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 Jharkhand Board Class 10 History Notes | औद्योगिकरण का युग    

JAC Board Solution For Class 10TH ( Social science ) History  Chapter 5

                      (The Age of Industrialisation)

प्रश्न 1. ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले
किए। व्याख्या करें।
उत्तर―स्पिनिंग जैनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीब्ज ने 1764 में किया था।
इस मशीन ने कताई प्रक्रिया तेज कर दी और श्रमिकों की मांग घट गई। इस
मशीन द्वारा अकेला कारीगर अनेक पूनियाँ बना सकता था और एक ही समय में
कई धागे बना सकता था। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि बुनकरों की माँग घटने
से वे अधिकतर लोग बेरोजगार होने लगे।
    बेरोजगारी के इसी डर के कारण भारतीय महिला कामगारों ने, जो हाथ की
कताई पर निर्भर थीं, स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले शुरू कर दिए।

प्रश्न 2. कपास के कारखाने का निर्माण किसने किया? इससे उत्पादन
के सुधार में कैसे सहायता मिली?
उत्तर―रिचर्ड आर्कराइट ने कपास के कारखाने का निर्माण किया था।
(i) महँगी मशीनों को खरीद कर स्थापित किया जाता था और कारखाने का
रख-रखाव किया जाता था।

(ii) कारखाने के भीतर सभी प्रक्रियाएँ एक छत व प्रबंधन के नीचे लाई
गई। इससे उत्पादन-प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का निरीक्षण और श्रमिकों पर
नजर रखना सुगम हो गया । गाँवों में उत्पादन के समय में सारे काम सहज नहीं थे।

प्रश्न 3.19वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय बुनकरों की क्या समस्याएँ थी ?
उत्तर―(i) ब्रिटेन में औद्योगिकरण के कारण उनका नियांत बाज़ार ठप हो गया।

(ii) ब्रिटिश व्यापारियों ने मशीनो कपड़े भारत में निर्यात करने शुरू कर दिए
जिससे उनके स्थानीय बाजार सिकुड़ गए।

(iii) इंग्लैंड में कच्ची कपास के निर्यात के कारण भारत में कच्चे माल की
कमी हो गई।

(iv) जब अमेरिकी गृह-युद्ध छिड़ा और अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद
हो गई तो इंग्लैंड भारत की ओर देखने लगा। भारत से कच्ची कपास का निर्यात
बढ़ गया तो यहाँ कच्ची कपास के दाम आकाश छुने लगे। भारतीय बुनकरों की
आपूर्ति ठप्प हो गई और वे उच्चतर दामों पर कपास खरीदने को विवश हो गए।

प्रश्न 4. भारत में कारखानों के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर―भारत में सबसे पहले कपास और पटसन के कारखानों को स्थापना
हुई। पहली कपड़ा मिल 1854 में बंबई में लगी थी। 1864 में इनकी संख्या चार
हो गई हो गई। कपड़ा मिल के बाद 1855 में बंगाल में पटसन मिल स्थापित हुई।
      1862 में बंगाल में ही एक और पटसन मिल स्थापित की गई । उत्तरी भारत
में 1860 के दशक में कानपुर में एलिन मित प्रारंभ हुई और एक वर्ष बाद
अहमदाबाद में प्रथम कपड़ा मिल लगाई गई। 1874 तक मद्रास की पहली कताई
तथा बुनाई मिल ने उत्पादित शुरू कर दिया।

प्रश्न 5. अंग्रेज भारतीय व्यापारी उद्योगपतियों के साथ किस प्रकार
भेदभाव करते थे?
या, भारतीय व्यापारी उद्योगपतियों की कुछ समस्याओं का चर्चा
कीजिए।
उत्तर―(i) जिस बाजार में भारतीय व्यापारियों को काम करना था। वह
सीमांत से सीमिततर होता गया।

(ii) भारतीयों को यूरोप में निर्मित माल का व्यापार व व्यवसाय करने से
प्रतिबंधित कर दिया गया और उन्हें मांग करने पर अधिकांश कच्चे माल, खाद्यन्न,
कच्ची कपास, अफीम, गेहूँ, नील आदि का इंग्लैंड को निर्यात करना पड़ता था।

