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     Jharkhand Board Class 9TH Sanskrit Notes | भ्रान्तो बालः  

     JAC Board Solution For Class 9TH Sanskrit Chapter 6


संकेत-भ्रान्तः कश्चन ........... स्वकर्मव्यग्रो, बभूव ।
शब्दार्थ:―भ्रान्तः = गलत रास्ते पर पड़ा हुआ, बेलायाम = समय पर, क्रीडितुम्
= खेलने के लिए, निर्जगाम = निकल गया, केलिभि = खेल द्वारा, कालं क्षेप्तुम् =
समय बिताने के लिए, वयस्येषु = मित्रों में से, यतः = क्योंकि, त्वरमाणाः = शीघ्रता
करते हुए, तन्द्रालुः = आलसी, एकाकी = अकेला, प्रविवेश = घुस गया, चिन्तयामास
= सोचा, पुस्तकदासा = पुस्तकों के दास, विनोदयिष्यामि = मैं मनोरंजन करूंगा,
उपाध्यायस्य = गुरु के, निष्कुटवासिनः = वृक्ष के कोटर में रहने वाले, मधुकरम् =
भौंरा, क्रीडाहेतोः = खेलने के निमित्त, आद्वयत् = बुलाया, हठमाचरित = हठ करने
पर, मधुसंग्रहव्यग्राः = पराग को संग्रह करने में लगे हुए, भूयो भूयः = बार-बार,
मिथ्यागर्वितेन = झूठे गर्व वाले, कीटेन = क्रीड़े से, अन्यतो ददृष्टि = दूसरी ओर
देखते हुए, चञ्च्वा = चोंच से, आददानम् = ग्रहण करते हुए, उवाच = कहा, एहि
= आओ, चटकम् = चिड़िया, स्वादूनि = स्वादिष्ट, भक्ष्यकवलानि = खाने के ग्रास,
ते = तुम्हें, नीडः = घोंसला, बटद्वशाखायाम् = बरगद के पेड़ की शाखा पर, यामि
= मैं जा रहा हूँ, स्वकर्मव्यग्रः = अपने काम में व्यस्त ।
          हिन्दी अनुवाद―भ्रमित कोई बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए
चला गया किन्तु उसके साथ खेल के द्वारा समय बिताने के लिए कोई भी मित्र
उपलब्ध नहीं था। वे सभी पहले दिन के पाठों को स्मरण करके विद्यालय जाने की
शीघ्रता से तैयारी कर रहे थे । आलसी बालक लज्जावश उनकी दृष्टि से बचता हुआ
अकेला ही उद्यान में प्रविष्ट हो गया।
                उसने सोचा―ये बेचारे पुस्तक के दास वहीं रूके, मैं तो अपना मनोरंजन
करूंगा। क्रुद्ध गुरु जी का मुख मैं बाद में देखूगा । वृक्ष के खोखलों में रहने वाले
ये प्राणी (पक्षी) मेरे बन जाएँगे।
        तब उसने उस उपवन में घूमते हुए भरि को देखकर खेलने के लिए बुलाया।
उसने उसकी दो-तीन आवाजों की ओर तो ध्यान ही नहीं दिया । तब यार-बार हठ
करने वाले उस बालक के प्रति उसने गुनगुनाया-हम तो पराग सञ्चित करने में
व्यस्त हैं।
       तब उस बालक ने अपने मन में 'व्यर्थ में घमण्डी इस कीड़े को छोड़ो' ऐसा
सोचकर दूसरी ओर देखते हुए एक चिड़े (पक्षी) को चोंच से घास-तिनके आदि
उठाते हुए देखा। वह उससे बोला-"अरे चिड़िया के शावक ! तुम मुझ मनुष्य के
मित्र बनोगे? आओ खेलते हैं। इस सूखे तिनके को छोड़ो, मैं तुम्हें स्वादिष्ट
खाद्य-वस्तुओं के ग्रास दूंगा।" "मुझे बरगद के वृक्ष की शाखा पर घोंसला बनाना
है, अत: मैं काम से जा रहा हूँ'-ऐसा कहकर वह अपने काम में व्यस्त हो गया।

