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 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes |  बालगोबिन भगत ― रामवृक्ष बेनीपुरी  Solutions Chapter 11


              दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

गद्यांश 1. किन्तु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु
थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरने वाले। कबीर को 'साहब' मानते थे,
उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा
व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी
से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में
लाते। इस नियम को कभी-भी इतनी बारीकी तक ले जाते थे कि लोगों को कुतूहल
होता! -कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते ! वह गृहस्थ थे;
लेकिन उनकी सब चीज 'साहब' की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर
लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर
पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में 'भेंट' रूप रख लिया जाकर
'प्रसाद' रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!

प्रश्न-बाल गोबिन को गृहस्थ होते हुए भी भगत-साधु क्यों कहा गया?
उत्तर―बाल गोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी अपना आचरण साधु-वैरागियों
सा रखते थे। वे अपने 'साहब' पर असीम श्रद्धा रखते थे। वे वैरागियों की तरह
किसी की कोई चीज नहीं छूते थे। सभी के साथ उनका व्यवहार खरा और सच्चा
था। उनमें लोभ और अहंकार नाम की कोई चीज नहीं थी। वे भजन में लीन में
रहते थे।

प्रश्न-स्पष्ट करें कि भगत जी का जीवन 'साहब' की सम्पत्ति था।
उत्तर―भगत जी गृहस्थ होते हुए भी कबीर के आदर्शों पर चलते थे। उनका
सारा जीवन साहब पर समर्पित था। वे अपनी सारी उपज सर्वप्रथम साहब को
समर्पित करते थे और प्रसाद के रूप में जो कुछ भी मिलता था, उसी से अपना
गुजारा करते थे। इससे स्पष्ट होता है कि उनका सारा जीवन 'साहब' की सम्पत्ति
था।

प्रश्न-बाल गोबिन किनके आदर्शों पर चलते थे?
उत्तर―बाल गोबिन संत कबीर के आदर्शों पर चलते थे। कबीर के प्रायः सभी
आदर्शों को वे मानते थे। वे कबीर के समान स्पष्टवादी थे।

प्रश्न-भगत जी लोकव्यवहार में कैसे थे?
उत्तर―भगत जी लोक व्यवहार में बिलकुल खरे थे। वे न गलत बोलना जानते
थे और न गलत सुनना चाहते थे। वे किसी दूसरे की चीज छूना पसन्द भी नहीं
करते थे। वे कभी-भी झूठ नहीं बोलते थे।

प्रश्न-वे अपनी फसलों को लादकर कहाँ ले जाते थे और क्यों?
उत्तर―वे अपनी फसलों को लादकर 'कबीर मठ' में अपने 'साहब' के पास
ले जाते थे, क्योंकि वे अपनी सारी फसलों पर 'साहब' का अधिकार मानते थे।

प्रश्न-इस संदर्भ से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर―इस संदर्भ से प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य की सारी सम्पत्ति परमात्मा
की देन है। मनुष्य को गृहस्थ जीवन में कभी झूठ, क्रोध और लोभ का व्यवहार
नहीं करना चाहिए। अपनी कमाई को ईश्वर को समर्पित करो और उसका प्रसाद
ग्रहण करें। दूसरों के लिए त्याग सबसे बड़ा गृहस्थ-धर्म है।

गद्यांश 2. आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं
हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल
रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेड़ पर बैठी हैं। आसमान बादल से घिरा; धूप का
नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग
झंकार-सी कर उठी। यह है-यह कौन है। यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन
भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुली
एक-एक धान के पौधे को, पक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक
शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है
और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर लोगों के कानों की ओर। बच्चे खेलते हुए
झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं।
हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब
क्रम से चलने लगती हैं। बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू।

प्रश्न-बालगोबिन का संगीत-स्वर कैसा था? अन्य लोगों पर क्या प्रभाव
पड़ रहा था?
उत्तर―बाल गोबिन का संगीत स्वर जादू-सा था। उसका स्वर मानो ऊँचाई
पर चढ़कर स्वर्ग की ओर जा रहा था। खेतों में काम करने वाले अन्य लोगों को
मदहोश कर रहा था।

