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 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | कन्यादान ― ऋतुराज  Solutions Chapter 8

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   काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

काव्यांश 1. माँ ने कहा पानी मे झाँककर
                 अपने चेहरे पर मत रीझना
                 आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
                 जलने के लिए नहीं
                 वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
                 बंधन हैं स्त्री जीवन के
                 माँ ने कहा लड़की होना
                 पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।   [JAC 2014 (A); 2016 (A)]

प्रश्न-आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की
जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर―माँ ने लड़की को भावी जीवन के विषय में समझाया। माँ चाहती है
कि उसकी लड़की सरल, कोमल और भोली बनी रहे । परन्तु वह उसे शोषण से
भी बचाना चाहती है, ताकि ससुराल वाले उसकी सरलता का अनुचित लाभ न
उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह अपनी लड़की से कहती है कि वह
लड़की तो बने किन्तु लड़की जैसी दिखाई न दे।

प्रश्न-वस्त्र और आभूषण को स्त्री जीवन का बंधन क्यों कहा गया है ?
उत्तर―नए वस्त्र एवं आभूषण के प्रति महिलाओं में विशेष आकर्षण होता
है। नई बहुएँ नए-नए वस्त्र और गहने पाकर अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। इस खुशी
में वे सभी प्रकार के उचित-अनुचित बंधन स्वीकार कर लेती हैं तथा इसके लिए
वे अपनी मानसिक स्वतंत्रता खो देती हैं।

प्रश्न-माँ ने अपनी कन्या को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना
किया?
उत्तर― माँ ने अपनी कन्या को अपने चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना
किया क्योंकि प्रायः बहुएँ अपनी सुन्दरता पर रीझकर हर बंधन को स्वीकार कर
निभा देती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर वहाँ के हर कष्ट झेल लेती हैं
और शोषण करा लेती हैं।

                      पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होने पर
लड़की मत दिखाई देना?
उत्तर―माँ चाहती है कि उसकी लड़की स्वभाव से सरल, भोली और कोमल
बनी रहे। वह दुनियादारों जैसा स्वार्थी, चालाक और झगडालू न बने । परन्तु साथ
ही वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती है। वह चाहती कि उसके ससुराल वाले
उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह
कहती है कि उसकी लड़की लड़की तो बने किन्तु लड़की जैसी दिखाई न दे।

प्रश्न 2. 'आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
           जलने के लिए नहीं'
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत
किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ?
उत्तर―(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई
(1) कह ससुराल में घर-गृहस्थी को संभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ
पकाती है।
(2) काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे
जला कर मार डाला जाता है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी
लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने लेती हैं। परंतु वे सभी सपने झूठे सिद्ध
होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पा घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में
बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परन्तु
विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह
उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।

प्रश्न 3. 'पाठिका भी वह धुंधले प्रकाश की
           कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की'
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ
रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर―इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती
है जो काल्पनिक सुखों में मग्न है। वह सोच रही है कि सज-धजकर ससुराल में
जाएगी। उसके पति उस पर रीझेंगे, उसे प्यार करेंगे तो वह कितनी सुखी होगी।
जब वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी तो सबकी आँखों में प्रशंसा का भाव
होगा। इस प्रकार ससुराल में उसका जीवन मधुर होगा, संगीतमय होगा। उसे
घर-गृहस्थी के सारे काम निपटाने पड़ेंगे, चूल्हा-चौका करना पड़ेगा-इसकी तो वह
कल्पना भी नहीं करती। 

प्रश्न 4. माँ को अपनी बेटी 'अंतिम पूँजी' क्यों लग रही थी?
                         [JAC 2009(A): 2010(C): 2013 (A); 2017 ]
उत्तर―माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी जीवन के दुखों को अपनी माँ,
बहन या बेटे के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी
थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परन्तु अब
उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भा ससुराल चली
जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ?
                         [JAC 2010 (C): 2015(A); 2017 (A); 2018 (A)]
उत्तर―माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी―
(1) कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशांसा पर न रीझना ।
(2) घर-गृहस्थी के सामान्य कार्य तो करना, किन्तु अत्याचार न सहना।
(3) कपड़ों और गहनों के बदले अपनी आजादी न बेचना, अपना व्यक्तित्व न खोना।
(4) अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि लोग उसका
गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

प्रश्न 6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक
उचित है?                                                   [JAC 2011 (A)]
उत्तर―कन्या के साथ 'दान करना' शब्द-प्रयोग सम्मान-बोधक नहीं है। इससे
प्रतीत होता है कि मानो कन्या कोई वस्तु है जिसे दान किया जा सकता है। मानी
कन्या बेजान है, व्यक्तित्वहीन है। उसकी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। इस
शब्द-प्रयोग से ऐसा भी लगता है मानो कन्यादान करने के बाद कन्या के माता-पिता
के साथ उसका कोई संबंध न रहा हो। वह पराई हो गई हो। इस प्रकार यह दोनों
ही अर्थ अनुचित हैं।
कन्यादान का दूसरा पक्ष भी है। भारत में दान की बड़ी महिमा है। दान वही
श्रेष्ट माना जाता है, जो दिया जाने योग्य हो; जो मूल्यवान और श्रेष्ठ हो। इसके
लिए दान का योग्य पात्र भी देखा जाता है। किसी योग्य पात्र को दी जाने वाली
वस्तु दान करने से दानदाता स्वयं को धन्य मानता है। इस दृष्टि से कन्यादान मनुष्य
द्वारा दिया गया श्रेष्ठतम दान माना जाता है। जब व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से पाली
गई अपनी कन्या को उसके ससुराल वालों को सौंपता है तो वह धन्य हो जाता है।
वहाँ कन्यादान करना सर्वोत्तम माना जाता है।

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