2. संकेत-तदा खिनौ......... सम्पदं च लेभे।
शब्दार्थ:―खिन्नः = दुःखी, अन्वेषयामि = मैं ढूँढता हूँ, विनोदयितारम् =
मनोरंजन करने वाले को, पलायमानम् = भागते हुए को, श्वानम् = कुत्ते को,
संबोधयामास = संबोधित किया, पर्यटसि = तुम घूम रहे हो, निदाघदिवसे = गर्मी
के दिन में, आश्रयस्व = आश्रय लो, क्रीडासहायम् = खेल में सहयोगी, कुक्कर:
कुत्ते ने, प्रत्याह = कहा, अनुरूपम् = उपयुक्त, रक्षानियोगकरणात् = रक्षा के कार्य
में लगे होने से, ईषदपि = थोड़ा-सा भी, भ्रष्टव्यम् = हटना चाहिए, निषिद्धः = मना
किया गया, विनितमनोरथः = टूटी इच्छाओं वाला, कालक्षेपम् = समय की हानि,
तन्द्रालुतायाम् = आलस्य में, कुत्सा = घृणा भाव, समापादिता = उत्पन्न करा दी,
त्वरितम् = जल्दी से, विद्याव्यसनी = विद्या में रुचि रखने वाला, वेदुषीम् = विद्वता,
प्रधाम = प्रसिद्धि, लेभे = प्राप्त कर ली।
             हिन्दी सरलार्थ―तब दुःखी बालक ने कहा-ये पक्षी मनुष्यों के समीप नहीं
आते, अतः मैं मनुष्यों के योग्य किसी अन्य मनोरंजन करने वाले को ढूँढता हूँ―ऐसा
सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखकर प्रसन्न हुए उस बालक ने कहा–हे मनुष्यों
के मित्र ! इतनी गर्मी के दिन में व्यर्थ क्यों घूम रहे हो? इस घनी और शीतल छाया
वाले वृक्ष का आश्रय लो । मैं भी खेल में तुम्हें ही उचित सहयोगी समझता हूँ। कुत्ते
ने कहा―
जो पुत्रतुल्य मेरा पोषण करता है, उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्य में लगे
होने से मुझे थोड़ा-सा भी नहीं हटना चाहिए ।
       सबके द्वारा इस प्रकार मना कर दिए जाने पर टूटे मनोरथ वाला वह बालक
सोचने लगा-इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कर्तव्य में व्यस्त है। कोई भी
मेरी तरह समय नष्ट नहीं कर रहा है। इन सबको प्रणाम-जिन्होंने आलस्य के प्रति
मेरी घृणा भावना उत्पन्न कर दी। अत: मैं भी अपना उचित कार्य करता हूँ-ऐसा
सोचकर वह शीघ्र ही पाठशाला चला गया ।
तय से विद्याध्ययन के प्रति इच्छायुक्त होकर उसने विद्वता, कीर्ति तथा धन को
प्राप्त किया।

                                    अभ्यासः

प्रश्न-1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत―
(क) बालः कदा क्रीडितुं निर्जगाम ?
उत्तर―बालः पाठशालागमनवेलायर्या क्रीडितुं निजंगाम ।

(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा बभूवुः?
उत्तर―बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनार्थ त्वरमाणा बभूवुः ।

(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन न अमन्यतः?
उत्तर―मधुकरः बालकस्य आह्वानं न अमन्यत यतः सः मधुसंग्रहे व्यग्रः आसीत् ।

(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत् ?
उत्तर―बालक चञ्च्या तृणशलाकादिकमाददानं चटकम् अपश्यत् ।

(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थ कीदृर्श लोभ दत्तवान् ?
उत्तर―बालकः चटकाय स्वादूनि भक्ष्यकवलानि दानस्य लोभं दत्तवान् ।

(च) खिनः बालकः श्वानं किम् अकथयत् ?
उत्तर―खिन्नः बालकः श्वानम् अकथयत्-मित्र । त्वम् अस्मिन् निदाघदिवसे
किं पर्यटसि ? प्रच्छायशीतलमिदं तरुमूलं आश्रयस्य । अहं त्वामेव अनुरूप
क्रीडासहायं पश्यामि ।

(छ) विनितमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर―विनितमनोरथः बालः अचिन्तयत्-'अस्मिन् जगति प्रत्येक स्व-स्वकृत्ये
निमग्नः भवति । कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं न सहते। अतः अहमपि
स्वोचितं करोमि ।

प्रश्न-2. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थ हिन्दीभाषया आगलभाषया
वा लिखत―
              यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य ।
              रक्षनियोगकरणान मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥
उत्तर―भावार्थ―प्रस्तुत श्लोक में कुत्ते में भी कर्तव्यपालन की भावना अभिव्यक्त
की गई है। जहाँ उसे पुत्र के जैसा प्रेम मिला है और उसका पालन-पोषण हुआ है,
वहाँ उसे रक्षा के कर्त्तव्य से तनिक भी पीछे नहीं हटना चाहिये-कुत्ते की इसी भावना
से बालक प्रभावित होकर विद्याध्ययन की ओर आकृष्ट होता है।

प्रश्न-3."भ्रान्तो बालः" इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङ्गलभाषया
वा लिखत।
उत्तर―एक भ्रान्त बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चल पड़ा।
उसने अपने मित्रों से भी खेलने आने को कहा किन्तु सब विद्यालय जाने की जल्दी
में थे तथा किसी ने भी उसकी बात न मानी। उपवन में जाकर सबसे पहले उसने
भौंरे से खेलने को कहा किन्तु उसने पराग सञ्चित करने में अपनी व्यस्तता बताई।
तब उसने चिड़े को स्वादिष्ट खाद्य वस्तुएँ देने का लालच देकर खेलने को कहा
किन्तु उसने भी घोंसला बनाने के कार्य में अपनी व्यस्तता बताकर खेलने से इन्कार
कर दिया। तत्पश्चात् उसने कुत्ते से खेलने को कहा । कुत्ते ने भी रक्षानियोग के
कारण अपनी व्यस्तता प्रकट की।
      इस प्रकार नष्ट मनोरथ वाले उस बालक ने अन्त में यह समझ लिया कि समय
नष्ट करना उचित नहीं । सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं, अत: उसे भी अपना
कर्त्तव्य (विद्याप्राप्ति) पूरा करना चाहिए। तभी से वह विद्याप्राप्ति में जुट गया । वह
शीघ्र विद्यालय चला गया।