प्रश्न-बाल गोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया है?
उत्तर―बाल गोबिन के संगीत को सुनकर लोग झूमने लगते थे। किसानों को
काम करने में और बच्चों को खेलने में मस्ती आ जाती थी। महिलाओं के भी होंठ
गुनगुनाने लगते थे। हल चलाने वालों के पैर एक ताल में उठते थे। धान रोपने वालों
की उँगलियाँ उसी ताल और लय में चलने लगती थीं।

प्रश्न-आषाढ़ में बच्चे और महिलाएँ क्या कर रहे थे?
उत्तर―आषाढ़ में खेतों में रोपाई चल रह रही थी। खेतों में बच्चे उछल-कूद
कर खुशी मना रहे थे। महिलाएं किसानों का भोजन और नाश्ता लेकर मेड़ पर
बैठी थीं।

प्रश्न-इस संदर्भ व्यक्त मौसम का वर्णन करें।
उत्तर―इस संदर्भ में मौसम बड़ा ही सुहावना था। आकाश बादलों से घिरा
था। कुछ देर पहले वर्षा हो चुकी थी। मिट्टी गीली थी। ठंडी हवा चल रही थी।

प्रश्न-बाल गोबिन अपने खेतों में क्या कर रहे थे?
उत्तर―बाल गोबिन अपने खेतों में रोपाई कर रहे थे। उनकी ऊँगली खेतों में
पंक्तिबद्ध पौधे बिठा रही थी। इसके साथ ही वे समधुर रूप में कबीर के भजन
गा रहे थे।

प्रश्न-इस सन्दर्भ के माध्यम से लेखक क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर―इस संदर्भ के माध्यम से लेखक बाल गोबिन भगत के संगीत की महत्ता
को दिखाना चाहता है। वह उसकी जादुई संगीत, मस्ती, तल्लीनता और गायन-कला
की अलौकिक मिठास का वर्णन करना चाहता है।

गद्यांश 3. बाल गोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन
देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह। कुछ सुस्त और
बोदा-सा था, किन्तु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ
में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि
ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी
कराई थी, पतोहू ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर
भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार
है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किन्तु मौत तो अपनी ओर
सबका ध्यान खींचकर ही रहती है।

प्रश्न-पाठ तथा लेखक का नाम लिखें।
उत्तर―पाठ-बाल गोबिन भगत, लेखक-रामवृक्ष बेनीपुरी।

प्रश्न-बाल गोबिन भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष कब देखने
को मिलता है?
उत्तर―बाल गोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उनके बेटे की
मृत्यु के बाद देखने को मिलता है। पुत्र-शोक में प्रायः लोग मातम मनाते हैं। लेकिन
भगत जी अपने मृत बेटे के निकट बैठकर संगीत-साधना में लीन थे। उनकी मान्यता
थी कि आत्मा परमात्मा में मिल गयी। बेटे की मौत भी उनकी संगीत साधना को
विचलित नहीं कर सकी। यही उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष था।

प्रश्न-भगत जी का बेटा कैसा था? उसके साथ उनका व्यवहार कैसा था?
उत्तर―भगत जी का बेटा सुस्त था। वह तेज दिमाग का नहीं था। फिर भी,
भगत जी उसके साथ स्नेह रखते थे। उस पर वे काफी ध्यान देते थे।

प्रश्न-भगत जी अपने बेटे को अधिक प्यार क्यों करते थे?
उत्तर―भगत जी का मानना था कि सुस्त और बोदे बच्चे प्यार, स्नेह और
निगरानी के अधिक हकदार होते हैं। इसलिए भगत जी अपने बेटे को अधिक प्यार
करते थे।

प्रश्न-भगत जी की पतोहू (बहू) कैसी थी? उसका व्यवहार कैसा था?
उत्तर―भगत जी की बहू बहूत सुन्दर और सुशील थी। वह काफी कार्यकुशल
थी। उसने अपनी कुशलता से सारे घर को सँभाल रखा था। भगत जी घरेलू कार्यों
से पूर्णतः निश्चिन्त रहते थे।

