (क) राशन की दुकान के अनाजों को अधिक लाभ कमाने के लिये
खुले बाजार में बेचना।
(ख) राशन की दुकान पर घटिया अनाज बेचना।
(ग) दुकान को नियमित रूप से न खोलना।
(घ) राशन की दुकान में कई फर्जी प्रविष्टियाँ करना।

8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
उत्तर― भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार द्वारा विनियमित
राशन के दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित की जाती है, जिसे
सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। इन राशन दुकानों में चीनी, खाद्यान और
खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता हैं ये सब बाजार कीमत से
कम कीमत पर लोगों को बेचे जाते हैं। राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार
प्रतिमाह इनकी एक निश्चित मात्रा निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता
है।

9. खाद्यान के भण्डार को कम करने के लिए सरकार के द्वारा अपनाये
गये उपाय लिखें।
उत्तर― खाद्यान्न के भण्डार को कम करने के लिए. सरकार ने निम्नांकित कदम
उठाये हैं–
           (क) निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिये अनाज की मात्रा
120 किलोग्राम प्रति मास प्रति परिवार से बढ़ा कर 25 किलोग्राम प्रति मास परिवार
कर दी गई है।

                  (ख) अन्नपूर्णा योजना के अन्तर्गत दरिद्र वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क
10 किलोग्राम अनाज देने की व्यवस्था की गई है।

10. खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा समाज के गरीब वर्गों के लिए ही आवश्यक नहीं है बलिक
यह गरीबी रेखा के ऊपर रह रहे लोगों के लिए भी आवश्यक होता है। वे भी खाद्य
असुरक्षित हो जाते हैं जब देश भूकम्प, बाढ़, सूखा, सुनामी, फसलों की ऊपज में
व्यापक गिरावट के कारण पैदा हुए अकाल जैसी आपदाओं का सामना करता है।
भारत होने वाला सर्वाधिक विनाशकारी अकाल 1943 में बंगाल का अकाल
था जिससे तत्कालीन बंगाल प्रान्त में लगभग 30,00,000 लोगों की जानें गई।
यद्यपि ऐसा विनाशकारी अकाल पुनः नहीं हुआ हैं परन्तु आज भी भारत में उड़ीसा
का कालाहांडी एवं काशीपुर, राजस्थान का बारन जिला, झारखण्ड का पलामू
जिला एवं कई अन्य ऐसे सुदूर क्षेत्र है। जहाँ कई वर्षों से अकल जैसी स्थितियाँ
विद्यमान हैं। जनसंख्या का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है। इन स्थानों में कुछ
भुखमरी की घटनाएँ भी हुई हैं। इसलिए सभी लोगों एवं समयों में खाद्य सुनिश्चित
करने के लिए देश में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता है।

                                      दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत में खाद्य की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा का अर्थ है- सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता,
पहुँच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य। इस प्रकार, खाद्य सुरक्षा की धारणा के
निम्न आयाम हैं–
           (क) खाद्य की उपलब्धता– खाद्य सुरक्ष के अन्तर्गत जनसंख्या के लिए
खाद्य की भौतिक उपलव्यता आता है। इसमें देश के भीतर खाद्य उत्पादन, खाद्य
आयात एवं सरकारी अन्न भंडारों में एकत्रित पिछले वर्षों के भंडार शामिल होता
है।

            (ख) खाद्य की सुलभता या पहुँच― इसका अर्थ होता है कि खाद्य
प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच के भीतर हो।

              (ग) खाद्य की समर्थता― इसका अथ है- प्रत्येक व्यक्ति के पास अपनी
आवश्यकता का खद्य खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा हो।

              (घ) पौष्टिक खाद्य― उपलब्ध खाद्य व्यक्ति की आहार-संबंधी
आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ही नहीं, बल्कि सुरक्षित एवं
पौष्टिक भी होनी चाहिए।

               (ङ) सभी समयों में उपलब्ध― एक देश किसी विशेष समय में खाद्य
में आत्म-निर्भर प्राप्त कर सकता है परन्तु खाद्य सुरक्षा से आशय दीर्घकाल के लिए
खाद्य में आत्म-निर्भरता होता है।