(iii) आधुनिक जलपोतों के आने से भारतीय व्यापारियों को जहाजरानी
व्यवसाय से हटा दिया गया।
यूरोपीय व्यापारी उद्योगपतियों के पास वाणिज्य के अपने विशेष केन्द्र थे और
भारतीयों को इनका सदस्य बनने की अनुमति नहीं थी।

प्रश्न 6. उन प्रांतों के नाम लिखें जहाँ विशाल उद्योग स्थापित किए
गए । आप कैसे कह सकते हैं कि 20वीं सदी के अंत में भी छोटे पैमाने के
उत्पादन ने अपना वर्चस्व कायम रखा?
उत्तर―(i) बंगाल (ii) बंबई ।
(i) पंजीकृत कारखानों में कुल औद्योगिक श्रम शक्ति का एक बहुत बड़ा
अनुपात अर्थात् 5% ही काम करता था।

(ii) हस्तशिल्प उद्योगों का विस्तार हो चुका था।

(iii) 20वीं सदी में हथकरघा कपड़ा उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ा अर्थात् 1900
और 1940 के बीच तिगुना हो गया था।

प्रश्न 7. बीसवीं सदी में हथकरघे (hand loom) के कपड़े का
उत्पादन बढ़कर 1900 और 1940 के बीच तिगुना हो गया था। कारण
बताइए।
उत्तर―(i) हथकरघा उत्पादकों ने नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जिससे
उत्पादन में सुधार हुआ परन्तु मूल लागत में कोई वृद्धि भी नहीं हुई।

(ii) बीसवीं सदी के दूसरे दशक तक आते-आते अधिकतर बुनकरों को
फ्लाई शटल वाले करघों का प्रयोग करते देखा जा सकता था। इससे प्रति व्यक्ति
उत्पादकता बढ़ी, उत्पादन बढ़ा और श्रम की मांग में कमी आई। 1941 तक
भारत में 35% से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लगे होते थे। त्रावणकोर,
मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि क्षेत्रों में तो ऐसे हाथकरघे 70-80 प्रतिशत तक थे।

(iii) इसके अलावा कई छोटे-छोटे सुधार किए गए जिनसे बुनकरों को
अपनी उत्पादकता बढ़ाने और मिलों से प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिली।

प्रश्न 8. जॉबर (Jobber) किसे कहते थे?
उत्तर―मिलों की संख्या बढ़ने के साथ मजदूरों की मांग भी बढ़ रही थी और
रोजगार चाहने वालों की संख्या रोजगारों के मुकाबले हमेशा अधिक रहने के
कारण नौकरी पाना कठिन था। मिलों में प्रवेश भी निषिद्ध था। उद्योगपति नए
मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक जॉबर रखते थे। जॉबर प्राय: कोई पुराना और
विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था, उन्हें काम
का भरोसा देता था, उन्हें शहर में बसने के लिए सहायता करता था और मुसीबत
में आर्थिक सहायता भी करता था। इस प्रकार जॉबर शक्तिशाली और मजबूत
व्यक्ति बन गया था। बाद में जॉबर मदद के बदले पैसे व उपहार मांगने लगे और
मजदूरों के जीवन को नियंत्रित करने लगे।

प्रश्न 8. आदि-औद्योगिक व्यवस्था की चार विशेषताएँ बताइए।
                                                                    [NCERT]
उत्तर―(i) यह उत्पाद की विकेन्द्रित व्यवस्था थी। व्यापारी रहने वाले तो
शहरों के थे परन्तु उनका काम प्रायः ग्राम्य क्षेत्रों में फैला था।

(ii) यह ऐसी व्यवस्था थी जिसे व्यापारियों ने नियंत्रित कर रखा था और
वस्तुओं का उत्पादन उन उत्पादकों द्वारा हो रहा था जो अपने खेतों में परिवारों के
बीच रहकर काम कर रहे थे।