गद्यांश 4. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई
उसकी। किन्तु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर
उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना।। इधर
पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन
बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने
चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो
मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस
दलील के आगे बेचारी की क्या चलती ? [JAC 2011 (A); 2013 (A); 2017(A)]

प्रश्न-भगत जी ने अपनी पतोहू को कहाँ और क्यों भेजने का निर्णय
लिया?
उत्तर―भगत जी ने अपनी पतोहू को उसके भाइयों के साथ भेजने का निर्णय
लिया। भगतजी की पतोहू अभी युवती थी। भगत जी ने यह उचित नहीं समझा कि
उनके बुढ़ापे के सहारे के लिए उनकी पतोहू अपनी भावनाओं को दबाकर बाकी
जिन्दगी व्यतीत करे। उन्होंने अपनी बहू को उसके भाई के साथ यह कहकर भेज
दिया कि वह दूसरी शादी कर ले।

प्रश्न-सिद्ध करें कि बालगोबिन भगत नर-नारी के अंतर को नहीं मानते
थे?
अथवा, स्पष्ट करें-भगतजी में सामाजिक मर्यादाओं को चुनौती देने का
साहस था?
उत्तर―हमारे समाज की मान्यता है कि महिलाएं मुखाग्नि नहीं दे सकती है।
नारी को श्मशान घाट पर जाने की भी अनुमति नहीं है। परन्तु, भगत जी ने अपने
पुत्रवधू से ही मृत बेटे की मुखाग्नि दिलाई। इससे स्पष्ट होता है कि उनके मन में
नर-नारी का भेदभाव नहीं था। यह सामाजिक मर्यादाओं को चुनौती देना था।

प्रश्न-भगतजी की पतोहू की क्या इच्छा थी?
उत्तर―भगत जी की पतोहू भगत की सेवा में रहना चाहती थी। वह जानती
थी कि वृद्धावस्था में उनका एकाकी जीवन बड़ा ही कष्टकर होगा। घरेलू कार्य
का भार भी उन्हीं पर आ जायेगा। वह उनके दुख-शोक में काम आना चाहती थी।

प्रश्न-भगत जी की आखिरी दलील क्या थी?
उत्तर―भगतजी की पतोहू भगतजी को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहती
थी। भगतजी ने अपनी पतोहू से कहा कि यदि वह नहीं जायेगी तो वह स्वयं घर
छोड़ देंगे। भगतजी की इस आखिरी दलील पर पतोहू को मानना पड़ा।

गद्यांश 5. हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया । कुतूहलवश उनके
घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक
सफेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में
से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी । सिरहाने एक चिन
जला रखा है। और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जाए
हैं। वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता । घर में पतोहू रो रही है जिसे गाँव की स्वियं
चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किन्तु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! ई.
गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मानने
को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, मत
इससे बढ़कर आनंद की कौन बात ? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए
किन्तु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चान
विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।           [JAC 2011 (A)]

प्रश्न- (क) बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किन
कहा गया है और क्यों?
(ख) भगत जी का बेय कैसा था ? भगत जी उससे कैसे व्यवहार करते थे?
(ग) भगत जी अपने बेटे से अधिक प्यार क्यों करते थे?
(घ) भगत जी की बहू कैसी थी? उसका व्यवहार कैसा था ?
उत्तर―(क) बालगोविन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर भी संगीन-साधना में
डूबे हुए थे। वे तल्लीन होकर प्रभु-वंदना के गाने गाए जा रहे थे। बेटे की मौत
भी उन्हें डांवाडोल नहीं कर पाई थी। यह व्यवहार उनकी संगीत-साधना का उत्कर्ष
था।

(ख) भगत जी का बेटा कुछ सुस्त और बोदा था। भगत जी उससे कुछ
अधिक सेह करते थे। उसका जरूरत से अधिक ध्यान रखते थे।