2. हरित क्रांति ने भारत को खाद्यानों में आत्मनिर्भर बना दिया है, कैसे?
वर्णन करें।
उत्तर― जब भारत स्वाधीन हुआ तो देश में खाद्यान्नों की भीषण कमी थी। इसके
फलस्वरूप भारत को अन्य देशों से विशाल मात्रा में अनाजों का आयात करना
पड़ता था। यह अनाज अधिकतर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों से मंगाया
जाता था। इस स्थति का सामना करने के लिए भारत सरकार ने कृषि की स्थिति
सुधारने के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकीय और संस्थापगत सुधार किये जो निम्नांकित
हैं–
    प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को विशेष महत्व दिया गया। सिंचाई के
लिए कई योजनाएं बनाई गई और कम उपजाऊ भूमि को भी खेती योग्य बनाने
के लिए कदम उठाए गए। नए और वैज्ञानिक ढंग से कृषि के साधन अपनाए गए।
नए और अधिक देने वाले बीज तैयार किए गए। किसानों को खाद इस्तेमाल करने
के लिए प्रोत्साहित किया जो उन्हें कम कीमत पर देने का प्रबंध किया गया। इन
सब उपायों के फलस्वरूप ही छठे दशक में कृषि में एक महान् क्रान्ति हुई और
कृषि वस्तुओं का उत्पादन तेजी से बढ़ा। विशेष रूप से गेहूँ और चावल आदि
खाद्यान्नों के उत्पादन में पंजाब और हरियाणा के राज्यों में रिकार्ड वृद्धि हुई। कृषि
उत्पादन में हुई इस महान क्रान्ति को 'हरित क्रान्ति' का नाम दिया गया है।
                इस हरित क्रान्ति ने न केवल गेहूँ और चावल आदि के उत्पादन में
आत्म-निर्भर बनाया है वरन् भारत समाज पर बड़े गहरे सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
डाले हैं। अब हम कृषि के क्षेत्र में प्राप्त की गई अपनी सफलता पर गर्व कर सकते
हैं। अब हमें अपना भोजन दूसरे देशों से नहीं मंगवाना पड़ता। क्या यह हमारी महान
सफलता नहीं है भोजन माँगने की ऐसी अवस्था हमारे लिए कितनी लज्जाजनक थी।
इसके अतिरिक्त अब हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप बहुत-सी विदेशी मुद्रा बच
जाती है जो पहले खाद्यान्नों के मामले में स्वावलम्बी बन चुके हैं हमें यह स्थिति
'बरकरार रखनी चाहिए। इसके लिए जहाँ हमें कृषि के क्षेत्र में अधिक से अधिक
खाद्य-पदार्थ तथा अन्य कृषि-सम्बन्धी सामग्री पैदा करनी चाहिए वहाँ अपनी
जनसंख्या को भी सीमित रखना होगा।

3. गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार
की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा करें।
उत्तर― गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए हमारी सरकार अपनी खाद्य सुरक्षा
प्रणाली को सावधानीपूर्वक तैयार करती है।
इस प्रणाली के दो घटक है―
(क) बफर स्टॉक और
(ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
  बफर स्टॉक अनाजों का सरकारी भंडार है जबकि सार्वजनिक वितरण
प्रणाली गरीबों में सरकार विनियमित राशि की दुकानों के माध्यम से संचित अनाजों
को वितरित करने की प्रणाली है। 1970 के दशक में खाद्य संबंधी तीन महत्वपूर्ण
अन्तःक्षेप कार्यक्रम प्रारंभ किए–
(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावशाली बनाया गया है,
(ख) एकीकृत बाल्य विकास सेवाएँ वर्ष 1975 में प्रारंभ की गई और
(ग) 'काम के बदले अनाज' वर्ष 1977-78 में शुरू की गई।
        वर्तमान में अनेक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चल रहे हैं जो खाद्य सुरक्षा
कार्यक्रमों को भी शामिल करते हैं। ये गरीबों की आय बढ़ाकर अपना योगदान देते
हैं। जबकि कई कार्यक्रम जैसे- सर्वाजनिक वितरण प्रणाली, दोपहर का भोजन आदि
विशेष रूप से खाद्य की दृष्टि से सुरक्षा के कार्यक्रम है। पिछले वर्षों में इसके
अलावा, वर्ष 2000 में 'गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब' और 'दीन वरिष्ठ नागरिक'
समूहों पर लक्षित दो विशेष योजनाएँ आरंभ की गई-
                     (क) अंत्योदय अन्न योजना― इस योजना के अंतर्गत अब 35
किलोग्राम अनाज प्रत्येक पात्र परिवार को 2 रु० प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रु०
प्रति किलोग्राम चावल की दर से उपलब्ध कराया जाता है।
           (ख) अन्नपूर्णा योजना― इस योजना के अन्तगत दीन वरिष्ठ नागरिकों
को 10 किलोग्राम अनाज मुफ्त दी जाती है। इन दोनों योजनाओं का संचालन
सार्वजनिक वितरण प्रणाली केवर्तमान नेटवर्क से जोड़ दिया गया है।

4. राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर― राशन की दुकानों के संचालन में समस्याएँ- भारतीय खाद्य निगम द्वारा
एकत्रित किया गया अनाज निर्धन लोगों को राशन की दुकानों द्वारा उपलब्ध कराया
जाता है जो देश के बहुत से भागों- गाँवों, जिलों, कस्बों और नगरों में स्थापित
की गई है। इस समय देश में कोई 4.6 लाख से भी अधिक राश की दुकानें हैं।
यह राशन की दुकानें लोगों का गेहूँ, चावल, चीनी और मिट्टी का तेल आदि वस्तुएँ
बाजार की कीमत से कम कीमत पर उपलब्ध कराते हैं। कोई भी गरीब परिवार
ये चीजें अपनी निकट की राशन की दुकान से प्राप्त कर सकता है।
    परन्तु हाल में राश्न की इन दुकानों के संचालन में अनेक त्रुटियाँ दृष्टिगोचर
हुई हैं और अनेक समस्याएँ पाई गई हैं, जो निःसंदेह एक सोच का विषय है।
            (क) सर्वप्रथम, यह कहा जाता है कि निर्धन लोगों को राश्न की दुकानों
से चीजें मिलती हैं वे घटिया प्रकार की होती है, इसलिये उनको अपने आवश्यकता
की चीजें बाजार से ही खरीदनी पड़ती है।

               (ख) दूसरे, राशन की दुकानों के डीलर राशन के सामान को अधिक
लाभ कमाने के उद्देश्य से खुले बाजार में बेच देते हैं। कई बार उन्हें चक्की वालों
को गेहूँ बेचने हुए प्राय: देखा जा सकता है।

                  (ग) कुछ राशन डीलर कम तोल कर भी गरीबों को ठगने का प्रयास
करते हैं।

                    (घ) कुछ राशन डीलर कभी-कभार अपनी दुकानें खोलते ही नहीं
ताकि निर्धन लोग अपने राशन का कोटा ले ही न सकें।

                 (ङ) कई बार भारतीय खाद्य निगम की ओर से ही राशन के दुकानदारों
को घटिया प्रकार की सामग्री मिल जाती है, जो काफी समय तक उनकी दुकानों
पर ही सड़ती रहती है।

                  (च) तीन प्रकार के कार्यों के बनने से राशन की दुकानों का सारा काम
ही काफी उलझनपूर्ण हो गया है। किसकी किस मूल्य से राशन देना है, कफी
उलझने पैदा कर देता है इसलिये बहुत से राशन डीलर अपने-आप ही अपना काम
बन्द करने को विवश हो जाते हैं।

                (छ) विशेषकर ऐसे परिवार जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं, उन्हें इस राशन
की दुकानों का कोई लाभ नहीं रहा क्योंकि उन्हें राशन की दुकानों से बाजार मूल्यों
पर ही चीजें मिलती हैं इसलिये वे राशन की दुकानों से राशन लेना बन्द कर देते
हैं।

5. खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों
की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर― खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों
की भूमिका– देश के कुछ विशेष भागों, विशेषकर दक्षिण और पश्चिम के भागों
में, सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
ये समितियाँ गरीबों के लिए बड़ी सहायता का कार्य करती हैं। उन्हें खाद्यान्न सस्ते
दामों पर मिल सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे कम कीमत वाली दुकानें
खोलती हैं। निम्नांकित क्षेत्रों में उनकी भूमि प्रशसनीय है।
                (क) ऐसा देखा गया है कि तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में राशन की
जितनी भी दुकानें हैं उनका 94% भाग इन सहकारी समितियों के माध्यम से ही
चलाया जाता है।

                (ख) दिल्ली जैसे स्थानों पर इन सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण
भूमिका रहती है। उदाहरणार्थ दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को काफी उचित
मूल्य पर दूध और कई बार सब्जियाँ आदि भी सप्लाई करती है।

                (ग) गुजरात में अमूल जैसी अनेक सहकारी समितियाँ हैं जिन्होंने वहाँ
बड़े उचित दामों में लोगों को दूध और दूध की बनी चीजें सप्लाई करना शुरू किया
हुआ है। इसने अब गुजरात से बाहर भी दूध और दूध उत्पदों को लोगों तक उचित
दामों में पहुँचाना शुरू कर दिया है। इस प्रकार समिति ने देश में श्वेत क्रान्ति ला
दी है।

                  (घ) केवल यही नहीं महाराष्ट्र में एक अन्य सहकारी संस्था, एकेडमी
ऑफ डेवलपमेंट ऑफ साइंस ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की अनाज बैंकों की
स्थापना में विशेष सहायता की है। इन अनाज बैंकों ने जनसाधारण, विशेषकर निर्धन
वर्ग के लोगों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
              इस प्रकार खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में सहकारी समितियों
की भूमिका प्रशंसनीय हैं।

                                                   ■■

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