प्रश्न-4. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत―
(क) स्वदनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि ।
उत्तर―कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि ।

(ख) चटकः स्वकर्माणि व्यग्रः आसीत् ?
उत्तर―चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत् ?

(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति ?
उत्तर―कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति ?

(घ) स महती वैदुषीं लब्धवान् ।
उत्तर―स कीदृशी वेदुषीं लब्धवान् ?

(ङ) रक्षानियोगकरणात मया न भ्रष्टव्यम् इति ।
उत्तर―कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति ?

प्रश्न-5. "एतेभ्यः एनः" इति उदाहरणमनुसृत्य नमः इत्यस्य योगे चतुर्थी
विभक्तेः प्रयोग कृत्या पञ्चवाक्यानि रचयत ।
उत्तर―(1) गुरवे नमः।
(2) पित्रे नमः।
(3) आदित्याय नमः।
(4) मात्रे नमः।
(5) शिक्षिकाये नमः।

प्रश्न-6. 'क' स्तम्भे समस्तपदानि 'ख' स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि,
तानि यथासमक्षं लिखत―
'क' स्तम्भ                               'ख' स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम्                        (1) पुष्पाणाम् उद्यानम्
(ख) पुस्तकदासाः                   (2) विद्यायाः व्यसनी
(ग) विद्याव्यसनी                     (3) दुष्टेः पन्थाः
(घ) पुष्पोद्यानम्                      (4) पुस्तकाना दासाः
उत्तर― 'क' स्तम्भ                    'ख'स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम्                         (1) दृष्टेः पन्था
(ख) पुस्तकदासाः                     (2) पुस्तकानां दासाः
(ग) विद्याव्यसनी                       (3) विद्यायाः व्यसनी
(घ) पुष्पोद्यानम्                         (4) पुष्पाणाम् उद्यानम्

प्रश्न-7.अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एक विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम् ।
विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत―
उत्तर―                          विशेषणम्                  विशेष्यम्
(i) खिन्नः बालः               = खिन्नः                    बाल:
(ii) पलायमानम् श्वानमं     = पलायमानम्            श्वानम्
(iii) प्रीत: बालक:            = प्रीतः                     बालक:
(iv) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि = स्वादूनि                 भक्ष्यकवलानि
(v) त्वरमाणाः वयस्याः       = त्वरमाणाः              वयस्याः

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु सप्तमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानपूर्ति
कुरुत―
उत्तर―
(i) बालः पाठशालगमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम । (पाठशालागमनवेला)
(ii) अस्मिन् जगति प्रत्येक स्वकृत्ये निमग्नो भवति । (इदम्)
(iii) खगः शाखार्थ नीडं करोति।                           (शाखा)
(iv) अस्मिन् निदाघदिवसे किमर्थं पर्यटसि ?           (निदाघदिवस)
(v) नगेषु हिमालयः उच्चतमः।                             (नग)

परियोजनाकार्यम्―
(क) एकस्मिन् स्फोरकपत्रे (Chart Paper) एकस्य उद्यानस्य चित्रं निर्माण
संकलय्य वा पञ्चवाक्येषु तस्य वर्णनं कुरुत ।
उत्तर―छात्र अध्यापक के सहयोग से चार्ट पेपर पर उद्यान का चित्र बनाएँ तथा
उद्यान के वर्णन में पाँच वाक्य लिख दें―
(1) इदम् उद्यानस्य चित्रम् अस्ति ।
(2) अस्मिन् उद्याने केचन बालकाः क्रीडन्ति ।
(3) केचन वृद्धाः परस्पर वार्तालापं कुर्वन्ति ।
(4)अत्र पुरुषाः महिलाः च व्यायाम कर्तुमपि आगछन्ति ।
(5) केचन बालकाः अत्र धावन्ति ।

(ख) “परिश्रमस्य महत्वम्" इति विषये हिन्दी भाषया आङ्गलभाषया वा
पञ्चवाक्यानि लिखत ।
उत्तर―"परिश्रम का महत्व" ।
1. परिश्रम करने से कार्य सिद्ध होते हैं।
2. परिश्रम से आत्मसन्तोष मिलता है।
3. परिश्रम से मनुष्य के शरीर में आलस नहीं आता ।
4. परिश्रम से शरीर में स्फूर्ति रहती है।
5. परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।

                                                     ◆◆

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