(ग) भगत जी कहते थे कि ऐसे सुस्त और बोदे बच्चे हमारे प्यार, स्नेह और
निगरानी के अधिक हकदार होते हैं। इन पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिए।
(घ) भगत जी की पतोहू बहुत सुंदर और सुशील थी । उसने अपनी कुशलता
से सारे घर का प्रबंध स्वयं संभाल लिया था। उसने भगत जी को सांसारिक कामों
से बिल्कुल ही बेफिक्र कर दिया था।

                         पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. खेती-बारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक
विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?
                        [JAC 2009 (A); 2012 (C) 2013 (A); 2016 (A)]
उत्तर―बालगोबिन भगत खेती-बारी करने वाले गृहस्थ थे। फिर भी उनका
आचरण साधुओं जैसा था। सबसे पहली बात यह थी कि वे जीवन 'साहब' को
समर्पित किए हुए थे। वे स्वयं को भगवान का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई
पर भी पहले भगवान का हक मानते थे। इसलिए फसलों को पहले साहब के दरबार
में अर्थात् कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से जो प्रसाद रूप में वापस मिलता
था, उसी में अपना गुजारा करते थे। वे अपने जीवन को भी भगवान की देन मानते
थे। इसलिए वे मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र की
मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया।
भगत जी कभी किसी के साथ झूठ नहीं बोलते थे, झगड़ा नहीं करते थे। किसी
की कोई चीज नहीं लेते थे। यहाँ तक कि किसी के खेत में शौच तक होने नहीं
जाते थे। यह साधु होने के ही लक्षण हैं। वे अपना तन-मन प्रभु-भक्ति और
भक्ति-गीत गाने में लगाया करते थे।

प्रश्न 2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर―भगत की पुत्रवधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं। उनका
एकमात्र पुत्र मर चुका है। वे बूढ़े हैं और भक्त हैं। उन्हें घर-बार और संसार में
कोई रुचि नहीं है। अत: वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं
दे पाएँगे। इसलिए वह सेवा-भाव से उनके चरणों की छाया में अपने दिन बिताना
चाहती थी। वह उनके लिए भोजन और दवा-दारू का प्रबंध करना चाहती थी।

प्रश्न 3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त
की?                                                               [JAC 2012 (A)]
उत्तर―भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा कहकर उसका सम्मान
किया। उन्होंने उस मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का शुभ मिलन माना । इसलिए उसे
उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढंककर उसे फूलों
से सजाया । उसके सिरहाने दीपक रखा। फिर वे उसके सामने प्रभु-भक्ति के गीत
गाने लगे। वे खेजड़ी की ताल पर तल्लीन होकर गाते चले गए। उन्होंने विलाप
करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।

प्रश्न 4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र
प्रस्तुत कीजिए।                                                [JAC 2011 (C)]
उत्तर―भगत जी गृहस्थ होते हुए भी सीधे-सरल भगत साधु थे। उनकी आयु
साठ वर्ष से कुछ ऊपर थी। वे मझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके बाल
सफेद हो गए थे। उनका चेहरा सदा सफेद बालों के कारण जगमगाता रहता था ।
हाँ, वे लंबी दाढ़ी या जटाएँ नहीं रखते थे। वे कपड़े भी बहुत कम पहनते थे। प्रायः
कमर में लंगोटी-सी पहने रहते थे और सिर पर कबीरपथियों की भाँति एक कनफटी
टोपी पहने रहते थे। सर्दियों में वे काला कंबल ओढ़े रहते थे। उनके माथे पर सदा
एक रामानंदी चंदन सुशोभित रहता था जो नाक के एक किनारे से शुरू होता था।
उनके गले में तुलसी की माला बंधी रहती थी।
       भगत जी का व्यक्तित्व गायक भक्तों जैसा था । वे सदा खेजड़ी की लय पर
प्रभु-भक्ति के गाने गाते रहते थे। उनकी तल्लीनता सुनने वालों को बराबर अपनी
ओर खींच लेती थी।