(iii) इस व्यवस्था में पूरे परिवार को शामिल करके काम किया जाता था।

(iv) श्रमिक गाँवों में रहते थे और अपने छोटे खेतों पर खेती भी करते थे।

प्रश्न 9.19वीं सदी के अंत में कपड़ा उद्योग के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी
क्यों हुई?
उत्तर―(i) नए आविष्कार―18वीं सदी में कई ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने
उत्पादन प्रक्रिया (कर्डिग, ऐंठना व कताई और लपेटने) के हर चरण की कुशलता
बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया जिससे मात्रा के साथ गुणवत्ता भी बढ़
गई और पहले से अधिक मजबूत धागा व रेशों का उत्पादन होने लगा।

(ii) कपड़ा मिल की स्थापना―रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की
स्थापना की थी। अब महंगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा
सकता था। कारखाने में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के
हाथ में आ गदथी। इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगराना, गुणवत्ता का ध्यान रखना
और मजदूरों का निरीक्षण सुगम हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा
था, तब तक ये सारे कार्य सहज नहीं थे।

प्रश्न 10. उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कछ उद्योगपति मशीनों के बजाए
हाथों के काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?
अथवा, नयी प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए कई उत्पादक उत्सुक क्यों
नहीं थे? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।                         [NCERT]
उत्तर―उन्नीसवाँ शताब्दी तक यूरोप मशीनी युग में प्रवेश कर चुका था।
बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हो गए थे और नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने लगा
था। फिर भी यूरोप के कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले
श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे―
(i) नयी प्रौद्योगिकी महँगी थी, अतः उत्पादक तथा उद्योगपति उनके प्रयोग
के प्रति सावधान रहते थे

(ii) मशीनें प्रायः खराब हो जाती तो उन्हें ठीक करने पर भारी पैसा लगता था।

(iii) वे उतनी कार्यकुशल नहीं थीं जैसा दावा उनके निर्माता व आविष्कारक
करते थे।

(iv) निर्धन किसान तथा अप्रवासी भारी संख्या में नगरों की ओर काम की
खोज में पहुँचने लगे । अतः श्रमिकों की आपूर्ति मांग से कहीं अधिक थी। अतः
श्रमिक कम वेतन पर मिल रहे थे।

(v) हाथ की कारीगरी द्वारा उत्पादों में विविधता लाई जा सकती थी।
मशीनों से एकरूप उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा सकते थे। बाजार में प्रायः
बारीक डिजाइन और खास आकार वाली चीजों को काफी माँग रहती थी।
उदाहरणतः ब्रिटेन में 19वीं सदी के मध्य में 500 तरह के हथौड़े और 45 तरह
की कुल्हाड़ियाँ बनती थीं । इनके निर्माण में यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं अपितु
मानव-कौशल की जरूरत थी।

प्रश्न 11. 18वीं सदी के अंत तक सूरत की बंदरगाह हाशिए पर पहुँच
गया। स्पष्ट कीजिए।                                     [JAC 2014 (A)]
उत्तर―(i) अधिकतर यूरोपीय कंपनियों के पास भारी संसाधन थे जिसके
कारण भारतीय व्यापारी तथा व्यवसायी उनसे प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई का
अनुभव कर रहे थे।

(ii) यूरोपीय कंपनियाँ स्थानीय दरबारों से विभिन्न राहतें पाकर शक्ति ग्रहण
करती जा रही थीं।

(iii) कई कंपनियों को व्यापार का एकाधिकार मिल गया था।
इन सबके परिणामस्वरूप सूरत और हुगली को बंदरगाहें कमजोर पड़ गईं
जहाँ से स्थानीय व्यापारी व्यापार चलाते थे। इन बंदरगाहों से होने वाले निर्यात में
नाटकीय कमी आई। पहले जिस ऋण से व्यापार चलता था वह खत्म होने लगा।
धीरे-धीरे स्थानीय बैंकर दिवालिया हो गए। 17वीं सदी के अंतिम वर्षों में सूरत
बंदरगाह से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 करोड रुपये था। 1740 के
दशक तक यह गिरकर केवल 30 लाख रह गया। समय पाकर सूरत और हुगली
कमजोर पड़ गए और बंबई व कलकत्ता उभरने लगे।

