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   Jharkhand Board Class 6TH Hindi Notes | शल्य-चिकित्सा के प्रवर्तक : सुश्रुत  

   JAC Board Solution For Class 6TH Hindi Chapter 11


लेखक परिचय : इस पाठ के लेखक डॉ. यतीश अग्रवाल हैं। ये नई
दिल्ली के सफदरगंज हॉस्पिटल में वरीय चिकित्सक हैं। हिन्दी एवं अंग्रेजी
की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में चिकित्सा एवं जन-स्वास्थ्य से संबंधित
विषयों पर इनके आलेख समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हिन्दी
एवं अंग्रेजी भाषा में इन्होंने अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन एवं कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के ये सलाहकार
के रूप में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। इन्हें विज्ञान-भूषण सम्मान भी प्राप्त
हो चुका है।
            पाठ का सारांश : प्रस्तुत पाठ में भारतीय चिकित्सा विज्ञान के
स्वर्णिम युग के बारे में बतलाया गया है। हमारे भारत में प्राचीन काल में
आचार्य सुश्रुत का जन्म हुआ था। इन्होंने चिकित्सा विज्ञान में अभूतपूर्व
कार्य किया। इस कारण इन्हें चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है।
इनकी विकसित नई-नई शल्य तकनीकें आज के चिकित्सकों को हतप्रभ
कर देती है। सुश्रुत ने चिकित्सा शास्त्र में कई बीमारियों के कारण एवं
उपचार की चर्चा उसी समय कर दी थी। ऐसा था हमारे देश का अतीत।
सुश्रुत लिखित 'सुश्रुत संहिता' आयुर्वेद का आज भी महानतम् ग्रंथ है।
इसमें चिकित्सा की अनेक विलक्षण विधियों, यंत्रों और उपकरणों की
व्यापक जानकारी दी गयी है।

                                अभ्यास-प्रश्न

□ पाठ से
1.लेखक ने वाराणसी का महत्व बताया है ?
उत्तर― वाराणसी भारत की प्राचीन नगरी है। यह गंगा किनारे बसा है।
इस नगर का सैकड़ों वर्ष पुराना वैभवशाली इतिहास रहा है। यह नगर
प्राचीन काल से ही शिक्षा नगरी के केन्द्र के रूप में विख्यात रहा है। प्राचीन
काल में यह काशी राज्य की राजधानी थी।

2. सुश्रुत संहिता क्या है ? संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर― सुश्रुत द्वारा रचित 'सुश्रुत संहिता' एक महान ग्रंथ है। यह ग्रंथ
विश्व में यह साबित करता है कि प्राचीन भारत के चिकित्सक चिकित्सा
विज्ञान के क्षेत्र में अपने समय से बहुत आगे थे। यह ग्रंथ भारतीय
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का आधारस्तंभ है।

3. सुश्रुत के आयुर्वेद-पाठशाला में विद्यार्थी दूर-दूर से शल्य
चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त करने आते थे। किस प्रकार के विद्यार्थियों
को यहाँ प्रवेश मिलता था ?
उत्तर― प्रवेश हेतु शिष्यों को कंदमूल, फल-फूल, पेड़-पौधों, पानी
भरी मशक, चिकनी मिट्टी के ढाँचें और मलमल से बने मानव पुतलों पर
अभ्यास कर साबित करते थे कि चीरा कहाँ, कैसे लगाना है। सूई कैसे दी
जाती है। खुरदरे चमड़े को खुरचने की विधि कराकर देखा जाता था। तब
प्रवेश मिलता था।

4. सुश्रुत द्वारा टाँके लगाने के लिए किस-किस प्रकार के धागे
प्रयुक्त किये जाते थे?
उत्तर― टाँके लगाने के लिए त्वचा और विभिन्न उत्तकों की मोटाई
और रचना को ध्यान में रखते हुए तरह-तरह के धागे विकसित किए गए
थे। कुछ का आधार रेशम की डोर होती थी तो कुछ सूत से बनाए जाते
थे। कुछ चमड़े से तैयार किए जाते थे। कुछ घोड़ों के बालों से।

5. सुश्रुत फटी हुई आँतों का इलाज किस प्रकार करते थे ?
उनकी तकनीक को विलक्षण क्यों कहा गया है ?
उत्तर― फटी आँतों के दो किनारों को साथ मिलाकर इस पर चींटे
छोड़ दिये जाते थे। वे चींटे अपने दाँतों से उस पर चिपक जाते थे जिससे
फटी हुई आँत के दो किनारे आपस में सिल से जाते थे। अब चींटों का
शेष भाग काटकर अलग कर दिया जाता और उदर के बाहरी उत्तकों और
त्वचा पर टाँके कस दिये जाते। कुछ ही दिनों में आँत का घाव भर जाता
एवं चीटों का सिर उत्तकों में धुल मिल जाता था। यह तकनीक इसीलिए
विलक्षण कही गयी।

6. शल्यक्रिया का प्रारंभिक प्रशिक्षण देने के लिए किन-किन
वस्तुओं का उपयोग किया जाता था ?
उत्तर― शल्यक्रिया का प्रारंभिक प्रशिक्षण देने के लिए कंद-मूल,
फल-फूल, पेड़-पौधों की लताओं, पानी से भरी मशकों, चिकनी मिट्टी
के ढाँचों और मलमल से बने मानव पुतलों पर दिनोंदिन अभ्यास कराया
जाता था। चीरा लगाने की कला जानने के लिए ककड़ी, केला, तरबूज
आदि पर अभ्यास करना पड़ता था। दीमक लगी लकड़ी द्वारा घाव एवं
उसका भरना सिखाया जाता था। कमल के फूल की डंडी को नस के रूप
में अभ्यास कराया जाता था। पट्टी बाँधने के लिए मानव पुतलों का सहारा
लिया जाता था।

7. सुश्रुत महान शल्य चिकित्सक तो थे ही, श्रेष्ठ गुरू भी थे,
कैसे?
उत्तर― सुश्रुत महान शल्य चिकित्सक थे। वे श्रेष्ठ गुरु भी थे। वे अपने
शिष्यों को शल्य कला का प्रारंभिक प्रशिक्षण देने के लिए प्राकृतिक
वस्तुओं जैसे-केला, खीरा, ककड़ी आदि का प्रयोग किया करते थे।

8. किस काल को भारतीय चिकित्सा विज्ञानं का स्वर्णिम युग
माना गया है और क्यों ? लिखिए।
उत्तर― ईसा से 600 वर्ष पूर्व और 1000 ई० तक का समय भारतीय
चिकित्सा विज्ञान के लिए स्वर्णिम युग था। जीवक, चरक, आत्रेय एवं
वाग्भट् जैसे यशस्वी चिकित्सा शास्त्रियों ने भारत भूमि पर इसी समय जन्म
लिया। यहाँ तक की यूनानी चिकित्सा-विज्ञान भी भारतीय चिकित्सकों के
सिद्धांतों पर स्थित था।

                                                   ★★★

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