प्रश्न 5. बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों
थी?                              [JAC 2012 (A); 2016 (A); 2018 (A)]
उत्तर―बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों को हैरान कर देती थी। वे भगत
जी की सरलता, सादगी और निस्वार्थता पर हैरान होते थे। भगत जी भूलकर भी
किसी से कुछ नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी की चीज छूते भी नहीं थे। यहाँ
तक कि किसी दूसरे के खेत में शौच भी नहीं करते थे। लोग उनके इस खरे व्यवहार
पर मुग्ध थे।
    लोग भगत जी पर तब और भी आश्चर्य करते थे जब वे भोरकाल में उठकर
दो मील दूर-स्थित नदी में स्नान कर आते थे। वापसी पर वे गाँव के बाहर स्थित
पोखर के किनारे प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनके इन प्रभाती-गानों को
सुनकर लोग सचमुच हैरान रह जाते थे।

प्रश्न 6. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की
विशेषताएँ लिखिए।                  [JAC 2015 (A): 2019 (A)]
उत्तर―बालगोबिन भगत प्रभु-भक्ति के मस्ती-भरे गीत गाया करते थे। उनके
गानों में सच्ची टेर होती थी। उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता
था कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगती थीं।
खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते
थे। उनक संगीत में जादुई प्रभाव था। वह मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण पर छा
जाता था। यहाँ तक कि घनघोर सर्दी और गर्मियों की उमस भी उन्हें डिगा नहीं पाती
थी।

प्रश्न 7. कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि
बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे । पाठ के
आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर―यह सत्य है कि बालगोबिन भगत का अंतर्मन ही उन्हें आदेश देता था।
वे समाज की मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते थे। समाज की मान्यता है कि पति
की चिता को पली आग नहीं दे सकती। पत्नी को चाहिए कि वह पति की मृत्यु
के बाद विधवा बनकर सास-ससुर की सेवा में दिन बिताए । बालगोविन ने इन दोनों
मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता को पतोहू के हाथों
से ही आग दिलाई। उसके बाद उन्होंने पतोहू को दूसरे विवाह के लिए स्वयं उसके
भाइयों के साथ वापस भेज दिया।
     बालगोबिन भगत ने समाज की देखादेखी पुत्र की मृत्यु पर शोक भी नहीं
मनाया। उन्होंने पुत्र की मृत्यु को परमात्मा से मिलन का उत्सव माना। इसलिए
वे शोक मनाने की बजाय प्रभु-भक्ति के गीतों में तल्लीन हो गए । अपनी पुत्रवधु
को भी शोक न मनाने की सलाह दी।

प्रश्न 8. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ
किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर―खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बालगोबिन भगत भी एक-एक
उँगली से धान के पौधों को पक्तिबद्ध करके रोप रहे थे। तभी उन्होंने मस्ती भरी तान
छेड़ी। उनके गीत का स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि वह सीधे
आकाश में स्थित परमात्मा को टेरता प्रतीत होता था। उसे सुनकर खेतों में उछल-कूद
मचाते बच्चों में एक मस्ती आ गई। मेड़ों पर बैठी औरतो के ओंठ गाने के लिए बेचैन
हो उठे। किसानों की उँगलियों में भी एक क्रमिक लय आ गई। हल चलाने वाले
किसानों के पैर संगीत की थाप पर चलने लगे। इस प्रकार उनके संगीत का जादू सारे
वातावरण पर छा गया।