प्रश्न 12. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सती और रेशमी
कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया ?
                                                                  [JAC 2011 (A)]
उत्तर―ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने के बाद
कंपनी ने भारतीय व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए कई पग
उठाए। उसने प्रतिस्पर्धा समाप्त करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास तथा
रेशम से बने वस्वों की नियमित आपूर्ति के लिए एक नयी व्यवस्था लगू की। यह
काम निम्नलिखित कई चरणों में किया गया―
(i) गुमाश्तों की नियुक्ति―कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों
और दलालों को समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक-से-अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण
स्थापित करने का प्रयास किया। बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने
और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त कर दिए
गए। उन्हें गुमाश्ता कहा जाता था

(ii) बुनकरों द्वारा अन्य व्यापारियों को माल बेचने पर रोक―कंपनी को
माल बेचने वाले बुनकरों पर अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर रोक लगा
दी गई। इसके लिए उन्हें पेशगी धन दिया जाने लगा। काम का ऑर्डर पाने वाले
बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण दे दिया जाता था । ऋण लेने वाले
बुनकरों का अपना कपड़ा गुमाश्ते को ही देना पड़ता था। वे उसे किसी अन्य
व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।

(iii) बुनकरों से कठोर व्यवहार―गुमाश्ते बुनकरों से अपमानजनक व्यवहार
करते थे। वे सिपाहियों तथा चपरासियों को अपने साथ लेकर आते थे और माल
समय पर तैयार न होने पर बुनकरों को दंड देते थे। बुनकरों को प्रायः बुरी तरह
पीटा जाता था और कोड़े लगाए जाते थे। अब बुनकर न तो दाम पर मोलभाव
कर सकते थे और न ही किसी अन्य सौदागार को अपना माल बेच सकते थे।
उन्हें कंपनी जो कीमत देती थी वह बहुत कम थी। परन्तु ऋण-राशि के कारण
कंपनी से बंधे हुए थे।

प्रश्न 13. पेशगी की प्रणाली बुनकरों के लिए हानिकारक क्यों सिद्ध
हुई?
उत्तर―(i) बुनकरों के पास मोल-भाव करने का अवसर नहीं बचा था।

(ii) अधिकतर बुनकरों ने अपनी जमीन बँटाई पर दे दी और वे सारा समय
बुनाई में ही लगाते थे। इस बुनकर कार्य में उनका पूरा परिवार ही लगा रहता था।

(iii) अपनी जमीन खोने के बाद अधिकतर युनकर खाद्यान्न की आपूर्ति के
लिए दूसरों पर निर्भर हो गए।

(iv) नए गुमाश्ता बाहरी लोग थे और उनके ग्रामीणों से कोई सामाजिक
संपर्क नहीं थे। अतः वे आक्रामक होकर काम करते, पुलिस के साथ गाँवों में
घूमते और आपूर्ति में देरी के लिए बुनकरों को दंड देते थे।
        अत: बुनकरों तथा गुमाश्तों के बीच झड़पों की रिपोर्ट मिलने लगीं।

प्रश्न 14. उन्नीसवीं सदी के महत्त्वपूर्ण एक उद्यमी या व्यापारिक
संगठन के बारे में लिखें।
उत्तर―(i) द्वारकानाथ टैगोर―वे बंगाल के प्रमुख व्यापारी थे। उन्होंने चीन
के साथ व्यापार में खूब धन कमाया और उसे उद्योगों में निवेश करने लगे।
1830-40 के दशकों में उन्होंने 6 संयुक्त उद्यम कंपनियाँ लगा ली थीं। यद्यपि
उनका व्यवसाय 19वीं सदी के मध्य में बैठ गया तथापि उनेंने 19वीं सदी में चीन
के साथ व्यापार करके सफल होने वाले उद्योगपतियों को मार्ग दिखाया।

(ii) डिनशॉ पेटिट―वे एक पारसी उद्यमी थे और भारत में प्रथम कपड़ा
मिल के संस्थापक थे।

(iii) जमशेदजी नुसरवान जी टाटा―उन्हें प्रायः 'भारतीय उद्योग का
जनक' कहा जाता है। उन्होंने आंशिक रूप से चीन को निर्यात करने और
आंशिक रूप से इंग्लैंड को कच्ची कपास निर्यात करके पैसा कमाया था।