प्रश्न 9. पाठ के आधार पर बताएं कि बालगोबिन भगत की कबीर पर
श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर―बालगोबिन भगत कबीर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी
श्रद्धा को निम्न रूपों में व्यक्त किया―
◆ उन्होंने स्वयं को कबीर-पंथ के प्रति समर्पित कर दिया। वे अपना जीवन
कबीर के आदेशों पर चलाते थे। कबीर ने गृहस्थी करते हुए संसार के आकर्षणों से
दूर रहने की सलाह थी। बालगोबिन भगत ने भी यही किया। उन्होंने खेती बारी
करते हुए कभी लोभ-लालच, स्वार्थ या आडंबर-भरा जीवन नहीं जिया । जैसे कबीर
अपने व्यवहार में खरे थे, उसी प्रकार बालगोबिन भगत भी व्यवहार में खरे रहे।
    ◆ भगत जी ने अपनी फसलों को भी ईश्वर की संपत्ति माना । वे फसलों
को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद रूप में पाई फसलों का भोग करते थे।
    ◆ कबीर ने नर-नारी की समानता पर बल दिया। बाहरी आडंबरों पर चोट
की। बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार अपनी आत्मा की आवाज पर
व्यवहार किया। उन्होंने वही किया, जो उन्हें उचित और हितकारी लगा।
    ◆ कबीर मनुष्य-शरीर को नश्वर मानते थे। वे जीवन को प्रभु-भक्ति में
लगाने की सीख देते थे। बालगोबिन भगत ने उनके इन आदेशों को पूरी तरह माना ।
उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को भी उत्सव में बदल दिया। वे अंत तक मस्ती-भरे
गीत गाते रहे।

प्रश्न 10. आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा
के क्या कारण रहे होंगे?                                   [JAC 2011 (C)]
उत्तर―मेरी दृष्टि में भगत सच्चे सरल-हृदय किसान थे। वे कबीर की भक्ति
से प्रभावित हुए होंगे। उन्हें कबीर की साफ आवाज में सच्चाई नजर आई होगी।
यह सच्चाई उनके सच्चे हृदय में पैठ गई होगी। उन्होंने तब से अपनी आत्मा की
कबीर के चरणों में झुका दिया होगा। उन्होंने कबीर को अपना गुरु मान लिया होगा
तथा अपने जीवन को उन्हीं के अनुसार दाल दिया होगा।

प्रश्न 11. गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही
उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर―भारत कृषि-प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। कृषि
वर्षा पर आधारित है। वर्षा आषाढ़ मास में शुरू होती है। इसलिए आषाढ़ मास
में गाँववासी बहुत प्रसन्न नजर आते हैं। वे साल-भर आषाढ़ मास की प्रतीक्षा करते
हैं ताकि खेतों में धान रोप सकें। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ
होकर आनंद-क्रीड़ा करते हैं। औरतें नाश्ता परोसकर किसानों का भरपूर सहयोग
करती हैं। किसान हल जोतते हैं तथा दिन-भर बुवाई करते हैं। वे सभी फसलों
की आशा में उल्लास से भर जाते हैं। इन्हीं दिनों गाँव का सामाजिक वातावरण
सांस्कृतिक रंगों से ओतप्रोत हो उठता है।

प्रश्न 12. “ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत
साधु थे।" क्या 'साधु' की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए?
आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति 'साधु' है?
उत्तर―साधु की पहचान उसके पहनावे से भी होती है। साधु व्यक्ति अगर
संसारी आकर्षणों से बंधा है तो वह सुंदर पहनावे की ओर ध्यान नहीं देता। वह
कम-से-कम कपड़े पहनता है। प्रायः वह धोती, कंबल जैसे बिना सिले कपड़े पहनता
है और सादगी से रहता है। परन्तु साधु की सच्ची पहचान ये कपड़े नहीं हैं। बहुत
से ढोंगी लोग साधुओं का वेश धारण करके संसार के सुखों को भोग करते हैं।
            मेरे विचार से साधु की सच्ची पहचान उसके व्यवहार से होती है। सच्चा साथ
अपना ध्यान संसार को ओर नहीं, प्रभु-भक्ति की ओर लगाता है। वह व्यवहार में सच्चा,
'सादा, आडंबरहीन, खरा और साफ रहता है। वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेता। कभी
किसी का अधिकार नहीं छीनता । वह अपनी कमाई को भी प्रभु-चरणों में अर्पित कर
देता है।

प्रश्न 13. मोह और प्रेम में अंतर होता है । भगत के जीवन की किस घटना
के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर―मोह और प्रेम में निश्चित रूप में अन्तर होता है। मोह में मनुष्य अपने
स्वार्थ की चिंता करता है। प्रेम में वह प्रिय का हित देखता है। बालगोबिन भगत
ने अपने व्यवहार से ये अंतर सिद्ध किया। उन्होंने पतोहू के प्रति मोह प्रकट न करके
प्रेम प्रकट किया। यदि वे उसे अपनी सेवा के लिए रख लेते तो यह उनका मोह
होता। उन्होंने पतोहू के भविष्य की चिंता की । इसलिए उसका जीवन सुधारने के
लिए उसे दूसरा विवाह करने की सलाह दी। इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ ।

प्रश्न 14. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन विशेषताओं
के कारण साधु कहलाते थे?
अथवा, बालगोबिन भगत की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
अथवा, बालगोबिन भगत का रेखाचित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर―बाल गोयिन भगत खेती-बारी से जुड़े होकर भी साधु-सा जीवन व्यतीत
करते थे। उनकी अपनी गृहस्थी थी। एक बेटा और पतोहू के साथ उनका भरा-पूरा
परिवार था। फिर भी, उनका सारा जीवन अपने 'साहब' को समर्पित था। वे अपनी
कमाई पर पहले 'साहब' का हक मानते थे। प्रसाद के रूप में उन्हें जो कुछ भी
प्राप्त होता था। उसी से वे अपना गुजारा करते थे। वे पूर्णत: कबीरपंथी साधु थे।
अर्थात् अपना कर्म करते भगवान का भजन। अतः वे मृत्यु को भी परमात्मा में
विलीन हो जाना मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर भी रोया नहीं बल्कि
भगवान का भजन गाया।
झूठ बोलना, झगड़ा करना, किसी दूसरे की वस्तु लेना आदि उनके लिए
गाने में व्यतीत किया।

प्रश्न 15. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के गायन की विशेषताएँ
पाप-कर्म था। उन्होंने जीवन भर अपना शेष समय खंजड़ी बजाने और प्रभु का गीत
बतावें।
उत्तर―बाल गोबिन भगत के जादुई संगीत में मस्ती, तल्लीनता और गायन-कता
की अलौकिक मिठास का अद्भुत संगम था। बाल गोबिन का संगीत स्वर जादू-सा
था। उसका स्वर मानो ऊँचाई पर चढ़कर स्वर्ग की ओर जाता था। बाल गोबिन
के गाने में इतनी तन्मयता और कबीर की ईश्वर और जीव के बारे में ज्ञान भरी
बातें होती थीं कि वह सभी को चौंका देता था।
   बालगोबिन के संगीत को सुनकर लोग झूमने लगते थे। किसानों को काम
करने में और बच्चों को खेलने में मस्ती आ जाती थी। महिलाओं के भी होंठ
गुनगुनाने लगते थे। हल चलाने वालों के पैर एक ताल में उठते थे। धान रोपने वालों
को उँगलियाँ उसी ताल और लय में चलने लगती थीं।

प्रश्न 16. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में
चित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर―बाल गोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी अपना आचरण साधु-वैरागियों
सा रखते थे। उनकी उम्र साठ वर्ष के ऊपर थी। वे रूप-रंग से गोरे और मंझोले
कद के व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। दाढ़ी लम्बी थी। वे प्रायः एक लंगोटी
में रहा करते थे। कबीरपंथियों के समान एक कनपटी टोपी पहनते थे। सर्दियों में
काला कम्बल ओढ़ा करते थे। उनके ललाट पर रामानन्दी चंदन और गले में तुलसी
की माला सुशोभित होती थी।

प्रश्न 17. बालगोबिन भगत की वेशभूषा कैसी थी?
उत्तर―बाल गोबिन भगत की वेशभूषा साधु-वैरागियों जैसी थी। उनकी दाढ़ी
लम्बी थी। वे प्राय: एक लंगोटी में रहा करते थे। कबीरपंथियों के समान एक
कनपटी टोपी पहनते थे। सर्दियों में काला कम्बल ओढ़ा करते थे। उनके ललाट पर
रामानन्दी चंदन और गले में तुलसी की माला सुशोभित होती थी।