(iv) सेठ हुकुमचंद―वे एक मारवाड़ी व्यवसायी थे जिन्होंने कलकत्ता में
1917 में प्रथम पटसन मिल की स्थापना की थी।

(v) बिड़ला―ये मारवाड़ी संगठन से संबद्ध थे जिन्होंने कपास के सौंदों में
व्यापार स्थापित किया था।

प्रश्न 15. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन
क्यों बढ़ा?                             [JAC 2009 (S); 2016 (A)]
अथवा, भारतीय उद्योगों पर प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर―(i) जब ब्रिटिश मिलें युद्धकाल में सेना की जरूरतों को पूरा करने के
लिए उत्पादन में व्यस्त थीं, तब भारत में मैनचेस्टर का आयात कम हुआ।

(ii) अचानक भारतीय मिलों की आपूर्ति के लिए विशाल बाजार मिल गया ।

(iii) युद्ध लंबा खिंच गया तो भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए
बोरियाँ, वदी, तंबू, चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा अन्य कई सामान
बनने लगे।

(iv) नए कारखाने लगाए गए और पुरानों में कई पालियों में काम होने
लगा। बहुत से नए मजदूरों को काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी
अधिक समय तक काम करना पड़ता था। युद्ध काल में औद्योगिक उत्पादन तेजी
से बढ़ा।

प्रश्न 16. औद्योगीकरण एक मिश्रित वरदान था।' सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर―औद्योगीकरण के सकारात्मक प्रभाव―(i) सस्ती वस्तुएँ–मशीनों
द्वारा बनी वस्तु सस्ती व उत्तम होती थीं। अतः उपनिवेश के लोग सस्ती, उत्तम
तथा विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीद सकते थे।

(ii) नये उद्यमी―औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय उद्यमियों को कारखानों
में अवसर प्रदान किए। यद्यपि ये नये खिलाड़ी थे तथापि वे अच्छा धन कमाने
लगे थे।

(iii) औद्योगिक क्षेत्र का विकास―विदेशियों के आगमन से पूर्व बहुत से
लोग कृषि पर लगे हुए थे परन्तु औद्योगीकरण ने उन्हें दूसरे क्षेत्रों में काम के
अवसर प्रदान किए।

श्रमिकों का जीवन―औद्योगीकरण की प्रक्रिया अपने साथ नवोदित आद्योगिक
श्रमिकों के लिए कष्ट भी लेकर आई।

बुनकरों पर प्रभाव―बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए कंपनी ने
पेशगी की व्यवस्था प्रारम्भ की। एक बार आर्डर मिलने पर, बुनकरों को उत्पादन
के लिए कच्चा माल खरीदने को ऋण दिया जाता था। जो ऋण लेते थे, उन्हें
अपना तैयार माल गुमाश्तों को देना पड़ता था। वे इसे किसी अन्य व्यापारी को
नहीं बेच सकते थे। बुनकरों के लिए पेशगी की प्रणाली हानिकारक सिद्ध हुई।
(a) बुनकरों ने मोल-भाव के अवसर खो दिए थे।
(b) अधिकतर बुनकर अपनी भूमि बँटाई पर देकर सारा समय बुनाई में ही
लगाने लगे। बुनाई में प्रायः उनका पूरा परिवार ही खप जाता था।

(iii) व्यावसायियों तथा व्यापारियों पर प्रभाव-मशीन द्वारा बने कपड़ों के
भारत में आयात पर भारतीय व्यापारियों की अर्थव्यवस्था पर कुछ गंभीर प्रभाव पड़े-
(a) निर्यात बाजार का ठप होना―औद्योगीकरण से पूर्व भारतीय व्यापारी
विश्व के विभिन्न देशों में अपने उत्पाद निर्यात करते थे परन्तु मशीन से बने कपड़े
के आने से उनका विश्व बाजार ठप्प हो गया।

(b) स्थानीय बाजार का सिकुड़ना―मशीन से बने कपड़े उत्तम तथा सस्ते
थे। अतः निर्माता उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने में असफल रहे । अतः विश्व बाजार
के साथ-साथ उनका स्थानीय बाजार भी ठंडा पड़ने लगा।

                                            ◆◆◆
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