प्रश्न 18. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार
प्रकट की?
अथवा, बाल गोबिन भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष कब देखने
को मिलता है?
उत्तर―पुत्र शोक में प्रायः लोग मातम मनाते हैं। लेकिन भगत जी अपने मृत
बेटे के निकट बैठकर संगीत-साधना में लीन थे। उनकी मान्यता थी कि आत्मा
परमात्मा में मिल गयी। उनका मृत पुत्र आँगन में चटाई पर लेटा था। उसे सफेद
कपड़े से ढँक दिया गया था। उसके पास कुछ फूल बिखरे थे। सिरहाने में एक
दीपक जल रहा था। उसकी बगल में भगत जी अपना आसन जमाये बैठे थे। वे
पहले की भाँति भगवद् भक्ति के गीत में आत्मविभोर थे। बाल गोबिन भगत की
संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उनके बेटे की मृत्यु के बाद देखने को मिलता है।
बेटे की मौत भी उनकी संगीत साधना को विचलित नहीं कर सकी। यह उनकी
संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष था।

प्रश्न 19. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़ना क्यों पसन्द नहीं करती थी?
उत्तर―भगत जी की पतोहू भगत की सेवा में रहना चाहती थी। वह जानती
थी कि वृद्धावस्था में उनका एकाकी जीवन बड़ा ही कष्टकर होगा। घरेलू कार्यों
का भार भी उन्हीं पर आ जायेगा। वह उनके दुख-शोक में काम आना चाहती थी।
उसे चिन्ता थी कि उसके चले जाने के बाद उन्हें खाना बनाकर कौन खिलायेगा?
बीमार पड़ने पर उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं रहेगा।

प्रश्न 20. पाठ के आधार पर बतायें कि बालगोबिन भगत की श्रद्धा
कबीर पर किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर―बालगोबिन भगत की श्रद्धा कबीर पर निम्नलिखित रूपों में प्रकट हुई
(i) बालगोबिन भगत के खेतों में जो भी फसलें उपजती थीं उसे वे कबीर मठ
को समर्पित करते थे और प्रसाद के रूप में उन्हें जो कुछ भी प्राप्त होता था उसी
से वे गुजारा करते थे।
(ii) कबीर की भाँति वे भी गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत करते हुए सांसारिक
विषय-वासनाओं से दूर रहते थे।
(iii) कबीर की भाँति बालगोबिन भगत ने भी अपनी आत्मा की आवाज पर
ध्यान दिया।
(iv) कबीर की भाँति बालगोबिन भगत सच्चे और व्यवहार में खरे थे।
(v) कबीर की भाँति भगत जी ने नर-नारी की समानता पर बल दिया। बाह्य
आडम्बरों का विरोध किया। अपनी पतोहू से पुत्र की चता में अग्नि दिलवायी।
(vi) कबीर की भाँति भगत जी ने भी मानव-शरीर को नश्वर माना। उन्होंने
अपने पुत्र की मृत्यु को उत्सव में बदल दिया।

प्रश्न 21. 'कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि
बालगोबिन भगत समाज की प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे।' उन प्रसंगों
का उल्लेख करें।
उत्तर―भगत जी एक सुलझे हुए समझदार इंसान थे। वे सामाजिक मर्यादाओं
को एक हद तक ही मानते थे। वे स्वार्थी न होकर परमार्थी थे। समाज की प्रचलित
मान्यताओं को वे किसी के जीवन तथा भावनाओं से ऊपर नहीं मानते थे।
    हमारे समाज की मान्यता है कि महिलाएं मुखाग्नि नहीं दे सकती हैं। नारी को
श्मशान घाट पर जाने की भी अनुमति नहीं है। परन्तु, भगत जी ने अपनी पुत्रवधू
से ही मृत बेटे की मुखाग्नि दिलायी। भगतजी की पतोहू अभी युवती थी। अपनी
खुशियों को दबाकर उसका एक लम्बी जिन्दगी व्यतीत करना भगतजी ने उचित
नहीं समझा। उन्होंने अपने बहू को भाई के साथ यह कहकर भेज दिया कि वह
दूसरी शादी कर लें।
    इन प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत समाज की
प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे।

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